Kanch ka rishta [part 24]

आज बाहर का नजारा कुछ अच्छा है, बादल भी घिरे हैं। करुणा खिड़की के समीप जाकर खड़ी हो गई। उन उड़ते बादलों को देख रही थी। जैसे वह बादल उसे, कई वर्ष पहले, के कुछ चित्र दिखला रहे हों ,अचानक उन दृश्यों में वह खो गई।

 तब किशोर जी बोले-इस तरह क्यों शांत हो गई ? आगे क्या हुआ था ?

कुछ दिनों के पश्चात अचानक ही ,वह गायब हो गई। सुनने में तो यह आया कि उसका विवाह तय हो गया है किंतु मुझे इस बात का भी आश्चर्य था कि उसने मुझे नहीं बुलाया। मुझे इस बात की सूचना भी नहीं दी।और तब से आज तक हमारा कोई संबंध ही नहीं रहा ,न ही ,मुझे उसके विषय में कोई जानकारी थी उसका विवाह हुआ तो क्या रहा और उसके साथ क्या घटना- दुर्घटना जो भी हुआ मैं नहीं जानती कहकर करुणा चुप हो गई। 


किशोर जी बोले -अब तुम अपनी सहेली से खुलकर बात कर सकती हो और उससे पूछ सकती हो ,इतने दिनों तक कहां थी और क्या कर रही थी ?

हां हां वह तो अवश्य ही करूंगी, आखिर में कहां गायब हो गई थी ? पूछना तो पड़ेगा ही, और उसका विवाह कब हुआ और उसने मुझे बुलाया भी नहीं ,मन में अनेक प्रश्न हैं  जो मैं उससे पूछना चाहूंगी प्रसन्न होते बोली। अपनी सखी से मिलने और बातें करने का सोचते हुए ही , उसकी आंखों में प्रसन्नता खिल उठी प्रसन्न होते हुए ,उसने काफी के मग उठाये  और रसोईघर में रखने चली गई। 

किशोर जी बोले -मैं अभी थोड़ी देर के लिए ,बाहर टहलकर आता हूं। मुझे कुछ काम है ,मानव मन भी कैसा है ? अभी तो कुछ घंटे पहले करुणा अपनी ही परेशानियों में ,अपने दर्द से जूझ रही थी। परेशान थी ,किंतु सहेली का पता मिलते ही, उसके लिए परेशान होने लगी।  प्रसन्नता के साथ-साथ अनेक प्रश्न उसके मन में उमड़ रहे थे आखिर वह कैसी होगी ?इतने दिनों से, उसने मुझे फोन संपर्क क्यों नहीं किया ?मन में  विचार आया ,प्रभा को आज ही फोन कर लूँ  किंतु जब घड़ी में समय देखा ,शाम के सात बज रहे थे। सोचा, इतनी जल्दबाजी भी उचित नहीं है ,कल फोन करती हूं यह सोचकर, वह रात का खाना बनाने चली गई। 

करुणा ,सब्जी में तड़का लगा रही थी ,तो सोच रही थी -कि जिंदगी भी कैसी है ?कभी-कभी कुछ घटनाओं से ,कुछ दुर्घटनाओं से, यह सभी की जिंदगी में एक 'तड़के' का काम ही तो करती है।लगातार,सरलता से फ़िसलती जिंदगी !अचानक ही कभी उतार पर आ जाती है तो कभी चढ़ाई करने लगती है। इसमें भी कभी जीरे का तड़का तो कभी लहसून -प्याज का ,कभी मसालेदार तो कभी व्रत के भोजन की तरह सादी ! जिससे हमारी जिंदगी कभी हसीन हो जाती है ,तो कभी दुखमय बन जाती है ,यही सब सोचते हुए वो मुस्कुरा दी। 

