नीलिमा जानबूझकर, 'चांदनी 'के सामने नहीं आई , क्योंकि मिसेज खन्ना और नीलिमा ने पहले ही योजना तैयार कर ली थी , जिसके अनुसार, निलिमा को चम्पा के नाम से पुकारा जाना था। चंपा का नाम सुनते ही, चांदनी का चेहरा उतर गया ,उसे लगा -'कहीं उसकी पोल तो नहीं खुल गई है , या किसी ने उसे पहचान तो नहीं लिया है। ये चंपा को किस तरह से जानते हैं ? क्योंकि वह तो जानती थी ,कि यह नीलिमा ही है तब उसने अपना नाम, मिसेज खन्ना को चंपा क्यों बताया ? अनेक प्रश्न उसके मन में उमड़ने लगे और साथ ही वह घबरा गई कि कहीं इन्हें मेरे विषय में जानकारी न हो जाये ? यही सोचकर वह जल्दबाजी में वहां से निकल गई। उसके इस व्यवहार को नीलिमा और मिसेज खन्ना ने ही समझा। साथ ही दोनों हंसने लगे , अन्य सहेलियों को नाश्ता दिया गया और वे सभी तंबोला खेलने में व्यस्त हो गईं ।
आज मिसेज खन्ना को नीलिमा के विषय में एक जानकारी और मिली, वह तंबोला भी अच्छा खेलती थी। आज अच्छे से पार्टी हुई। जिसने जबरदस्ती और जानबूझकर ,उसके घर पर पार्टी रखवाई थी।
घर पहुंच कर ,चांदनी बहुत परेशान हुई और सोच रही थी -कि आखिर उन लोगों ने मेरे साथ ,ऐसा व्यवहार क्यों किया ? आखिर उनका उद्देश्य क्या था ? क्या उनका उद्देश्य भी, मुझ पर व्यंग करना था। उसे बड़ी बेइज्जती महसूस हो रही थी। पैर पटकते हुए घर में प्रवेश करती है। आते ही ,सोफे में धंस गयी। क्रोध से ''आग बबूला'' हो रही थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने तो नीलिमा को अपमानित करने की योजना बनाई थी किंतु उसकी योजना कैसे फेल हो गई ? मुझे लगता है -'मिसेज खन्ना 'भी शायद उस नीलिमा के साथ मिल गई है। उसको तो मैं छोडूंगी नहीं, हाथों की मुठियाँ कसकर बंद करते हुए बोली। और इस ' मिसेज खन्ना' के पास, इस नीलिमा को तो मैंने ही भेजा था। उसने मेरी सारी योजना विफल कर दी।
मैडम ! आप इतनी शीघ्र आ गईं।
क्यों ,क्या मैं अपने घर नहीं आ सकती? क्या मुझे अपने घर में आने के लिए ,तुमसे इजाजत की लेनी पड़ेगी।
नहीं ,मेरा कहने का उद्देश्य यह नहीं था, मैं तो यह कह रहा था-कि आज आपकी पार्टी इतनी जल्दी समाप्त हो गई ,आप तो तीन-चार घंटे से पहले नहीं आतीं।
तो क्या ??अब तुम ,मेरा हिसाब रखोगे, मुझे कब आना है ,कब नहीं ?कहाँ जाना है? कितने घंटे रहना है ?
नहीं, मैडम ! प्रकाश बात को संभालते हुए बोला -क्या आपके लिए खाने में कुछ लेकर आऊँ ?
नहीं ,मुझे भूख नहीं है , जाओ , मेरा भेजा मत खाओ ! और जाकर अपने काम पर ध्यान दो ! प्रकाश वहां से चुपचाप चला गया। चांदनी ,का स्वर देखते ही समझ गया कि आज पार्टी में ,अवश्य ही ,कुछ न कुछ तो हुआ है।
उसके जाने के पश्चात, नीलिमा वहां से उठी और अपने कमरे में चली गई। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ,कितने अच्छे मूड से गई थी ? आज उसे नीलिमा की, बेइज्जती जो करनी थी। पता नहीं ,ये औरत किस नक्षत्र में मेरे, जीवन में आकर बैठ गई है ? जो भी कार्य करती हूं ,वही विफल हो जाता है। इसको मैंने इसके गढ़ से इसीलिए बाहर निकाला था, ताकि इसको इसकी औकात दिखा सकूं किंतु यहां भी मुझ पर भारी पड़ गई। सोचते हुए गाउन निकालकर ,एक तरफ फेंक दिया और बिस्तर पर ऐसे ही लेट गई।
आज ''जावेरी प्रसाद ''जी जानते थे, कि चांदनी अपनी सहेली के यहां पार्टी में जाएगी ,वह शाम को आराम के उद्देश्य से जब घर में आए, और अपने कमरे में गए तो उन्होंने बिस्तर पर, अस्तव्यस्त हालत में, चांदनी को पड़े पाया। अपने दुख से वो इतनी परेशान थी और इस दुख में, न जाने कब उसकी आंख लग गई ? जावेरी प्रसाद जी ,अपने बिस्तर पर आराम करना चाहते थे ,किंतु चांदनी को लेटे हुए देखकर ,वह वापस जाने ही वाले थे ,तभी चांदनी की आंख खुल गई। उन्हें देखकर एकदम से चांदनी बोली -अरे आप आ गए ? क्या समय हुआ है ?
शाम के 6:00 बज रहे हैं, मैं तो सोच रहा था कि तुम अपनी सहेली के घर होंगीं , क्या आज पार्टी में नहीं गई? ''जावेरी प्रसाद ''जी ने पूछा।
गई थी, किंतु वहां मन नहीं लगा, इसलिए वापस आ गई।
क्यों तुम्हारी तबीयत तो ठीक है, 'जावेरी प्रसाद ''जी ने बिस्तर पर लेटते हुए पूछा, और इस तरह से तुम क्यों सो रही थी? क्या कुछ हुआ है ?
नहीं ,कुछ भी तो नहीं ,कह कर चांदनी अपने कपड़े बदलने लगी।