निधि ने ,न जाने कैसे -कैसे अपने मन को समझाया था ?और अपने मन के दर्द को संभाले घूम रही थी किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकती थी ,वह किसी से कहे भी तो क्या ?कि मेरे अपने घरवाले मेरी बेटी के विवाह में नहीं आ पाए ,इसमें उसका ही नहीं, घरवालों का भी अपमान है किंतु जब बेटी की विदाई के समय फिर से मामा की आवश्यकता पड़ी। तो वह सोचने लगी अब क्या किसी को क्या जवाब दें ? ससुराल वाले प्रश्नात्मक नजरों से उसे देख रहे थे। उसे लग रहा था ,जैसे उनकी नजरें नहीं ,छोटे -छोटे नुकीले तीर उसके तन को भेद रहे हैं। इससे पहले कि कोई कुछ पूछे भी ,तो वह नजरें चुरा जाती। उसकी जेठानी ,देवरानी मुँह पर पल्ला ,ढके मुस्कुराती भी तो लगता, उसका मज़ाक बना रहीं है। बाहर जाते हुए यवन जी, एकदम से रुक गए और बोले - क्या यह रस्म बिना मामा के नहीं हो सकती ?
हो सकती है, किंतु जब मामा है, तो फिर उसके बग़ैर ये रस्म क्यों करनी है ?आगे के शब्द तो निधि सुन ही नहीं पाई ,क्योकि उसके ह्रदय में तो जैसे भूचाल मचा था। मन ही मन ,अब उस घर में ,कभी कदम न रखने का अपने आप से उसने वायदा किया।
यवन जी के मन में तो बहुत कुछ आ रहा था और सोच रहे थे -कह दें , कि इसके मामा ही नहीं है ,हमारे लिए मर ही गया ,किंतु शांत रहे और इससे पहले कि वह कुछ कहते , तभी निधि के चाचा के लड़के आगे आ गए और बोले -हम हैं , बिटिया के मामा !
तब पीछे क्यों खड़े हैं , आगे आइये !और विदा कीजिए इस तरह से विदाई की रस्म पूरी हुई। निधि दूर तक मनु की गाड़ी को जाते हुए देखती रही और रोती रही। यह पल दोबारा वापस नहीं आएंगे। भाई ! तुझे आना चाहिए था ,सोचकर वह और जोर-जोर से रोने लगी.
भाभी ! शांत हो जाओ ! अभी ज्यादा दूर नहीं गई है, वह फिर से ''पग फेरे की रस्म के लिए,'' दो-चार दिन में फिर से आ जाएगी। करुणा उसे समझाते हुए बोली।
धीरे-धीरे सभी मेहमान भी जाने लगे, तब निधि ने यवन जी को बताया - करुणा भी जाने के लिए तत्पर है, मैं तो सोच रही थी -कुछ दिन यहीं रह जाती।
क्यों ?उसका कोई अपना घर परिवार नहीं है ,उसकी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं , कम से कम जरूरत के वक़्त आकर तो खड़ी हो गयी। उनका इशारा पुनीत की तरफ था। अगर वह जाना चाहती है तो उसे जाने दो ! यवन जी ने अपना निर्णय सुनाया।
इस तरह करुणा का देना-लेना करके, उसको विदा कर रहे थे। तभी करुणा के पति किशोर आगे आए और बोले-आपने अपनी बेटी का विवाह किया है ,देने -लेने से कुछ नहीं होता। आपने हमारा मान रखा , हमारे लिए यही बहुत है। आजकल इस देने -लेने के चक्कर में कुछ लोग, मेलजोल ही खत्म करते जा रहे हैं। न ही ,उनके मन में रिश्तों की अहमियत है, और न ही वह निभाना चाहते हैं। उन्हें किसी के मान- सम्मान से कोई मतलब नहीं होता है. वह शायद अपने मन का दर्द हल्का देना चाहते थे ,किंतु शांत हो गए। करुणा के चाचा तो जानते थे, कि करुणा के परिवार में, कुछ तो चल रहा है हालांकि करुणा ने उन्हें बताया नहीं किंतु जब साथ रहने वाले होते हैं, रिश्तेदार होते हैं ,धीरे-धीरे सबको समझ आने लगता है।
जो लोग नजदीक रहते हैं, आदमी की सोच, उसके व्यवहार, से धीरे-धीरे उसके रिश्तों, और उनके व्यवहारों को समझने लगते हैं। यही सोचकर यवन जी ने, करुणा को, अपनी बेटी के विवाह में बुलाया था ताकि जो सम्मान उसे अपने सगे भाइयों के घर में ना मिल सका , उसे वह दें किंतु किशोर जी के अलग ही, आदर्श थे। किशोर जी की नजरों में, उसके चाचा,चाचा ही थे , जो रिश्ते सगे हो सकते हैं, वह बनाए हुए रिश्ते नहीं हो सकते। उनके मन में, अपनी ससुराल वालों की तरफ से, दुख -क्रोध सभी था किंतु फिर भी अपनापन, करुणा के भाइयों से ही था।
