Rasiya [part 27]

 उस वीरान गली में, जब चतुर ने अपने पीछे यह शब्द सुने -अशोक जा ! यह कैसे नहीं सुनता है ? इतना सुनते ही ,चतुर के पर वही जड़वत हो गए। वह बुरी तरह घबरा गया था , भाग जाना चाह कर भी ,भाग नहीं सकता था। वे पांच -छह लड़के थे , दौड़कर पकड़ लेते। हालांकि इस गली में कोई न कोई आता -जाता दिख ही जाता है, किंतु न जाने ,आज कौन सी घड़ी आई है ?अभी तक कोई नहीं दिखा। डर के कारण ,चतुर की आंखें बंद हो गईं , तुरंत ही उसके मन में विचार आया -हो सकता है ,यह लोग किसी और की प्रतीक्षा में हों , और मैं अपने लिए समझ रहा हूं। यदि मेरे लिए भी हुए तो, मैं कैसे इसे हाथापाई कर सकता हूं ? इनके पास तो, हथियार भी हैं। उसके मस्तिष्क में, तीव्र गति से विचार आ जा रहे थे। उसकी सांस तो जैसे अटक ही गई थी। तभी सोचा -' जो भी होगा ,देखा जाएगा,' इस तरह, मुंह छुपाकर भाग भी तो नहीं सकता। यह मेरी कायरता होगी, दूसरा मन कह रहा था -जब सामने दिख रहा है ,कि दुश्मन मजबूत है तो बहादुरी दिखाने से कोई लाभ नहीं। 


परिणाम सीधा ही सामने है, कि ये लोग मुझे ही ठोक- पीटकर चले जाएंगे और मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा , तब तक उसके कंधे पर,किसी का हाथ महसूस हुआ। शायद  वह अशोक ही हो सकता है, क्योंकि अभी तो कुछ देर पहले ही ,किसी ने कहा था-अशोक जा...... तू देख कर आ , कैसे नहीं सुनता ? चतुर ने, अपनी गर्दन  घूमाकर पहले अपने कंधे पर रखे हाथ को देखा और धीरे-धीरे, ऊपर की तरफ देखने लगा। उनमें से ही एक लड़का उसके कंधे को पकड़े हुए खड़ा था। चतुर ने महसूस किया ,उसकी पकड़ काफी मजबूत है। 

क्या हुआ ?भाई ! क्या मुझसे  कुछ कहना चाहते हो ? भोला ,मासूम  बनते हुए चतुर ने पूछा। 

क्यों तुझे सुनाई नहीं दे रहा था ? तुझे भाई ने बुलाया है , वह अकड़ते हुए बोला। 

नहीं, मुझे तो पता ही नहीं चला, आपके भाई मुझे क्यों बुला रहे हैं ? 

चल ,हमारे साथ ,वहीं  सब पता चल जाएगा। 

किंतु मुझे तो दुकान पर सामान लेकर जाना है। 

वही तो मैं कह रहा हूं ,दुकान तो इधर है ,तू किधर जा रहा है ?

वो तो मैं , कुछ सामान भूल गया था इसलिए वापस जा रहा था। 

वापस जा रहा था ,या हमें देखकर भाग रहा था।  तू ,कुछ ज्यादा ही समझदार नहीं है, कहते हुए , उसने चतुर का हाथ पकड़ लिया और उसे अपने दोस्त के समीप लेकर चल दिया। इस समय चतुर अपने को, ''बिल्ली के पंजों में फंसे , पंछी की तरह ''महसूस कर रहा था। 

उनके समीप पहुंचकर, उनमें से एक लड़का बोला -जो शायद, उस गैंग का मुखिया भी हो सकता है। क्यों ?बे !तुझे सुनाई नहीं देता। 

आपको मुझसे क्या काम है ?भाई ! चतुर ने ऐसे मुंह बनाया ,शायद वे उस पर तरस खाकर उसे छोड़ दें। 

तू हमारे किसी काम का नहीं है, समझा ! बस तेरी भलाई इसी में है, तू यहां से चला जा ! और उससे दूर रहना ,भौंहों  के इशारे से उसने समझाया। 

मुझे किससे दूर रहना है, और कहां जाना है ?

