Svchchh abhiyaan

कुछ दिनों पहले मैंने सुना -लोग कहते है -यार !विदेशों में कितनी स्वच्छता है ? वहां के लोगों का रहन-सहन कितना अच्छा है ?यहां भारत में क्या है ?गंदगी के सिवा ,धूल -मिटटी के सिवा ! यहां कुछ भी नहीं। कुछ दिनों पहले मैंने कुछ वीडियों भी देखीं ,जिनमें एक बुजुर्ग गटर के पानी में सब्जियां धो रहा था और उन्हें धोकर बेचने के लिए ठेले पर रख रहा था। एक वीडियो देखी -गन्ने के रस वाला व्यक्ति ,जो बर्फ वह गन्ने के रस में डाल रहा था ,उसमें मांस रखा था ,जिसके कारण लोग उसका विरोध कर रहे थे और झगड़ भी रहे थे। अभी हाल ही में, एक अन्य व्यक्ति आम बेचने वाला उन आमों पर '' मूत्र विसर्जन ''कर रहा था। फलों के जूस वाला ,जो ''फलों के जूस ''में भी वही कार्य कर  रहा था। 


यह तो अभी की बात नहीं है कुछ महीना पहले की बात है, कि कुछ लोग अपना थूक दूध में डाल देते हैं, या  खाने के सामान पर थूक लगाते हैं। ऐसे ही कुछ, संदेश और वीडियो देखने और सुनने में आए। यह सब क्या हो रहा है ? इंसान ही इंसान का दुश्मन हो रहा है। इन सब बातों से वह क्या साबित कर देना चाहता है ? जो व्यक्ति वीडियो बना रहा है उसने उस बुजुर्ग को गटर के पानी में सब्जियों को धोते हुए वीडियो बनाया किंतु उसे मना क्यों नहीं किया ? न जाने कहां की वह वीडियो होगी। इस वक्त उसे उसका विरोध करना चाहिए था, उसे पुलिस के हवाले करना चाहिए था। लोग वीडियो बनाते हैं और डाल देते हैं। इसका विरोध क्यों नहीं करते ? उन्हें पुलिस के हवाले क्यों नहीं करते ? भारत में रहकर ही ,भारत की बुराई करते हैं। यही का नमक खाते हैं और यहीं की बुराई करते हैं। अपने व्यवहार में अपनी सोच में बदलाव क्यों नहीं लाते ?

वह किसकी प्रतीक्षा में है , क्या किसी सत्पुरुष? या युगपुरुष की तलाश में है कि वह आएगा और इन सभी समस्याओं का समाधान करेगा। वह स्वयं ही अपने आसपास, होने वाली गंदगी को साफ करवाने का प्रयास क्यों नहीं करते ?'' स्वच्छ अभियान'' यह मोदी जी ने ही क्यों चलाया ? हर आदमी के मन में यह प्रश्न क्यों नहीं उठा ? यही भारत का एक नागरिक यदि विदेश में जाता है , तब वह भी इधर-उधर कचरा नहीं फेंकेगा , कचरे के लिए अलग बेेग रखता है ,तरीके से उठेगा तरीके से बैठेगा। वही कार्य वह यहां भारत में रहकर क्यों नहीं करता है ? किसी भी चीज को खाएगा और पॉलिथीन ,रैपर बाहर फेंक देना। कूड़ेदान में ही कूड़ा क्यों नहीं डाला ? यह गलती किसकी है ? इसके लिए क्या किसी विशेष राजनेता का या किसी विशेष पार्टी की प्रतीक्षा ,हमें करनी चाहिए। कौन ऐसा' युग पुरुष 'आएगा कि गलियों में ,सड़कों पर झाड़ू लगाएगा, हमारी गंदगी को साफ करेगा, वह तो हमें स्वयं ही करनी होगी। 




हम इस भारत को ही, विदेशों  जैसा स्वच्छ क्यों नहीं बनाते ? हम इस देश का नमक खा रहे हैं ,इस मिट्टी की में पल -बढ़ रहे हैं, किंतु प्रशंसा विदेश की करते हैं, जबकि विदेशी लोग हमारे देश का सम्मान करते हैं ,आदर करते हैं। वहां स्त्री ही नहीं ,पुरुष भी साथ में सहयोग करते हैं ,यहां स्त्रियां सारा दिन घरों में कार्यों में व्यस्त रहती हैं किन्तु पुरुष....... उनका कार्य तो बस बाहर से कमाकर लाना था ,या सारा दिन घर मे बैठना ,महिलाएं भी ऐसा नहीं सोच सकती थीं ,किन्तु अब आने वाली पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आया है। मिलकर कार्य करने में विश्वास करने लगे हैं। 

मैं ये नहीं कहती ,कि वीडियों मत बनाओ ,बनानी चाहिए लोगों को जागरूक होना चाहिए किंतु ऐसे लोगों को तुरंत सजा मिलनी चाहिए ,जो खाने -पीने की चीजों में ऐसी गंदगी फैलाते है। अपना घर और अपने आस -पास तो स्वच्छता रख ही सकते हैं। और बाहर भी घूमने जाएँ तो सड़कों पर गंदगी न फैलाएं। तब देखिए हमारा देश कैसे धीरे-धीरे स्वच्छ होता चला जाएगा? देश में गंदगी फैलाने वाले भी हम लोग ही हैं और उसे संवारने वाले भी हम ही हैं। विदेशों  की  प्रशंसा करने की बजाय , अपने देश का सम्मान करना सीखें। यह भी तो हमारा घर ही है। अपने घर को स्वच्छ कैसे बनाना है ? यह कार्य भी हमारा ही है। और ऐसे लोग जो खाने-पीने में गंदगी फैलाते  हैं, उनका तुरंत ही बहिष्कार होना चाहिए, ऐसी सोच रखने वाले व्यक्ति दंड के भागीदार हैं । जहाँ कहीं  भी खाने -पीने की वस्तुओं में इस तरह की गंदगी फैलाते दिखलाई दे जाएं उनका पुरजोर विरोध होना चाहिए और उन्हें सजा मिलनी चाहिए ताकि कोई और इस तरह का साहस न कर सके। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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