Kanch ka rishta [part 21]

आखिर निधि का मन नहीं माना ,वह अपने दिल के हाथों मजबूर हो गयी और एक दिन जब यवन जी बाहर गए ,तो निधि अपने घर यानि मायके पहुंच गयी। उसे देखते ही भाई तो बाहर चला गया किन्तु निधि अपने मन की भड़ास, माँ से कहकर निकाल रही थी। पुनित ने न जाने ,घर आकर, अपने परिवार वालों को क्या-क्या बताया ? जब वह अपनी मां से प्रश्न पूछती  है -कि आप लोगों के व्यवहार में इतना फ़र्क कैसे आया ?जो मेरी बेटी के विवाह में भी नहीं आये। 

फ़र्क तो तुमने ,अपने व्यवहार से करवाया है, तब माँ ने  जवाब दिया। 

क्या फर्क करवाया है ? जरा मुझे भी तो पता चले !

तूने उसकी, बेइज्जती की थी ,जब वह तेरे घर गया था। 


यह बात उसने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ? जब मैं उसके लिए और परिवार के लिए कर रही थी ,जब उसे मान -अपमान नहीं सूझा।  अब जब मेरा काम पड़ गया तो उसे अपमान सूझ रहा है। इतने दिनों से वह क्या कर रहा था ? इससे पहले उसने मुझसे क्यों  कुछ नहीं कहा ? या फिर मौक़े  की तलाश था। यह सभी बातें सुनकर निधि को अत्यंत क्रोध  आ गया। 

तभी निधि की भाभी [प्रिया ]अंदर से निकलकर आई, उसने न ही ,निधि के पैर छुए और न ही उससे नमस्ते किया और रसोई घर में चली गई। 

यह क्या व्यवहार है ? क्या प्रिया को इतनी भी तहजीब नहीं रही, कि बड़ी ननद का कैसे स्वागत किया जाता है ?

अब सभी अपने घर के बड़े हो गए हैं, कोई किसी को नहीं पूछता है। 

क्यों नहीं पूछता है ? यह जो आप इन दोनों का समर्थन कर रहे हैं न....... यह आप पर ही भारी पड़ने वाला है।'' इंसान दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है और स्वयं भी, उसमें गिरता है।' आज यह मेरा सम्मान नहीं कर रही है ,कोई बात नहीं -किंतु कल को जब इसे लगेगा कोई रिश्तेदार नहीं आते जाते हैं। एक ननद थी, वह भी अब नहीं आती। कल को आपके साथ भी, ऐसा ही व्यवहार करेंगी। तब आप किसी से शिकायत भी नहीं कर पाओगी। रिश्तेदार आते -जाते रहते हैं ,तो उनकी थोड़ी -बहुत शर्म तो रहती है ,कि कोई क्या कहेगा ?

मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं करनी है, मैं तो अपना बुढ़ापा काट रही हूं। आजकल इन लोगों की ही चलती है, यह बड़े जो हो गए हैं। मां के शब्दों में दर्द था , शायद वह अपनी बेटी से कुछ भी कहना नहीं चाहती थीं, क्योंकि वह जानती थीं , कि बेटी स्वयं ही ,अपने आप में परेशान है।

माँ के शब्द ,निधि के कलेजे को चीर गए ,आख़िर माँ कहना क्या चाहती  हैं ?क्या ये इनके व्यवहार से परेशान हैं ,होंगी क्यों नहीं ?अब ये किसी पर निर्भर नहीं है। अपना कमाने जो लगा है ,किन्तु कमाने का यह अर्थ तो नहीं ,अन्य रिश्तों को ''ताक पर रख दे।''क्या अब इसे अब किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी ? निधि का मन तो नहीं था किन्तु फिर भी,वह निधि से बोली -पुनित कहाँ गया है ?