क्या तेरी अकल मोटी  है ,'जहां से आया है वहीं चला जा !'उसके कहने के लहज़े से उसके अन्य दोस्त हंसने लगे। ओय ! उस लड़की से दूर रहने के लिए कह रहा हूं,वह दादागिरी में बोला। 

कौन लड़की ? मैं कुछ समझा  नहीं ,

इतना भोला भी मत बन ! मैं कस्तूरी की बात कर रहा हूं, वरना तू जानता है, कहते हुए उसने अपने दोस्तों की तरफ देखा, जो हॉकी और लाठी लिए खड़े थे , वरना  तू जिन्दा नहीं बचेगा ,अभी तो बस तुझे समझा रहे हैं ,बाकि तू इसके पश्चात परिणाम स्वयं सोच लेना। 

अच्छा ,तुम्हारा उसके साथ क्या रिश्ता है ? जहाँ तक मैं जानता हूँ , उसका एक ही भाई है ,उसे ही मैं पढ़ाता हूँ। 

तभी एक लड़का उनमें से बाहर आया और चतुर का कॉलर पकड़ते हुए ,बोला -ज्यादा होशियार मत बन !वो हमारी भाभी है। 

क्या बात कर रहे हो ?अपना कॉलर छुड़ाकर चतुर आश्चर्य से बोला -भाई !आपको प्रणाम है ,वैसे भाई का क्या नाम है ?

पुनिया उनमें से एक बोला ,तभी दूसरा बोला -चुप बे........ तब चतुर से बोला -क्यों तुझे नाम से क्या लेना ? तुझसे जितना कहा है ,उतना ही कर ,ज्यादा पूछताछ के चक्कर में मत पड़। 

वो तो मैं इसीलिए पूछ रहा था ,जब चायवाले अंकल कहेंगे ,आने में इतनी देर क्यों की ?अब जाकर अंकल जी से यही कह दूंगा ,रास्ते में आपके दामाद  पुनिया मिले थे इसीलिए देरी हो गयी। 

तुझसे मना किया था न..... नाम नहीं बताना अपने दोस्त को डांटते हुए ,वो बोला। 

तू ठहर जा !तू अपने को ज्यादा होशियार समझ रहा है ,कहते हुए ,वे लोग उसकी तरफ दौड़े ,तभी पीछे से किसी की आवाज उन्हें सुनाई दी।

 एक व्यक्ति उधर ही चला आ रहा था और उन्हें दौड़ते हुए देखकर बोला -यहाँ क्या हो रहा है ? कहते हुए उनके करीब आया। 

तभी दौड़कर चतुर आगे आया और बोला -कुछ नहीं ,ये सभी मेरे दोस्त हैं ,मुझे काम पर जाना है ,और ये लोग खेलने के लिए कह रहे हैं। आपने तो मुझे ,चाय की दुकान पर काम करते देखा ही होगा ,कहते हुए उनको धीरे से आँखों के इशारे से समझाना चाहा।

 वो व्यक्ति समझा या नहीं किन्तु उसने उन लड़कों की तरफ देखा और चतुर से बोला -तुम तो चाय की दुकान पर काम करते हो न..... 

जी ....... जी...... चतुर बोला। 

चलो !अपने काम पर जाओ ! तुम्हारा मालिक प्रतीक्षा में होगा ,जी ,कहते हुए चतुर वहाँ से ऐसे भागा जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो। चतुर ने भागते हुए ,पीछे भी नहीं देखा, हालांकि वह लड़के तिलमिला  रहे थे और आपस में ही एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे। गली से बाहर निकलकर, वह सीधा चाय की दुकान पर ही पहुंचा और बेंच पर बैठकर, गहरी -गहरी सांसेँ भरने  लगा। 

उसकी हालत देखकर चाय वाले ने पूछा भी था - क्या हुआ ?

कुछ नहीं दौड़ कर आया हूं ,इसीलिए थोड़ी सांस फूल गई है, कहते हुए उठा और वहां पास ही रखें जग में से पानी लेकर पीने लगा। 

आगे क्या होगा ? क्या पुनिया के ड़र से, चतुर मैदान छोड़कर भाग जाएगा ? क्या वह उनकी धमकियों से डर जाएगा ? क्या वह अपने पहले प्यार कस्तूरी को छोड़कर चला जाएगा ? यह सब जानने के लिए पढ़ते रहिए - रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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