किशोर जी करुणा को समझा रहे थे ,कि जब अपने ही समय पर साथ खड़े नहीं होते और समय पर साथ नहीं देते हैं तो फिर दूसरों से क्यों उम्मीद लगाती हो? जितने संबंध गहरे होंगे ,उतनी ही अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं और जब हमरी अपेक्षा के विपरीत व्यवहार हमें मिलता है ,तब हमें ही दुःख होता है।हो सकता है ,वो औपचारिक रिश्ता निभा रहे हों। क्यों ,उनकी उम्मीद बनते हो ? उनका कहने का तात्पर्य यह था -कि निधि और यवन उसके चचेरे भाई -भाभी हैं । करुणा को उनसे इतनी उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए क्योंकि आजकल सगे रिश्ते ही सगे नही रहे ,तब बने हुए या चचेरे रिश्तों से कैसे उम्मीद लगा सकते हैं ?यह रिश्ते भी तब तक हैं ,जब तक औपचारिकता बनी रहती है, ज्यादा लगाव या ज्यादा अपनापन ,फिर तकलीफ ही देता है। इधर किशोर जी करुणा को समझा रहे थे किंतु करुणा तो........ बरसों पहले कभी उसकी मम्मी ने उसे किसी रामकली ताई के विषय में कोई किस्सा सुनाया था। उस किस्से में खो गई थी। यह छोटे-छोटे किस्से हमारे बड़े बुजुर्ग या हमारे मम्मी -पापा हमें सुनाते हैं। उस समय हम ध्यान नहीं देते और एक कहानी के रूप में ले लेते हैं। किंतु यही किस्से कभी-कभी हमारे लिए सीख भी बन जाते हैं। जिसको आज करुणा महसूस कर रही थी।
जब मम्मी के ताऊजी ने रामकली की सुंदरता को देखकर,उनके ख़ानदान का पता लगाने के लिए अपने आदमी को उस गांव में भेजाथा ।
उसने , उस गांव के कुएं पर पानी भरती महिलाओं से उस लड़की के विषय में जानना चाहा।
तुम्हें क्यों दिलचस्पी है ?तभी एक महिलाओं की तेज निग़ाहों ने उसे पकड़ा।
मुझे नहीं , जमींदार साहब को है।
इसका पिता गरीब है ,किन्तु इज्जत रखता है। गांव में सभी ,इसके बाप की इज्जत करते हैं। जाकर ,अपनी सरकार से कहियो ! इधर नजर न रखें। वो महिला ऐंठते हुए बोली। वो महिला और कोई नहीं ,उस पीले वस्त्रों वाली लड़की की मौसी थी। उसे लगता था ,ये सभी अमीरज़ादे एक ही सोच के होते हैं। ग़रीब लड़की को देखते ही लार टपकने लगती है।
ताऊ अपने आम के बग़ीचे में उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। तब उस लठैत ने जाकर उन्हें सम्पूर्ण घटना बतलाई। ताऊ जी ने उसे थप्पड़ मारा और बोले -विवाह के लिए ही ,उसके घर -परिवार का पता लगाना था। तूने न जाने किस तरह से बात की और उन्होंने हमारे विषय में कितना गलत समझ लिया ?सभी लोग एक जैसे नहीं होते। तुम हमारे साथ रहते हो ,आज तक हमें जाने ही नहीं।
साहब ! ये उम्र ही ऐसी है।
ऐसी उम्र क्या है ?क्या हमारे बाप -दादा ऐसे हैं ,जो हम ऐसे निकलेंगे ,क्या तुम जानते नहीं हो ?हमारे लिए एक से एक परिवार से रिश्ते आ रहे हैं। अब हम उस महिला से बाद में निपटेंगे ,पहले ये बता ,वो किसकी बेटी है ?
वो अतरसिंह की बेटी है ,छोटी सी जमीन का मालिक है।
हमें उससे कुछ नहीं लेना ,जाओ !हमारी तरफ से ,उसे शगुन लेकर जाओ !तब देखते हैं ,उनका क्या जबाब आता है ?
क्या, ये सही रहेगा ?आपके घरवालों में से ,किसी को कुछ भी मालूम नहीं है। बड़े मालिक गुस्सा होंगे।
वो हम देख लेंगे ,उनसे हम बात कर लेंगे। तुम अपना काम करो !
ताऊजी का भेजा आदमी ,पूछते हुए अतरसिंह के घर पहुंचा ,तो क्या देखता है ?
एक या दो कमरों का कच्चा घर......
