चतुर को घर वापस आया देखकर ,रामप्यारी को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ ,अपने बेटे की प्रतीक्षा में ,तन वैसे ही कमजोर हो गया था। बेटे को देखकर रोने लगी ,उसे देखकर ,चक्कर आ गया किन्तु अब तो बेटा आ गया है ,बेटे ने माँ को गिरने से पहले ही संभाल लिया। उन्हें बिस्तर पर लिटाया और अपनी माँ के समीप ही बैठ गया। रामप्यारी जब थोड़ा होश में आई ,तो अपने बेटे को देख प्रसन्न हुई और प्रसन्नता के कारण फिर से रोने लगी। समझ नहीं पा रही थी ,अचानक चतुर के आने पर क्या करे ?उसके आने की उम्मीद तो नहीं छोड़ी थी किन्तु निराश हो चली थी ,उसे विश्वास नहीं था ,इस तरह आकर खड़ा हो जायेगा। रामप्यारी ने अपने आपको संभाला और बोली -तेरे पिता न जाने कहाँ गए हैं ?जब उन्हें पता चलेगा कि तू आ गया है ,कितने प्रसन्न होंगे ? कहते हुए ,बेटे की तरफ देखा और बोली -कैसा हो गया है ? तू कहाँ चला गया था ? तेरे बिना हम दोनों पति -पत्नी कितने अकेले हो गए थे ? कहते हुए ,उठने का प्रयास करती है ,ताकि अपने बेटे के लिए भोजन का प्रबंध कर सके किन्तु चतुर ने उसे रोक दिया और बोला -अभी कहीं भी उठकर जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं चाय बनाकर लाता हूँ,आप थोड़ा आराम करिये। कहकर चाय बनाने चला गया।
रामप्यारी आश्चर्यचकित हो सोच रही थी ,जो लड़का उठकर,पानी का एक गिलास भी नहीं उठाता था ,उसने चाय बनाने के लिए कहा, और कहा ही नहीं ,बनाने के लिए चला भी गया। उसे आश्चर्य हो रहा था न जाने ,मेरा बेटा कैसा हो गया है ? न जाने ,इतने दिनों में कहां-कहां धक्के खाए होंगे ? अकेला था ,करता भी क्या? वहां माँ तो उसके साथ नहीं थी ,इसीलिए जीना सीख लिया होगा। चाय बनानी भी सीख ली होगी। सोचते हुए ,आंखें फिर से नम हो आईं । तब तक चतुर चाय बना कर ले आया था। मां ने तुरंत ही धोती के पल्ले से अपने आंसू पोंछे, अकेले चाय पीने की इच्छा नहीं हो रही थी। ऐसे समय में उसे अपने पति की याद आ रही थी ,वह भी साथ होते तो आज देख लेते ,उनका बेटा कितना समझदार हो गया है ? और आज घर आ भी गया है। वह यही सब सोच रही थी।
तभी बाहर, से कुछ लोगों की आवाज सुनाई देने लगी। न जाने कौन है ? रामप्यारी ,चतुर से बोली -तू यहीं बैठ ! मैं देख कर आती हूं। अब उसे धीरे-धीरे एहसास होने लगा था कि हां ,मेरा बेटा ,मेरे पास, मेरे घर वापस आ गया है ,उस खुशी को वह किसी से भी बाँट लेना चाहती थी। वह चतुर के जवाब की, प्रतीक्षा किए बगैर चारपाई से उठी और बाहर आ गई। सामने पति को देखकर ,सीधे उनके सीने से जा लगी और फिर से रोने लगी।
क्या हुआ ?तू क्यों रो रही है ,श्रीधर जी ने पूछा।
बाहर से , कुछ लोगों की आवाज आ रही है ,वही देखने आई थी।
हां ,कुछ बच्चे हैं, जिन्होंने मुझे बताया -कि एक शहरी व्यक्ति, हमारे घर आया है ,उसे ही देखने आया था,न जाने कौन शहरी हमारे घर आ गया ? ये वही बच्चे हैं।
क्या कह रहे हैं ?श्रीधर की बात पर रामप्यारी मुस्कुरा उठी क्योंकि उसके बेटे को, बच्चों ने शहरी बताया था। क्या वे इसे पहचान नहीं सके ?मुस्कुराते हुए बोली -क्या यह बच्चे हमारे चतुर को नहीं पहचान पाए।
ये तू, क्या कह रही है?
