Kanch ka rishta [part 12]

चड्ढा साहब ! निधि के भाई ही नहीं बल्कि यवन जी के बॉस भी थे। दोनों रिश्तों की तरफ से उनका सम्मान भी बना रहता था। एक बार निधि का भाई , उससे मिलने आया था। छोटा भाई था, कुछ फल लेकर आया था। मां ने थोड़े  दाल -चावल भी भिजवाए थे। उस समय वह अपनी परेशानियों  में उलझा हुआ था ,उसकी नौकरी भी नहीं लगी थी। जब वह आया तो निधि ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय उसके मुंहबोले भाई वहां पर बैठे हुए थे। वह अंदर आया ,उसने अंदर जाकर सामान रखा। निधि ने उससे कहा - जाकर नहा ले ,मैं भोजन लगाती हूँ। निधि ने पुनित से पूछा -अभी तुम्हारी नौकरी लगी है या नहीं लगी है। 

नहीं,अभी कहीं बात नहीं बनी है। 


यवन ,उस समय चढ्ढा साहब !के पास बैठा था ,अचानक ही उसे देखकर बोल उठा -एक हमारे ये साले  साहब हैं ,अभी तक माता -पिता की कमाई पर ही जीवन- बसर कर रहे हैं। किस्मत इनसे आगे और ये उसके पीछे दौड़ रहे हैं। कहते समय यवन के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। जिसे देखकर पुनित को ऐसा लग रहा था ,जैसे यवन अपने उस दोस्त के सामने पुनित की हंसी उडा रहा हो, किन्तु पुनित नहीं जानता था कि उन लोगों के आपस में कैसे सम्बन्ध हैं ? एक तरह से ,वे भी यवन के मुंहबोले साले ही हुए। कभी -कभी हम स्वयं भी परेशान होते हैं ,तो दूसरे का मुस्कुराना ,भी ऐसा लगता है ,जैसे वह हमें चिढ़ा रहा हो। यही बात पुनीत पर यवन के मध्य में रही। उसे अपने जीजा पर क्रोध आया ,उसने ये तो सुन लिया किन्तु ये नहीं सुन पाया कि उसका जीजा ,चड्ढा साहब से उसकी नौकरी के विषय में भी बात कर रहा था। 

निधि ,मन ही मन सोच रही थी -मेरे माता -पिता को अब भी इस उम्र में आराम नहीं है। न जाने उनकी और इसकी किस्मत में  क्या लिखा है ? इसे धक्के खाते हुए ,पांच वर्ष बीत गए। किसी ने कहा था -'इसका विवाह करवा दो !शायद लड़की के भाग्य से ,इसका भाग्य भी खुल जाये। 'इसीलिए माता -पिता ने 'कलेजे पर पत्थर' रखकर पिछले वर्ष इसका विवाह भी करवा दिया। किन्तु आज भी ये ऐसे ही घूम रहा है। किसी की बात मानता भी तो नहीं ,बहुत पहले निधि ने पुनीत से कहा था -अभी कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है ,तो कोई छोटी नौकरी कर ले। तेरा अनुभव भी बढ़ेगा और रास्ते भी खुलेंगे। किन्तु इसने कहना नहीं माना बड़ी नौकरी मिली नहीं ,छोटी इसने की नहीं ,इसकी पत्नी के खर्चों का बोझ भी उन  पर आ गया। निधि रसोई में खाना तो बना रही थी किन्तु उसके मन में  यही सब चल रहा था। अपने भाई और अपने परिवार को लेकर चिंतित थी। 

चढ्ढा साहब के चले जाने के पश्चात ,निधि ने उसे भोजन दिया ,खाना खाते समय निधि पुनीत से बोली -अब तू ऐसा कर ,जब तक कोई बड़ी नौकरी नहीं लग जाती ,कोई छोटी नौकरी ही पकड़ ले। अब तेरी बीवी का खर्चा भी बढ़ गया है। 

आपने यह क्या अच्छी सलाह दी है ? जब कोई नौकरी नहीं मिल रही तो कोई भी ,कैसी भी नौकरी मैं कैसे कर सकता हूं ? 

उसकी बात सुनकर निधि उस पर झल्ला दी और बोली - तेरी उम्र यूं ही निकलती जा रही है , तेरे तुझसे एक कार्य भी ठीक से नहीं होता। वर्षों से नौकरी की तलाश में है , आज तक तुझे एक अच्छी सी नौकरी नहीं मिली। छोटी नौकरी तू करना नहीं चाहता ,बड़ी तुझे मिलेगी नहीं। बस इसी तरह माता-पिता को तंग करते रहना। कल को तेरा परिवार बढ़ेगा ,उसके खर्चे बढ़ेंगे ,अपनी पत्नी को ही ,नौकरी करने के लिए भेज दे ,ताकि कुछ तो ,घर की आमदनी बढ़े। 

वो क्यों नौकरी करेगी ?कल को लोग कहेंगे -पत्नी की कमाई खा रहा है। वैसे भी उसे ज्यादा कुछ आता -जाता नहीं है। बस एक बार मेरी ही ,नौकरी लग जाये ,सबकी शिकायतें दूर हो जायेगीं। 

और वो दिन ही तो नहीं आ रहा है ,कहकर निधि वहां से उठकर चली आई। 

पुनीत चार दिनों से अपनी बहन के यहीं रह रहा था। उस दिन भी चड्ढा साहब आये और बोले -ये तो तुम्हारा वही भाई है ,जो उस दिन आया था। हमारा इससे उस दिन कोई विशेष परिचय नहीं हुआ ,शायद किसी कार्य में व्यस्त था। निधि के मुंह बोले भाई ने जब पुनीत का परिचय जानना चाहा , तो निधि बोल उठी - इसे काम -धाम कुछ नहीं है ,इसलिए इसने दूसरों की जिंदगी को परेशान करने का निर्णय लिया हुआ है। न खुद चैन से रहता है ,न ही हमें आराम से रहने देता है। इसे कुछ सलाह दो या समझाओ ,तो किसी की बात न ही सुनता है और न ही मानता है। 

  उस समय पर पुनीत वैसे ही बहुत परेशान था वह तो अपनी बहन के पास इसीलिए तो आया था, ताकि बहन से कुछ आर्थिक और मानसिक सहयोग मिले, किंतु उल्टे यहां तो....... उसकी  किसी अन्य व्यक्ति के सामने  बेइज्जती हो रही थी। यह बात उसे बहुत गहरे तक चुभ गई। कैसी बहन है ? जिसे अपने भाई की दुख -तकलीफ से कोई लेना-देना ही नहीं है। यही बातें उसके मन में घूम रही थीं। समय निकल जाता है, लोग चले जाते हैं। किंतु वह बातें वह छोटे तीर जो घाव कर जाते हैं, वे ताउम्र नहीं भरते। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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