पहले तो कच्चे घर ही होते थे करुणा ने कहा।
नहीं ,हवेलियां भी होती थीं। महल भी होते थे। भेजे गए ,लठैत के घर से भी बुरी दशा थी। पहले तो उसे देखकर ही ,अतरसिंह बड़े अदब से झुका और उसके आने का उद्देश्य जानना चाहा। तब उसने बताया तुम्हारी बेटी के लिए छोटे सरकार का रिश्ता आया है।
कौन ?रामकली !के लिए
जो अभी कुएं पर पानी भर रही थी क्योंकि उस महिला ने पिता का नाम तो बताया था किन्तु बेटी का नहीं।
तभी उसकी मौसी बाहर निकलकर आई और बोली -तू यहाँ कैसे आया ?तुझे समझाया था ,न.....
तब अतरसिंह ने उसे सम्पूर्ण बातें समझाई ,तो वह भी शांत हो गयी। उसकी चौदह बरस की बेटी जमींदारों के घर की बहु बनेगी। उनके तो भाग्य ही खुल गए ,यह सोचकर अतरसिंह लठैत के संग ,अपने होने वाले दामाद को देखने बगीचे में ही पहुंच गया। उनकी शानो -शौकत देखकर ही उसे लग रहा था ,जैसे आसमान और जमीन का मिलन !किन्तु वो एक बेटी का बाप था। तब वो बोला -साहब ! एक शर्त पर विवाह कर सकता हूँ,हम लोग गरीब हैं ,आपके'' पैरों की धूल के बराबर भी नहीं ''किन्तु जब मेरी बेटी उस घर में ब्याहकर जाएगी तो उसका अपमान नहीं होना चाहिए ,उसे वो ही सम्मान मिलना चाहिए ,जो अच्छे ख़ानदान की बेटी को मिलता।
ठीक है ,हम ज़बान देते हैं ,उन्होंने कहा।
हमारे ताऊजी जानते थे,कि यदि घर में ,इस विषय में चर्चा की। तो कोई भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होगा बल्कि इसे अपना अपमान ही समझेंगे। क्या इनके रिश्ते नहीं हो रहे ?अच्छे ख़ानदानी परिवारों से रिश्ते आ रहे थे।
क्या रामकली इतनी सुंदर थी ?जो आपके ताऊजी !एक ही नजर में लट्टू हो गए और ख़ानदान की परवाह भी नहीं की।
हाँ ,जब मैंने उन्हें देखा था ,लम्बी ,छरहरा बदन ,लम्बे केश ,बड़ी -बड़ी आँखें ,दूध जैसा चिकना बदन ! बस उसके परिवार की ग़रीबी ही उसका दोष थी। ताऊजी ने उसके पिता को वचन दिया और रातों -रात विवाह करके रामकली के संग अपने गांव आ गए। तब बात सम्पूर्ण गांव में ''आग की तरह फैल गयी।''उस नई बहुरानी को देखने के लिए सारा गांव उमड़ पड़ा। जब हमारे घरवालों को इस बात का पता चला तो घर में मातम सा छ गया। घरवालों के लिए तो ''नाक कटने वाली बात'' हो गयी।
कहानी तो बड़ी रोचक है ,उस जमाने में ,उन्होंने ऐसा कदम उठाया।
उस जमाना क्या ? क्या उस जमाने में इंसान नहीं रहते थे ?तुम आगे की कहानी सुनो !हमारी जो दादी थीं ,उन्हें बहुत दुःख हुआ क्योंकि तब तक उन्होंने अपनी बहु को नहीं देखा था। डोली को ,पुरानी हवेली में ही रुकवा दिया गया और घर के सभी लोग इस अचानक आई। परेशानी से उबरने का प्रयास करने लगे। पहले सोचा -'बेटे को समझाया जाये और लड़की के घरवालों को ,कुछ पैसे देकर,लड़की को वापस उसके घर भेज दिया जाये। किन्तु ताऊजी ने ,स्पष्ट शब्दों में कह दिया -हमने लड़की के पिता को वचन दिया है ,इसे वही सम्मान मिलेगा ,जो भी हमारी पत्नी होती ,उसे मिलता। यदि आप लोग ,इसे अपनी बहु के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं ,तब हम इसे लेकर कहीं और चले जायेंगे।'
आगे क्या हुआ ?क्या उनकी पत्नी को आदर सहित उस घर में स्थान मिला ?इस कहानी को बताने का उनका उद्देश्य क्या था ?जानने के लिए पढ़िए -'काँच का रिश्ता ''