तुम कुछ कहते क्यों नहीं ?
क्यों छुपा लेते हो ,वो दर्द !
जो बरसों से.........
तुम्हारे सीने में दफन है।
क्यों, यह भार बढा रखा है ?
क्यों ,छिपाना चाहते हो ?
क्या कोई,खजाना बड़ा है।
साथ कुछ नहीं जाना है ,
यहीं सब रह जाना है।
क्यों ?क्या इसे साथ ले जाना है ?
खुलकर कुछ दिन जीते क्यों नहीं ?
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ?
अरमानों के तले दबी.........
सिसकी लेते क्यों नहीं ?
तुम्हारी चुप्पी कुछ कहती है ?
तुम क्यों ?कुछ कहते नहीं ?
चिंगारी दबी राख में,
उसे बुझाते क्यों नहीं ?
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ?
तुम ही तुम नहीं हो,
संग तुम्हारे हम ,हो जाओ !
मित्रों से मिलो, कुछ गुनगुनाओ !
आओ ! रिश्तो में घुलमिल,
उन्मुक्त हो जाओ !
जानती हूँ ,बहुत कुछ कहना है ,
क्यों ?चुप रहना है ,मुक्त होते क्यों नहीं ?
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ?
चुप्पी में तुम्हारी ,तुम्हें ढूंढती हूँ।
अपने आप से ही ,मिलते क्यों नहीं ?
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ?