पता नहीं, यह औरत कैसा जादू टोना करती है ? यह जिसके भी संपर्क में आती है वही, इसके गुणगान करने लगता है। तिलमिलाते हुए चांदनी सोच रही थी - मैंने , इस औरत को अपनी , बेइज्जती का बदला लेने के लिए, मिसेज खन्ना के पास भेजा था। मैं जानती थी ,मिसेज खन्ना अपने नौकरों से रुखा व्यवहार करती हैं। नौकरों की पल -पल बेइज्जती करती हैं। एक तरीक़े से देखा जाये तो वो एक क्रूर महिला है। वे नीलिमा को, अच्छा सबक सिखाएगीं यही सोचकर उसके पास भेजा था किंतु न जाने ,मिसेज खन्ना पर भी इसने ऐसा क्या जादू कर दिया है ?वह भी अब ,उसी के गुणगान गा रही है। चांदनी अपने घर में तिलमिला रही थी ,उसे क्रोध आ रहा था कि उसका उस पार्टी में कितना अपमान हुआ ?और उसे पार्टी को बीच में ही ,छोड़ कर आना पड़ा।
इधर, नीलिमा अपने घर पर कल्पना के दोस्त से मिलती है और कल्पना के दोस्त को देखकर ,उसे एहसास होता है कि अवश्य ही, मैंने इस लड़के को कहीं देखा है। वह अपनी स्मृतियों पर जोर डालती है और तब उसे स्मरण होता है और तब एक जहरीली मुस्कान के साथ नीलिमा मुस्कुराती है। वह जान जाती है, कि यह तुषार कौन है और उसने उसे कहां देखा है ?हालांकि तुषार ने अपना सही परिचय ,उन्हें अभी भी नहीं दिया था। कल्पना उसके परिचय से अनजान थी ,कल्पना को और उसकी माँ नीलिमा को भी ,उसने वही बताया था ,जो पहले से बताता आ रहा था। किंतु उसकी सच्चाई तो कुछ और ही थी।जिसे नीलिमा समझ गयी थी। नीलिमा को अपनी बेटी का तुषार से मिलना अब बुरा नहीं लग रहा था , बुरा तो पहले भी नहीं लगा था किन्तु अब कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था बल्कि वह किस्मत की, यही रज़ा है , समझ बैठी थी।
तब नीलिमा तुषार से पूछती है -बेटा ! तुम्हारे परिवार में और कौन-कौन लोग हैं ?
जी, मेरे पिता हैं।
क्या और कोई नहीं ,बहन -भाई !ऐसा नीलिमा ने उससे जानबूझकर कहा।
नहीं ,और कोई नहीं है ,दृढ़ निश्चय से बोला।
वो तो ठीक है ,अब तुम दोनों पढ़ चुके हो ,दोनों की ही नौकरी भी लग गई है, अब तुमने अपने रिश्ते में आगे बढ़ने के लिए क्या सोचा है ? नीलिमा उससे पूछती है।
तुषार थोड़ा झेंप जाता है और बोलता है -अभी तक तो हमने कुछ भी नहीं सोचा है बल्कि अभी तक तो हम दोस्त ही हैं ,कल्पना भी यही चाहती है ,वह भी दोस्त बनकर ही रहना चाहती है ,कल्पना की तरफ देखते हुए बोला।
नीलिमा उसकी बात पर मुस्कुरा दी और बोली -लड़का और लड़की में दोस्ती ज्यादा दिन तक ठीक नहीं रहती। कभी -कभी एक -दूसरे की चुप्पी से ज्यादा देर भी हो जाती है। कटे हुए सेब की प्लेट उसके सामने करते हुए बोली -ये आवश्यक भी तो नहीं ,कि लड़की अपने मुँह से ही कहेगी ,तभी तुम उसकी बातों को समझोगे। समय रहते ही ,इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए ,एक नाम दे देना चाहिए ताकि वह रिश्ता बदनाम ना हो। जब तुम दोनों को साथ में रहना अच्छा लगता है ,दोनों की पसंद भी एक है ,दोनों का कारोबार भी एक है ,तो फिर क्यों एक साथ नहीं रहना चाहते ?क्यों ,एक ही छत के नीचे ,नहीं रहना चाहते। इस रिश्ते को एक नाम भी मिल जाएगा और तुम लोग साथ में रहकर एक दूसरे का सहयोग भी कर सकते हो। हो सकता है ,कल्पना तुम्हारी हाँ की प्रतीक्षा में हो और तुम उसके लिए सोच रहे हों।
कल्पना सोच रही थी -आज मम्मा को क्या हो गया ?तुषार के आते ही ,उससे विवाह के विषय में बातें करने लगीं। पहली बार तो उनसे मिला है , उसके विषय में ,न ही कुछ अधिक जानने का प्रयास किया। सीधे विवाह की बातें करने लगीं। पहले तो मुझे समझा रहीं थीं ,दुनिया में बहुत धोखा है ,''लोग कहते कुछ हैं और होते कुछ हैं।'' ये जीवनभर का फैंसला है ,सोच -समझकर ,देखभाल कर ही निर्णय लेना .........
नीलिमा की बात सुनकर तो तुषार भी सोचने पर मजबूर हो गया और बोला-इस बात के लिए मुझे अपने पिता से बात करनी होगी।
हां हां क्यों नहीं? तुम चाहो ,तो मैं भी ,तुम्हारे पिता से मिलना चाहूंगी यदि तुम अपने रिश्ते के विषय में अपने पिता से नहीं बात नहीं कर सकते हो तो मैं स्वयं तुम्हारे पिता से मिलकर ,तुम दोनों के रिश्ते की बात करूंगी। किंतु एक बात है , उसके इतना कहते ही तुषार नीलिमा की तरफ देखने लगा और कल्पना सोचने लगी -अब मम्मी ,न जाने क्या रायता फैलाने वाली हैं ?इसके लिए मैं आप लोगों से पहले ही कहे देती हूं। हम लोग ,ज्यादा दहेज नहीं दे पाएंगे कहते हुए मुस्कुराने लगी।
कल्पना को अपनी मम्मी की बातें' बेतुकी 'लग रही थीं अभी तो पहली बार ही है मिलने आया है और मम्मी ने न जाने कहां-कहां की बातें उठा दीं ? वह अपनी मम्मी को इशारों से रोकने का प्रयास कर रही थी। किंतु नीलिमा तो जैसे सब ठान चुकी थी कि उसे कब क्या कहना और करना है ?
क्या तुषार अपनी हकीकत , नीलिमा और कल्पना को बतायेगा ? क्या वह विवाह के विषय में सोचेगा ? क्या नीलिमा को अपने पिता से मिलवाएगा -यह सब जानने के लिए पढ़िए -साजिशें