अगले दिन, घर के सभी कार्य पूर्ण करके, खाली समय देखते हुए ,करुणा ने वह कार्ड अपने हाथ में लिया और उसमें से फोन नंबर ढूंढने लगी। इस समय उस कार्ड का मूल्य  उसके लिए सिर्फ वह फोन नंबर था। फोन नंबर लगाकर ,बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगी। वह उधर घंटी बज रही थी ,किंतु इधर प्रसन्नता के कारण करुणा का हृदय जोरों से धड़क रहा था उसकी धड़कने बढ़ती जा रही थी, क्या पूछूंगी,वह क्या कहेंगी ?मन उत्साहित हो रहा था। कुछ देर तक घंटी बजने के पश्चात भी ,किसी ने फोन नहीं उठाया। करुणा ने झट से वो कार्ड उठाया और नंबर दोबारा पढा और उसे जाँचने लगी -नंबर तो सही है ,फिर फोन क्यों नहीं उठाया ? हो सकता है ,किसी कार्य में व्यस्त हो ,या कहीं गई हो क्योंकि विवाह का घर है तो इसीलिए उसकी व्यस्तता तो बढ़ ही गई होगी। यही सोचकर करुणा ने सोचा -कुछ  देर पश्चात फोन करती हूँ  किंतु मन नहीं माना दोबारा फोन लगाया अबकी बार फोन किसी ने उठाया।  एक भारी और थकी सी आवाज में किसी ने  कहा -हेलो !

अपनी धड़कनों की ताल पर, प्रसन्नता पूर्वक करुणा बोली - क्या मैं प्रभा से बात कर रही हूं। 

जी बोलिए !

क्या तुम प्रभा हो ? करुणा ने आश्चर्य से पूछा। 

जी बोलिए !मैं ही हूं ,आप कौन बोल रही हैं ?

आपकी बच्ची तूने मुझे पहचाना नहीं, मैं करुणा बोल रही हूं ? अचानक स्वर में थोड़ी तेजी आ गई, क्या कर रही थी, मैंने तुझे परेशान तो नहीं किया। 

नहीं -नहीन....... कोई परेशानी नहीं हुई। 

 करुणा को लगा -जैसे मेरे मन में उसके प्रति बात करने की उमंग है ,उत्साह है ,वह उत्साह प्रभा के स्वर में उसे कहीं नज़र नहीं आया, खुलकर बात नहीं कर पा रही है। करुणा ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा -कल ही तेरा कार्ड मिला ,क्या तेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई ? उसके विवाह की तैयारी कैसी चल रही हैं ? 

''जब हम बूढ़े हो रहे हैं तो, बच्चे तो बड़े होंगे ही,'' उसने अपना दृष्टांत पेश किया। 

उसकी बात सुनकर, करुणा को लगा ,जैसे मैंने कोई बचकानी बात कह दी हो किन्तु बात की शुरुआत करने के लिए कहीं से तो शुरुआत करनी पड़ती ,उधर के व्यवहार से तो जैसे उसके पास कहने को कुछ रहा ही नहीं ,उसके उत्साह पर भी ,जैसे किसी ने पानी फ़ेंक दिया हो। बात को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हुए पूछा -और बता ! तेरी जिंदगी में,क्या चल रहा है ?

चलना क्या है ? जी रहे हैं, ग़मों  के साए में, अपने उत्तरदायित्व पूर्ण कर रहे हैं। बस समय से और सही से, सब हो जाए, यही बहुत है। 

उसके जवाबों से करुणा के उत्साह का स्तर थोड़ा नीचे गिरने लगा, उसे लगा जैसे -उसके पास कोई सवाल ही नहीं रह गए हैं ,कहां तो वह सोच रही थी -उससे यह पूछूंगी ,उससे वह पूछूंगी , किंतु अब ऐसा लग रहा था जैसे -जबरदस्ती वह उसे कुरेदने का प्रयास कर रही थी। कोई बात ही नहीं मिली उसने भी ,कुछ जानने का प्रयास नहीं किया। उधर सिर्फ़ चुप्पी ही थी ,तब करुणा बोली - तेरे कितने बच्चे हैं ?

एक बेटी ही है, विवाह में ,ज़रूर आना !

हां हां क्यों नहीं आऊंगी ? अच्छा फोन रखती हूं ,कहकर करुना ने फोन रख दिया।

करुणा इतने वर्षों पश्चात उससे फोन पर बातें कर रही थी, किंतु प्रभा ने, कोई उत्सुकता नहीं जतलाई। उसके इस तरह के व्यवहार को देखकर ,करुणा का उत्साह ठंडा पड़ गया। क्या करूणा अब उसकी बेटी के विवाह में जाएगी ? आगे उसका क्या कदम होगा ? चलिए ! मिलते हैं ,अगले भाग में -''काँच का रिश्ता ''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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