अनदेखे ही ,उन गलियों से ,
कुछ संबंध ऐसे , जुड़ गए।
भोलेनाथ की नगरी ,दूर हमसे ,
तब भी ,उनसे धागे जुड़ गए।
दूर बैठा भी ,वो निहरता होगा।
भले ही दूर सही ,हम उसके हैं।
यही सोच..... मुस्कुराता होगा।
हमारे सर पर हाथ उसका होगा।
गंगा तीरे ,बसी ऐसी , बाबा की नगरी ,
सब काम -धाम छोड़ लो !बाबा का नाम।
न गए ,बनारस ,काशी न कोई तीर्थ धाम।
ह्रदय में बसा ,पहले ही भोले बाबा का नाम।