न्याय की चाहत !
दिखता ,अदालत का द्वार !
न मिलता ,न्याय !
बिक जाते ,गवाह !
मिट जाते ,सबूत !
खाई जाती ,झूठी सौगंध !
रहता त्रस्त जीवन !
न मिलता, न्याय !
दिन ,महीने ,वर्ष हुए ,
उम्र हुई ,तमाम !
दृग क्षीण हो गए !
टोहते ,न्याय की राह !
जिंदगी बुझती ,पहेली !
कब मिलेगा ?न्याय !
अदालत अपने 'मन 'की,
सर्वश्रेष्ठ है ,वही,
मन को ,अनदेखा किया।
उसमें न, कभी झांका किया।
जब उसने [ईश्वर ]देखा ,
बड़ी शिद्दत से देखा !
सजा भी, बड़ी कठिन !
एहसास कर देता,
अन्याय का ,रूप दिखाता।
जो किया, भुगता इसी जन्म !
डोर बंध जाती ,अगले जन्म !