Kanch ka rishta [part 13]

 भाभी !भाभी ! आपको क्या हुआ ?आप इस तरह ,क्यों रोए जा रही हैं ? करुणा ने निधि को हिलाते हुए पूछा। निधि न जाने कब से बैठी हुई ,अपने भाई के विषय में सोच रही थी -उसे बहुत ही दुख और अपमान लग रहा था कि मेरा भाई मेरी बेटी के विवाह में नहीं आया। रिश्तों को कितना जोड़ने का प्रयास कर रही थी ?किंतु वह है, कि रिश्ते न ही जोड़ना चाहते हैं और न ही समझना चाहते हैं। न जाने कैसे बुद्धि पलट गई है ?अब उन्हें वही बहन दुश्मन नजर आती है। जब जरूरत थी ,तब ये तेवर नहीं दिखाए। उसे इस बात की भी परेशानी नहीं थी। सबसे ज्यादा परेशानी ,अपने पति द्वारा सुनाये जाने वाले उलहाने की थी। अभी तो शांत हैं किन्तु उनके मन में अभी भी ,कुछ न कुछ अवश्य चल ही रहा होगा। 


जब मैं , अपनी ससुराल की महिलाओं को लेकर भात नौतने के लिए गई थी ,तब भी ,उन्होंने कोई तैयारी नहीं की थी। जब जाकर ही बैठ गयी ,तो..... शायद उन महिलाओं की शर्म के कारण ,थोड़ी रूचि दिखलाई थी। उनके तेवर किसी ने देखे या समझे या नहीं समझे किन्तु वह अच्छे से समझ गयी थी। तब वह उन्हें बहुत समझाकर आई थी। तब भी ,उसकी बुद्धि में यह बात नहीं भरी। करुणा कन्यादान करके थोड़ी देर के लिए ,अंदर आराम करने के लिए आ गयी किन्तु यहाँ उमड़ आये विचारों के बादल ने उसे सोने ही नहीं दिया। गहन दर्द के तल में चलती चली गयी। जहाँ से उसे सिर्फ दर्द के सिवा कुछ नहीं मिला। 

भाभी ! फेरे हो गए हैं ,अभी कुछ रस्में निभाने के लिए आ जाइये ,अब लड़की की विदाई का समय है।यहाँ   भाभी, बैठकर रोये जा रही हैं , करुणा को लगा -शायद ,भाभी को बेटी के विदा होने का दुख है। कुछ देर पश्चात ही मनु अपनी ससुराल चली जाएगी सभी रिश्तेदार चले जाएंगे मैं भी, अपने ससुराल चली जाऊंगी तब भाभी कितनी अकेली हो जाएंगीं , शायद यही बातें सोच कर वह रो रही है। निधि कुछ थक सी गई थी,आदमी इतना काम से नहीं थकता जितना मन की उलझनों में थक जाता है ,कुछ ऐसी ही थकावट इस समय निधि को हो रही थी।  उठते हुए बोली -दीदी !कुछ ऐसे ही थकावट सी हो गई थी.......  

हाँ ,मैं समझ सकती हूँ ,कई दिनों से विवाह की तैयारी में जो व्यस्त थीं ,अभी क्या थकावट महसूस होगी ?वो तो बाद में महसूस होगी ,किंतु आप सोच क्या रही थी ? करुणा ने प्रश्न किया। 

अब सोचना ही क्या है? बेटी विदा हो जाएगी घर सूना हो जाएगा , उस घर में अब उसकी आदत जो हो गई है ,यही सोच रही थी ,कैसे रहूंगी ?कुछ दिन तो खलेगा ही। अपने मन की व्यथा को छिपा गयी। लड़की के लिए ,दोनों तरफ से ही परिवारों का मान रखना होता है। 

 हां यह बात तो है ,करुणा ने समर्थन किया। 

तब निधि बोली -क्यों न दीदी ,आप कुछ दिन के लिए हमारे साथ ही रुक जाओ ! 

आपका कथन सही है, भाभी !किंतु वह तो अभी चलने के लिए कहअपनी भांजी की विदाई करता है  रहे हैं ,उन्होंने इसीलिए तो मुझे आपसे बात करने के लिए भेजा था। कह रहे थे -अब तो विवाह हो जाएगा तुम्हें भी अपना घर संभालना चाहिए। तब मैंने कहा-भाभी से पूछ कर बताती हूं शायद उन्हें कोई कार्य हो !

ननदोई जी ! ठीक ही कह रहे हैं, चलिए !पहले बसौड़ की रस्म कर लेते हैं, उसके पश्चात थोड़ी पूजा -पाठ के पश्चात मनु की  विदाई हो जाएगी। तब सोचते हैं ,क्या करना है ?अभी तो आप मेरे साथ ही चलिए ,निधि ने  जवाब दिया। 

अरे !लड़की का मामा कहाँ है किसी ने पूछा। वही तो अपनी गोद में उठाकर ,भांजी को गाड़ी में बैठाता है। यह सुनते ही निधि के ''पैरों तले की जमीन ख़िसक गयी।''कब से अपने को संभाले थी ?

यवन जी विदाई की सम्पूर्ण देखने के लिए बाहर जा रहे थे ,तभी उनके कदम वहीँ के वहीँ रुक गए और बोले -इससे क्या फर्क पड़ता है ? अब विवाह हो चुका है, बेटी को मामा  के न  होने पर रोक तो नहीं सकते। यह सब बेफिजूल की बातें हैं। आजकल लोग रिश्तों को ही अहमियत नहीं देते, आप रस्मो की बात कर रहे हैं। उन्होंने निधि की तरफ देखते हुए कहा।

अब तो निधि के हृदय में भाई के प्रति दुख दिन क्रोध को जन्म दिया। मन ही मन सोच रही थी-अब कभी उसे घर में कदम नहीं रखूंगी। अरे काहें का भाई ! जिसे अपनी बहन के मान सम्मान का तनिक भी ख्याल नहीं रहा। चाचा बार-बार आकर पूछते हैं -' कोई कार्य तो नहीं ,जो काम उसे करना चाहिए ,वह चाचा के बच्चे आ -आकर पूछ रहे हैं। किंतु मुझे ऐसा लगता है जैसे बार-बार मुझे मदद के नाम पर आकर चिढ़ा रहे हैं। 

 क्या मनु की विदाई, इसी कारण से रुक जाएगी या निधि को फिर से अपमान सहन करना होगा। कैसा यह बहन -भाई का रिश्ता है? जब बहन को आवश्यकता थी, तब भाई ने उसका साथ नहीं दिया। भाई को भी तो लगता है, की बहन ने उसका अपमान किया। दोनों में से कौन सही है और कौन गलत ? यह आप अपनी समीक्षाओं द्वारा बतलाइए और पढ़ते रहिए - ''कांच का रिश्ता''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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