मुझे नहीं मालूम !कहकर अंदर चली गयी। 

क्या ज़माना आ गया है ?अपने घर आकर भी ,परायों की तरह बैठी हूँ। मेहमान बन गयी हूँ ,इसमें गलती किसकी है ?क्या इस लड़की की ,जो मेरे घर की मालकिन बनी बैठी है। क्या इसने  मेरे ही परिवार को मेरे विरुद्ध कर दिया या फिर मेरे उस भाई की ,जिसने रक़्त के रिश्तों के साथ -साथ राखी के उन धागों का महत्व ही भुला दिया या फिर अब उन राखी के रेशमी धागों में ,इतनी शक्ति नहीं रही ,जो रिश्तों को बांध सके। ऐसे भाई ,बहनों की रक्षा तो क्या करेंगे ? जिसकी  मैंने ही वर्षों तक सहायता की ,उसने उन सभी बातों को भुला दिया। जिन्हें रिश्तों का ,अपने रीति -रिवाज़ या परम्पराओं का कोई मान ही नहीं है।क्या एक पत्नी का रिश्ता ,अन्य रिश्तों  पर इतना भारी पड़ जाता है। माना कि पति -पत्नी का रिश्ता विशेष है ,इसका अर्थ यह तो नहीं ,उसके आगे अन्य रिश्ते अपना महत्व ही खो दें। मैं भी तो भाभी भी बनी हूँ ,माँ भी बनी हूँ ,पत्नी भी किन्तु यवन जी ने हर रिश्ते का उसी के आधार पर मान -सम्मान बनाकर रखा। 

आज निधि को, यवन जी पर बहुत प्यार आया। दिल ही दिल में ,उनके प्रति प्रेम और श्रद्धा से भर गयी। माँ से बोली -यवन जी ने ,अपनी बहन और अपने रिश्तों को कभी नहीं भुलाया ,हर आदमी को सम्मान देने का प्रयास किया और ऐसा भी नहीं कि किसी के लिए या किसी के सामने मुझे अपमानित किया हो। मैंने अपने परिवार के लिए जो कुछ भी किया ,उन्होंने कभी मुझे रोका नहीं किन्तु आज मुझे ही ,अपने परिवार के कारण उनके सामने अपमानित होना पड़ा। तभी तो आज उनके पीछे चोरी से यहाँ आई हूँ ,सोचते हुए ,उसकी आँखें नम हो आईं। 

 तभी बाहर कुछ आहट सी हुई ,मन  प्रसन्न होता तो......  बाहर जाकर देखती भी ,किन्तु मन तो अंदर से व्यथित है ,जो भी होगा ,आ जायेगा या जिनका घर है ,वे स्वयं बाहर जाकर देखें। उसे ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ा ,कुछ देर पश्चात ही ,दो महिलाएं और दो व्यक्तियों ने घर के अंदर प्रवेश किया। वे दोनों महिलाएं मुस्कुराते हुए ,अंदर प्रवेश करती हैं ,और आते ही ,मेरी माँ के पैर छूती हैं ,निधि को देखकर बोलीं -क्या ये दीदी हैं ?

माँ के हाँ कहने पर तुरंत ही ,निधि के पैर भी छूती हैं। आखिर ये दोनों कौन हैं ?निधि के मन में ,प्रश्न घुमड़ने लगते हैं ,वे दोनों भी आकर बैठ जाते हैं ,उन्हें देखकर निधि सोचती है -इन्हें तो कभी देखा है ,याद करने का प्रयास कर रही थी। 

निधि की परेशानी उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी। क्या आपने हमें पहचाना नहीं ?उनमें से एक ने निधि से प्रश्न किया। 

 आखिर वे लोग कौन हैं ?क्या निधि उन्हें जानती है ,क्या निधि का अपने घर आना उसके मन की व्यथा को कम कर पायेगा ?या फिर बात और बिगड़ जाएगी। क्या निधि रिश्तों को संभाल पायेगी ?जानने के लिए,अगले भाग की प्रतीक्षा कीजिये , पढ़ते रहिये -''काँच का रिश्ता ''


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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