हां, हमारा चतुर ही तो आया है ,खुश होते हुए बोली।
क्या तू पगला गई है ? अभी श्रीधर जी ने राम प्यारी को यही कहा था तभी अंदर से चतुर बाहर आ गया। पिता की उसे देखकर, मन में हिलोर सी उठने लगी किंतु अपने को संभालते हुए , उन्होंने रामप्यारी को गले लगा लिया। उनका दिल तो कर रहा था ,कि वह फूट-फूट कर रो दें किंतु क्या कर सकते हैं ? उन्होंने तो यही सीखा है-'' मर्द कभी रोते नहीं। '' नम हुई आंखों से , चतुर की तरफ देखा, और सोचा -कमजोर हो गया है , और चतुर से बोले -तू कब आया ? रामप्यारी भी खड़ी होकर अपने बेटे को देख रही थी, जैसे दोनों पति-पत्नी विश्वास कर लेना चाहते थे कि यह हमारा भ्रम नहीं है ,हमारा बेटा हमारे पास आ गया है।
अभी थोड़ी देर पहले ही तो आया हूं, कहते हुए चतुर आगे बढ़ा और उसने पिता के पैर छूने चाहे किंतु उन्हें अपने पैर नहीं छुआने थे बल्कि उन्हें तो अपने कलेजे को ठंडक देनी थी। चतुर के झुकने से पहले ही, उसे सीने से लगा लिया। उनके हृदय गति बढ़ रही थी, उसे गले से लगाकर न जाने, अपने कौन से अरमान पूरे कर रहे थे ? उसे गले लगाए हुए ही पूछा -तू कहां चला गया था तूने एक बार भी अपने माता-पिता के विषय में नहीं सोचा।
पापा !अंदर आओ !मैंने चाय बनाई है, चाय पी लेते हैं और तब बात करते हैं ,कहते हुए वह उनका हाथ पकड़ कर अंदर ले जाने लगा। आज दोनों पति-पत्नी ऐसे हो रहे थे जैसे उनके सोचने -समझने की शक्ति ही समाप्त हो गई हो। जैसा वह कह रहा था ,वैसे ही चल रहे थे , किसी बच्चे की तरह उसका कहा मान रहे थे।
अंदर एक तरफ तख़्त रखा हुआ था ,उसे तख़्त पर बैठकर ,चाय हाथ में लेते हुए बोले -क्या तू इतना डर गया था? घर छोड़कर ही चला गया। गहरी श्वांस भरते हुए बोले -हो सकता है ,उस समय मैं डांटता, ड़पटता किसी के बच्चे का हाथ टूटा है ? तो गलती तो हुई थी , किंतु उसका अर्थ यह तो नहीं ,कि अपना घर छोड़कर ही चला जाए। इतने दिन तू कहां रहा ? क्या करता रहा ? तूने एक बार भी हमें कोई संदेश नहीं पहुंचाया , एक बार तो आकर मिल लेता ,तेरे पीछे ,तेरी माँ को कुछ हो जाता तो....... न जाने कितनी शिकायतें , और कितने सवाल उनके मन में उमड़ रहे थे ?
चिंता क्यों करते हो ?अब आ तो गया हूं ? मैं दूर कहीं नहीं गया था ,पास के ही शहर में था। किंतु उस समय मैं बहुत ही ज्यादा डर गया था मुझे स्वयं लग रहा था कि मेरे कारण किसी की जान पर बन आई है। मुझे तो यह भी नहीं पता चला कि चिराग गिरा था ,उसके साथ क्या हुआ था ? बस मैंने जब उसका चिल्लाना सुना था और मैं बुरी तरह डर गया था। तब मैंने सोचा -ऐसे समय में, गांव में रहना या घर जाना सही नहीं है।
तभी रामप्यारी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली-इतने दिन करता क्या रहा ? किसके यहां रहा ? खाने पीने की क्या व्यवस्था थी ?
यह सब बाद की बातें हैं ,मैं आपको बाद में विस्तार से बतलाऊंगा, अब आप पहले, यह देखिए !कहते हुए वह अपने बैग के पास गया और उसमें से एक साड़ी निकालकर ,जो अपनी मां के लिए लेकर आया था । यह आपके लिए, वह पैकेट रामप्यारी को थमा दिया। पिता की तरफ देखा और बोला -अरे !पापा के लिए तो लाना भूल गया ?
कोई बात नहीं ,हम तो इसी में खुश हैं कि तेरी माँ खुश है ,उसके लिए तो लाया है। चाय पीकर ,उठने का उपक्रम करने लगे।
रामप्यारी को बुरा लगा ,अपने पिता को कैसे भूल गया ? तभी एक पगड़ी, निकालकर अपने पिता के सिर पर रख दी और बोला -यह मेरे पिता का सम्मान है ,ये कभी कम नहीं होगा।