Anakahi khvahishen

 जो पूर्ण न हो सकीं ,कुछ ऐसी लुभाती ख़्वाहिशें ! 

मोहक सी ,कभी कह न सके ,अनकही ख़्वाहिशें !


 उम्र के हर पड़ाव पर उभर आतींं , नई ख्वाहिशे ं। 

 तमन्नाओं के हाट में,सस्ती नहीं अनकही ख़्वाहिशें !



पूर्ण नहीं होतीं कभी , किसी 'अर्थ 'के बाज़ार.....  में ,

कहकर भी क्या हो जाता, किससे कहते?ये ख़्वाहिशें !


सागर सी हिचकौले  खातीं , पुनः लौट -लौट आतीं। 

कभी रुलातीं, कभी सतातीं ,'' अनकही ख्वाहिशें !


भटकते सभी ,पीछे अनकही ख़्वाहिशों के !

पूर्ण न हों ,दफ़्न हो जातीं ,बहुतेरी  ख़्वाहिशें !


तले, समय की दरो -दीवारों के,तोड़ती दम नज़र आतीं। 

राजा हो या रंक कभी न पूरी हो सकीं,उनकी ख़्वाहिशें ! 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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