Kanch ka rishta [part 20]

 निधि का मन नहीं मान रहा था ,उसके मन में बहुत सी बेचैनियां भरी हुई थी, अनेक प्रश्न उमड़कर आ रहे थे। अपने आप को बहुत, रोकने का प्रयास कर रही थी किंतु उसे लगता है -जब तक कोई बात नहीं हो पाएगी ,तब तक वह इसी तरह परेशान रहेगी। मन ही मन निश्चय तो कर लिया था ,कि वह अब वहां नहीं जाएगी। किंतु अगले ही पल मन उसे समझा रहा था , क्या इस तरह रिश्ते तोड़े जाते हैं ? हो सकता है, उनकी कोई मजबूरी या परेशानी रही हो ,इस कारण मुझे न बताया हो। कुछ समझ नहीं आ रहा था ,अजीब सी बेचैनी थी ,क्रोध भी जतलाना चाह रही थी और उनसे मिलना भी चाह रही थी। यवन जी के ड़र से कुछ कह नहीं रही थी वरना सबसे पहले उसकी क्लास वही लेते। उनसे अपनी बेचैनियों को छुपा रही थी, किंतु व्यवहार से, वह समझ जाते थे ,कि अंदर ही अंदर यह परेशान है। समय के साथ-साथ सब समझ जाएगी ,यही सोचकर, नजरअंदाज भी कर जाते। 


फोन की तरफ ,आशावादी नजरों से देखती है ,शायद उधर से कोई फोन आये और वो अपनी परेशानी मुझे समझा सकें । स्वयं फोन करने का सोचती है ,किन्तु तुरंत ही वापस रख देती है। न जाने क्या झूठ -सच मुझको बताएंगे ?हो सकता है ,फोन न भी उठायें और फोन नहीं उठाया तो मैं ये बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी। माता -पिता तो बेचारे विवश हैं ,जैसा वो नालायक [पुनित ]उन्हें जो बतला देगा वही उनकी समझ में आएगा और वो तो उसके [प्रिया भाभी ]दिमाग़ की कठपुतली है। वह अपना दिमाग तो चलाता ही नहीं है ,न ही उसकी अपनी कोई सोच है। आखिर मैंने ऐसा क्या कर दिया? जो उन लोगों ने मुझे ऐसे मौक़े पर धोखा दिया। 

यवन जी कुछ दिन के लिए, कारोबार के सिलसिले में बाहर चले गए थे। तभी निधि को मौका मिल गया। उसने सोचा इस तरह से तो काम नहीं चलेगा ,क्यों न...... अपने परिवार वालों से मिलकर सभी बातें स्पष्ट  कर ली जाएं और एक दिन वह, अपने घर पर जा धमकी। अचानक उसे देखकर सभी अचंभित रह गए। पुनित की तो उससे नज़रें ही नहीं मिल रही थी ,वह किसी बहाने से घर से बाहर निकल गया। 

मां ने पूछा -अचानक इस तरह कैसे आना हुआ ?

क्यों मुझे अपने घर आना नहीं चाहिए था? क्रोधित स्वर में निधि ने पूछा। 

नहीं ,आ तो सकती है ,किंतु अचानक इस तरह कैसे आना हुआ ?

तुम तो बुलाओगे नहीं, और मैंने तुम लोगों को बुलाया ,तब भी तुम नहीं आए , कितना समझाकर गई थी ? रिश्तो को निभाने में मैंने , कहां कमी छोड़ दी ? तुम अपने घर में बैठे रहो !तुम्हारा क्या बिगड़ेगा ?किन्तु मुझे तो अपनी ससुराल में जबाब देना पड़ता है। जब मुझसे पूछते हैं -मनु ,का मामा नहीं आया ,क्या हुआ ?पहल का विवाह है ,उसमें भी मामा नहीं आया। ख़ाली 'भात ' देना ही नहीं होता है ,''छिल्लर ''के पानी में बेटी की विदाई में ,सब मामा को ही पूछते हैं। वही ,मैं पूछने आई हूं। मेरा इकलौता भाई है , मैं सारा दिन इसकी प्रतीक्षा करती रही, इसे एक बार भी,यह नहीं लगा -कि वहां मेरी बहन मेरी प्रतीक्षा में होगी। कितने रिश्तेदार ,मेहमान आए हुए थे ? सभी के चेहरे पर मुझे एक ही प्रश्न नजर आ रहा था -'आखिर सगा भाई क्यों नहीं आया ?

शायद पुनित ने कुछ माँ के मन में कुछ उल्टा -सीधा भर दिया था , निधि की बात सुनकर मां बोली -क्यों तेरा वह नया भाई तो है ,उससे भरवा लेती 'भात '!

वह तो भर ही देता, जैसा वह भाई था ,उसने अपना फर्ज भी निभाया, यदि मैं उसे पटरी पर खड़ा करना चाहती तो वह पटरे पर भी खड़ा हो जाता किंतु सगे भाई ने क्या किया ? मैं, वह जानना चाहती हूं। यदि किसी के दो भाई या तीन भाई हो , तो एक दूसरे पर टाल देंगे। भले ही  सोे भाई बने कितने भी भाई बने ,इस बात से, क्या अर्थ है ? पुनीत को तो आना चाहिए था न........ उसे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए था। कहते हुए माँ के साथ ही रसोई में चली गयी। माँ ने उसके लिए गैस के चूल्हे पर चाय रखी। अब क्या चाय भी आप ही बनाकर दोगी। क्यों ?प्रिया !कहाँ गयी है ?मैं घर में आई हूँ ,उसका पति तो मुझे देखकर चला गया ,क्या उसे अभी तक पता ही नहीं चला ?अपनी बात को जारी रखते हुए उसने पूछा -बने हुए भाई से भी, उसे क्या दिक्कत है ? जब हम नौकरी पर रहते थे, तब वही काम आता था ,यह काम नहीं आया। अपनी परेशानियां सुनाता रहा और जब उसका फर्ज़ सामने आया तो...... मैदान छोड़कर ही भाग गया। कहां है वह उसे बुलाओ ! तो जरा ! मैं उससे बात करना चाहती हूं। 

अभी तेरे सामने ही तो बाहर गया है। 

बाहर गया है या नजरें  चुराकर गया है, यदि उसके मन में कोई चोर नहीं था, तो यहां आकर बैठा ,क्यों नहीं ? क्या उसे मेरे पास आकर, बैठना नहीं चाहिए था ? कि मेरी बड़ी बहन आई है, उसके मन में ,इतना फर्क कैसे आ गया ?कि मैं घर पर आई हूं , मेरे लिए रुका भी नहीं। 

आखिर निधि का यहाँ आना सफल रहा या नहीं ,वह रिश्तों में आई गांठ को खोलने में सक्षम रही या नहीं ,या फिर ये गांठे और बन गयीं। आखिर पुनीत ने ऐसा व्यवहार क्यों किया ?उसके मन में ऐसी क्या ग्रंथि बन गयी थी ?जिसको  लिए बैठा था ,क्या  वह उस  ग्रंथि को वो खोलना ही नहीं चाहता। पढ़ते रहिए -''कांच का रिश्ता''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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