होटल से अब वह लोग घर आ गए थे, जिस घर में दो दिन पहले खूब चहल पहल हो रही थी, वह एकदम शांत खड़ा था। उजाड़ सा गया था, धीरे-धीरे फिर से उसे घर में, उसे घर की आत्मा लौटानी है, घर पहुंचते ही सभी नहा धोकर, आराम करने लगे सभी के मन में बहुत कुछ चल रहा था, किंतु एक चुप्पी थी। कहना चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहे थे। ऐसा लग रहा था यदि कोई बात छेड़ दी, अपनी ही हानि होगी। निधि ने शाम को सबके लिए चाय बना दी , साथ में बैठकर चाय पी रहे थे, और एक दूसरे को, देख रहे थे।
यवन जी बोले-तुम्हारे भाई से तो सब परे ही परे हैं, उसका तो अपना कोई मान सम्मान इज्जत है नहीं, कम से कम हमारा तो ख्याल रखता। जब तक नौकरी नहीं लगी थी, हमारे घर आकर कई दिनों तक पड़ा रहता था। उसने अच्छी रिश्तेदारी निभाई, नौकरी लगते ही, रिश्ता ही तोड़ दिया। क्या जमाना आ गया है ? निधि के पास उन्हें कहने के लिए कुछ भी जवाब नहीं था। क्या कहे ?चुपचाप सुन रही थी।
इससे तो तुम्हारा, मुंहबोला भाई ,अच्छा निकला ,आया भी, वह जानता था, की मामा को कुछ देना होता है, अपनी मनु के लिए एक सोने का सेट देकर गया। तुम्हें ही अपने भाई को पटरे पर चढ़ाने की जिद थी। यदि तुम चढ़ा हो या सम्मान देतीं , तो वह खुशी-खुशी सारी रस्में निभाता। उसे सम्मान देने चली थीं , जिसका वह हकदार ही नहीं था। देखा, किस तरह सब रिश्तेदारों के सामने, हमारे मुंह पर तमाचा सा मार गया।
निधि जानती थी, कि विवाह में ये......... कुछ नहीं कह सके, अब अपने मन की भड़ास निकाल रहे हैं. गलती हुई है ,तो सुनेगी भी वही, यह सोच कर चुपचाप चाय पीती रही। कुछ देर पश्चात , कप उठा कर ले गई। रसोई घर में जाकर सोचा -उसे एक बार फोन कर लूं, नहीं, मैं फोन नहीं करूंगी। अब फोन करके वह भी क्या जाएगा ? जो उसे अपमान करवाना था करवा दिया। अपने आप को घर के कार्य में व्यस्त होने करने का प्रयास कर रही थी। किंतु बार-बार मन कह उठता, एक बार फोन करके पूछ तो लूं -वह क्यों नहीं आया ? हो सकता है ,कोई परेशानी आ गई हो ?
अनेक विचार मन में आ रहे थे। उसे फोन नहीं करूंगी, सीधे मम्मी से बात करूंगी। उनसे भी बात करके क्या हो जाएगा ? वह तो उसकी हां में हां ही मिलाएंगी। उसका दिया जो खा रही हैं। उसकी पत्नी को फोन करके देख पूछती हूं, उसकी पत्नी से पूछने पर भी क्या हो जाएगा ? जब अपना सगा भाई ही अपना ना हुआ, तो पराये घर की, वह क्या अपनी होगी ? हो सकता है, उसी ने मना किया हो। एक बार यह तो पूछूं, जब तुम अपने घर जाती हो, तो क्या तुम्हारे भाई -बहन और परिवार वाले ,तुमसे ऐसा ही व्यवहार करते हैं। क्यों नागिन को छेड़ना ? विचारों को झटका दिया। एक गहरी सांस ली. उसका दम सा घुट रहा था। बाहर बालकनी में आकर गहरी -गहरी सांसें लेने लगी। कैसे रिश्ते हो जाते हैं ? बस अब तो पत्नी, और पत्नी का परिवार ही अपना नजर आता है।''वह परायी होकर भी, अपना परिवार अपने संग ले आती है और ये......... अपने रिश्तों को ही खो देते हैं। ''
क्या निधि अपने भाई से नाता तोड़ लेगी ? करुणा न जाने अपने मन में क्या लिए बैठी है ? क्या वह अपने रिश्तों को सुलझा पाएगी? या उनकी उलझनों में उलझ कर ही रह जाएगी।