आज' मिसेज खन्ना 'कुछ विशेष लग रही हैं , क्योंकि उन्होंने जो साड़ी पहनी है, उसको बांधने का तरीका ही अलग था। यह सुझाव उन्हें, नीलिमा ने ही दिया था, बल्कि साड़ी ही ,नीलिमा ने पहनाई थी। मिसेज खन्ना के घर चांदनी के आने का उद्देश्य ,नीलिमा को अपमानित करना था। वह नीलिमा को एक नौकरानी के रूप में देखकर प्रसन्न होना चाहती थी। किंतु जब वह आई, तो उसे नीलिमा कहीं भी दिखलाई नहीं दी। अपना उद्देश्य पूर्ण होते न देखकर, तब वह मिसेज खन्ना से, अपनी नई नौकरानी से मिलवाने के लिए कहती है। जिसे स्वयं चांदनी ने उनके घर भेजा था। अपनी सहेली की बात सुनकर, मिसेज खन्ना प्रसन्न होती है और अपनी नौकरानी को आवाज लगती है -चंपा !!!ओ चंपा !!!जरा इधर आना तो.......
'चंपा 'शब्द सुनकर 'चांदनी,' एकदम बौखला उठी और बोली-उसका नाम चंपा नहीं है।
किंतु उसने तो मुझे अपना नाम 'चंपा' ही बताया है ,मिसेज खन्ना भोली बनते हुए बोलीं। चंपा के हाथ का गिलास काँपने लगा, उसे लगा ,जैसे-'मिसेज खन्ना को उसके विषय में सब कुछ पता चल गया है इसीलिए इस नाम को पुकार कर मुझे अपमानित करना चाहती है। उसने अपने आस -पास की महिलाओं पर नजर दौड़ाई किन्तु सभी अपनी -अपनी बातों में व्यस्त थीं। उसके मन में विचार आया ,कहीं ऐसा न हो ,इतने, दोस्तों में ,वह मेरी पोल खोल दे या फिर नीलिमा ही ,यहां पर आकर, उसके विषय में सब कुछ बता दे ! हालांकि उसने अपने को इस तरीके से बदला हुआ था। पहली चंपा को देखकर ,कोई कह ही नहीं सकता कि यह वही चंपा है जो आज की चांदनी बनी हुई है। उसके रहने -सहने का तरीका ,उसके कपड़े अपने आप को उसने पूरी तरह बदलने का प्रयास किया है किंतु उसका चेहरा तो वही है। उस चेहरे को कैसे झुठला सकती है ? नीलिमा रसोईघर के अंदर गई तो थी, किंतु उसका ध्यान बाहर ही था।
नीलिमा ने जब पहली बार, अपनी बेटी के कार्यक्रम में'' चांदनी'' को देखा था , वह उसे तभी पहचान गई थी। वह जान गई थी ,कि यही चंपा है, किंतु पैसे ने, इसका इतना रूप -रंग बदल दिया है ,एक बार को तो नीलिमा को भी धोखा हुआ था। बेटी के कहने पर -'हमशक़्ल भी तो होते हैं ,उसने अपना विचार त्यागने का निर्णय लिया और जब उसका नाम चांदनी सुना , तब उसे आश्चर्य हुआ कि उसने नाम भी बदल दिया।शायद , अपनी पुरानी यादों को, वह पूरी तरह से मिटा देना चाहती थी किंतु उसका चेहरा तो वही था। अपनी बेटी के कहने पर, हो सकता है, पूजा की कोई हमशक्ल हो। उसका तर्क अपनी जगह सही था।
किंतु नीलिमा का मन नहीं मान रहा था इसीलिए उसने, उस दिन , चांदनी की गाड़ी का पीछा किया था और संयोग की बात देखिये -उसे जिसकी तलाश थी , वह भी उसे वहीं मिल गया यानी की ''जावेरी प्रसाद'' जी '' यह कोठी उन्हीं की थी, जिनकी तलाश में नीलिमा, मुंबई तक आ पहुंची। उन्हीं के कारण, उसे अपमान का घूंट पीना पड़ा। तब तो उसे विश्वास हो गया, अवश्य ही, इस चांदनी और ''जावेरी प्रसाद जी 'का कुछ नाता है। आखिर ''जावेरी प्रसाद जी 'को मुझसे क्या दुश्मनी हो सकती है ? यह विचार उसके, सोचने के लिए काफी था। हो ना हो, यह चंपा ही है, और हो सकता है ,वह 'जावेरी प्रसाद जी 'की आड़ में , मुझसे बदला ले रही हो। इसीलिए यह बात उसने बेटी को न बताकर, स्वयं ही, इसकी छानबीन आरंभ कर दी।
सबसे पहले तो वह एक कामगार बनकर, चांदनी के घर में प्रवेश करती है ,किंतु न जाने क्यों ? चांदनी उससे मिलती ही नहीं है और श्रीमती खन्ना के यहां भेज देती है,जब से श्रीमती खन्ना के यहां नौकरी पर आई है ,मिसेज़ खन्ना को लग रहा था ,कि वह अवश्य ही ,चांदनी के विषय में कुछ ना कुछ जानती है। इतने दिन हो गए ,किंतु अभी तक नीलिमा ने उसके विषय में अपना मुंह नहीं खोला था। जब भी मैं चांदनी के विषय में बात करना चाहती या पूछना चाहती तो किसी न किसी बहाने से नीलिमा उसको टरका देती किंतु आज जब नीलिमा उसे तैयार कर रही थी , तो स्वयं ही बोल उठी -मैडम !आज आपको एक चमत्कार दिखलाती हूं।
कैसा ?चमत्कार !
चमत्कार तो अवश्य होगा, किंतु इसके लिए आपको मेरा साथ देना होगा। जैसा मैं कहती हूं ,वैसा ही करना होगा, तभी आपको चमत्कार का अनुभव होगा। कहते हुए नीलिमा हंस दी और उसने अपनी योजना, मिसेज खन्ना को बतलाई। नीलिमा की योजना को सुनकर, खन्ना को भी मजा आने लगा , उसे लगा इसकी बात में दम अवश्य है, कुछ न कुछ चमत्कार तो देखने को मिलेगा ही, यही सोचकर उसने नीलिमा का साथ दिया और वास्तव में ही, जब उसने नीलिमा को'' चंपा ''कहकर पुकारा।
चांदनी बनी चंपा हड़बड़ा गई अपने को संभालते हुए बोली - आज मुझे जल्दी ही घर जाना है, और उस पार्टी से निकल गई।
अरे श्रीमती चांदनी रुको तो सही, कहां जा रही हो ? उनमें से एक महिला ने उसे रुकने के लिए कहा।
नहीं ,मुझे जाना होगा, अचानक कि मुझे कोई कार्य स्मरण हो आया।
क्या' जावेरी जी' बुला रहे हैं ? उनका आपके बिना दिल ही नहीं लगता कहकर हंसने लगी -आपने उन्हें जवान कर दिया, उसकी बात सुनकर सभी महिलाएं ठठाकर हंस पड़ीं।
तभी मिसेज करना बोलीं -आपको चंपा से नहीं मिलना है, उसे बुलाये देती हूं।
किसी भी बात का जवाब दिए बगैर चांदनी उस पार्टी से निकल गई। सब एक दूसरे से पूछ रही थीं -अचानक इन्हें क्या हुआ और तंबोला खेलने में व्यस्त हो गईं।