Kanch ka rishta [part 17]

करुणा की मम्मी ने ,करुणा को एक अपने ही परिवार का एक किस्सा सुनाया था , इस किस्से को करुणा आज स्मरण कर रही थी। उस किस्से के अनुसार उसके ताऊजी जो बहुत वर्षो पहले 20 वर्ष की उम्र के थे तब उन्होंने एक 14 वर्ष की कन्या जिसका नाम रामकली था। उसके परिवार को ,अपने परिवार को बिना बताए ही, विवाह का प्रस्ताव भेज दिया और उससे विवाह भी कर लिया। इस सम्पूर्ण घटना का जब ताऊजी के परिवार वालों को पता चला तो अत्यंत ही दुखी हुए ,क्योंकि रामकली का परिवार अत्यंत ही गरीब था।  और वह लोग उस समय के जाने-माने जमींदार थे। उनकी पारम्परिक रीति के अनुसार रिश्ता ,अपने बराबर वालों में ही होना चाहिए। हो सकता है ,वह अपनी जगह पर सही हों  किंतु उस समय उनके ताऊ जी ने तो वही कार्य किया जो उन्हें उचित लगा। उन्होंने रामकली के पिता को वचन भी दे दिया था कि उनकी पुत्री का सम्मान उसी प्रकार होगा जैसे किसी अच्छे परिवार की लड़की का सम्मान होता है। 


उनके परिवार वालों को यह विवाह स्वीकार नहीं था ,अपने बेटे की भूल, कम उम्र की नादानी लग रही थी। तब उनके परिवारवालों ने सोचा, कि अपने बेटे को समझा -बुझाकर ,कुछ पैसे देकर इस लड़की को वापस भेज देते हैं किंतु उन्होंने यानी कि उनके ताऊ जी ने इस बात से इनकार कर दिया उन्होंने कहा -कि मैंने  इस लड़की के पिता को वचन दिया है कि मैं उसके मान -सम्मान की रक्षा करूंगा यदि आप लोग इसे बहू के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं ,तब मैं यह घर छोड़कर इसके साथ कहीं चला जाऊंगा। 

जब घर वालों ने देखा और सुना- कि लड़के ने घर छोड़कर जाने की जिद पकड़ ली है ,किंतु लड़की को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है ,तब लड़की की माताजी अपनी नई हवेली से निकलकर पुरानी हवेली पहुंचीं ,यह देखने के लिए कि देखें  तो सही ,कैसी बहू ब्याहकर लाया है , जिसके लिए वह अपने परिवार को भी त्यागने के लिए तैयार हो गया है। अपने बेटे के कारण अब उस लड़की को स्वीकार तो करना ही होगा। यह सोचकर वह जब पुरानी हवेली गईं -वहां उन्होंने लड़की के रूप और सौंदर्य को देखा तो उन्हें लगा जैसे कीचड़ का कोई कमल उठा लाया है ,उसकी सुंदरता से वह भी बहुत प्रभावित हुई और उसे अपने परिवार में ले आई, अपने परिवार में लाकर, उसका भली -भांति स्वागत किया और पूरे गांव को, भोजन के लिए आमंत्रित किया। अब यह बात सारे संपूर्ण समाज में फैल गई ,कि जमींदार साहब के बेटा विवाह करके आया है और बहु बहुत ही सुंदर है। 

यह कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती है, गरीब घर की बहु, जिसने इतनी धन -दौलत ,ऐशो-आराम , कभी देखा ही नहीं था। उसकी आंखें तो फटी की फटी रह गईं  इतने आभूषण, इतने महंगे और कीमती वस्त्र देखकर, उसके मन में लालच आ गया। उसने यह नहीं सोचा कि यह सब तुम्हारी सुख -सुविधा के लिए है बल्कि उसने यह सोचा - यदि मेरे परिवार का रहन-सहन भी इसी तरह का हो जाए, तो कितना अच्छा रहेगा ? ससुराल में तो उन्नति है ही, अब वह अपने परिवार की उन्नति सोच रही थी। उस घर की बेटी थी, सोचना भी स्वाभाविक था। अतरसिंह ने भी ,इतना धन -दौलत कभी नहीं देखा था ,पहली बार हवेली की शानो-शौकत देख रहा था। मन ही मन ईश्वर से अपनी बेटी की ख़ुशियों के लिए ,दुआएं मना रहा था। 

वह लोग जितनी अब तक आमदनी थी,उसी में गुजारा कर रहे थे ,अब तक उतने में ही प्रसन्न थे। किंतु जब बेटी का ऐश्वर्य देखा , तब उनके मन में भी, लालच आ गया। रामकली कभी अपने परिवार में मिलने जाती, तो एक से एक कीमती चीज ,उन्हें देकर आती। उसकी ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, नई बहू थी, कुछ रस्में भी हो रही थीं ,यह सभी जानते थे ,कि इसके परिवार में गरीबी है। आरंभ में उसने कुछ चीज़ें अपनी परिवार वालों को दीं।रामकली के ससुरालवालों ने स्वयं भी ,उसके भाइयों को उसके परिवार को अच्छे उपहार दिए। स्वयं रामकली भी उन्हें कुछ न कुछ सामान देकर आती ,आरम्भ में उसके ससुरालवालों ने उन सब बातों को नजर अंदाज किया। 

अब तो उसके परिवार वालों का लालच बढ़ने लगा, आए दिन, अपनी बेटी से, किसी ने किसी चीज की उम्मीद लगाते रहते और यदि वह नहीं भी देती ,तो मांग लेते। अब बात सर से ऊपर जा रही थी। अब रामकली की सास  ने उसे रोकना आरंभ कर दिया। वह उसे, अपने घर ले जाते हुए, सामान की जांच करने लगी। वह समझ गई थी, कि बहु सुंदर है, किंतु गरीब घर की है और इसके परिवार वाले लालची हैं। इसके भोलेपन का लाभ उठाकर, इससे आए दिन कुछ न कुछ चीजें मांगते रहते हैं।

 यह बात उन्होंने अपने बेटे से भी कही -इसीलिए तो कहते हैं - कि रिश्ता अपने बराबरी वालों में होना चाहिए, यदि गरीब घर की लड़की इतनी धन -दौलत ,ऐशो- आराम देखेगी, तो संभाल नहीं पायेगी। सबसे पहले वह अपने परिवार के लिए ही सोचती है ,कभी-कभी चोरी से भी देना आरंभ कर देती है। जैसा की रामकली कर रही है। 

 माँ ,अभी वो कम उम्र है ,आप उसे समझायेंगी ,यहाँ के तौर -तरीक़े बतलायेंगी ,तो समझ जाएगी ,बेटे ने जबाब दिया। 

अब उसकी सास ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने बड़े प्यार से ही रामकली को समझाना चाहा और बोली -तुम जानती हो, कि तुम्हारे और हमारे परिवार में कितना अंतर है ?किंतु हमारे बेटे ने फिर भी तुम्हें पसंद किया। तुमने यह भी देखा होगा अपने परिवार में तुम किस स्थिति में रह रही थीं और आज क्या स्थिति है ? आरंभ में तुमने कुछ सामान और कुछ उपहार अपने परिवार वालों को भी दिए हमने तुमसे कुछ नहीं कहा किंतु जहां तक हम देख रहे हैं, अब उन लोगों का लालच बढ़ता जा रहा है इसीलिए हम चाहते हैं ,तुम अपने परिवार वालों को इस तरह से सामान पैसे या खाद्य पदार्थ किसी भी किसी भी तरह की कोई सहायता अब नहीं करोगी ,तुम्हारे लिए यही बेहतर रहेगा। हमारे परिवार के लिए भी और तुम्हारे परिवार के लिए भी।

क्या रामकली पर अपनी सास के समझाने का असर होगा ?क्या अपने परिवार से मुख़ मोड़ लेगी ?इस तरह समझाने का क्या परिणाम होगा ,पढ़िए -अगले भाग में ''कांच का रिश्ता ''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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