Rasiya [part 26]

चतुर अपनी योजना के अनुसार, प्रतिदिन की भांति दौड़ता हुआ गया और कुछ बोतलें '' कोल्ड ड्रिंक ''की ले आया क्योंकि अभी उसने थोड़ी देर पहले ही, कुछ ग्राहकों को साड़ी की दुकान पर जाते हुए देखा है। किंतु जैसे ही, ''वह कोल्ड ड्रिंक ''लेकर अंदर आता है। एक जाना -पहचाना चेहरा उसे नजर आता है। अचानक उसके मुंह से निकलता है -दामोदर काका ! उनके साथ, एक -दो महिलाएं और अन्य लोग भी थे। उन्हें वह पहचान नहीं सका। जैसे ही ,उसने 'दामोदर काका 'बोला ,उस व्यक्ति ने पीछे मुड़कर देखा, किंतु उसे कोई नहीं दिखलाई दिया। दामोदर काका, पीछे मुड़कर उसे देखते, उससे पहले ही, चतुर वहीं दुकान में छुप गया था। वह नहीं चाहता था ,कि ''दामोदर काका ''उसे यहां इस रूप में देख लें ।  साड़ी वाले को लग रहा था, कि आज अच्छे से आमदनी होगी ,देखिये !साहब ! ये सिफॉन की साड़ी है और ये जरी की।

भइया !वो नीली वाली दिखाइए !


ये.......  आपका चुनाव बहुत ही उम्दा है ,ये बनारसी साड़ी ,सीधे बनारस से ही आई है ,सिर्फ आपके लिए आप पर फ़ब भी बहुत रही है। दुकानदार मन ही मन सोच रहा था -  चतुर ,अभी कोल्ड ड्रिंक लेकर क्यों नहीं आया था। उसे क्या मालूम था ?कि वह वहीं छुपा बैठा ,उसके बेचने की कला को देख रहा था। 

चतुर को, अभी यहाँ कुछ दिन और यहां रहना है। कस्तूरी के मन को टटोलना है ,उसकी चाहत के लिए ,वह उनके सामने नहीं आया। कुछ अपनी हालत को देखकर ही पीछे हट गया। गांव में सबको बता देंगे ,लड़का चाय और'' कोल्ड ड्रिंक ''बेचने जैसा कार्य करता है। उन लोगों के लिए तो ,अपमान जैसी बात हो जाती।

 सुंदर ,सुहाना ,सलोना यह संबंध ही ऐसा है। चतुर को पहली बार प्यार का एहसास हुआ। कस्तूरी के प्यार की चाहत इस कदर बढ़ी। चतुर चाय वाले की नजरों में चढ़ जाना चाहता है था, वह चाहता था ,कि चाय वाला उससे इतना प्रसन्न हो जाए कि उसकी कोई भी मांग को वह ,आसानी से मान ले। हालांकि वह जानता था, कि इस तरह जीवन इतना आसान नहीं है कस्तूरी के पास और कस्तूरी को पाना इतना आसान नहीं है लेकिन वह प्रयास तो कर ही सकता था। एक दिन एकांत में ,बातों ही बातों में पढ़ाते समय ,चतुर ने कस्तूरी से पूछा -पढ़ लिख कर तुम क्या बनना चाहती हो ?

कभी सोचा ही नहीं, किंतु अब पढ़ तो रही हूं , सोच भी लूंगी। 

तुम अपनी पढ़ाई पूरी करके तुम क्या करोगे ?

मेरे पास तो खेती बाड़ी भी बहुत है, तुम कहोगी तो , नौकरी भी कर लूंगा। 

मेरे कहे से तुम काहें नौकरी करोगे ? वह तो तुम्हारी अपनी पसंद है ,अपनी इच्छा है। 

सब कुछ अपनी पसंद का नहीं मिल जाता , कभी-कभी दूसरे की पसंद का भी ख्याल रखना पड़ता है। अब जैसे मुझे तो तुम भी पसंद हो, क्या तुम्हें मैं पसंद हूँ ? उसके चेहरे की तरफ देखने लगा। 

इस प्रश्न को सुनकर, कस्तूरी का चेहरा लाल हो गया , कुछ शब्द ही नहीं निकल रहे थे, बोली-इसीलिए तो पढ़ रही हूँ। 

इसका क्या मतलब हुआ ? पढ़ाई से पसंद, नापसंद का क्या संबंध है ?

मुस्कुराते हुए कस्तूरी बोली - मेरी सहेलियों को भी तुम पसंद हो। 

सहेलियों से मुझे क्या लेना-देना ? तुमने अपनी राय नहीं बताई। 

जो उनकी पसंद वही मेरी, कह कर वहां से उठकर भाग गई। अकेले में खड़ी बहुत देर तक मुस्कुराती रही और लजाती रही। 

क्या पढ़ने के लिए बाहर नहीं आओगी ?मुस्कुराते हुए चतुर ने पूछा। 

कस्तूरी तो बाहर नहीं आई किंतु भाई आया ,और आते ही बोला -दीदी ! कहां है ?

अंदर ही गई है, किंतु अब मैं जा रहा हूं, मुझे कुछ आवश्यक कार्य याद आ गया। अब तो उसे लग रहा था ,कि उसे कस्तूरी की सहमति मिल गई है। उसके सपनों को उड़ान मिलने लगी। उसके और करीब आने का प्रयास करने लगा। उसके संपूर्ण दिन और रात्रि, कस्तूरी के आगे इर्द -गिर्द घूमते थे। अभी तो गर्मियों की छुट्टियां चल रही है ,वह स्कूल भी नहीं जाती, घर पर पढ़ाने के लिए स्वयं,चतुर आ जाता था , तो उसके साथ उसका भाई, और उसकी मां रहते थे। उनका प्रेम कैसे परवान चढ़े ?

 एक दिन कस्तूरी के हाथों में चूड़ियां देखकर उसकी मां ने पूछा -तूने यह चूड़ियां कब ली और कहां से लाई ?

उस दिन तो कस्तूरी ने झूठ बोल दिया, मेरी सहेली ने दिलवाई हैं, जबकि वह चूड़ियां, चतुर लाया था। वह नाम से ही चतुर नहीं था। अपने कार्य में भी चतुर था, इतने तरीके से कार्य करता था।  किसी को पता ही ना चले। किंतु यह भी दुनिया है, भांति -भांति के लोग इसमें बसे हैं। सीधे -सज्जन भी हैं और तेजतर्रा भी हैं , शायद किसी की दृष्टि पहले से ही कस्तूरी पर थी। उसकी नजर में चतुर का कस्तूरी के घर जाना, खटकता था।

 आजकल चतुर को भी लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है, किंतु दिखलाई नहीं देता था। ऐसा लगता था ,कोई उस पर नजर रखे हुए हैं। अब यहां रहते हुए ,चतुर को एक माह हो गया था। एक दिन ,एक गली में मुड़ते हुए ,एक लड़के ने उससे कहा  -ओय ! उससे दूर रहना। 

चतुर ने पीछे घूमकर देखा ,तो वहां तीन -चार लड़के  खड़े हुए थे, उनके हाथ में हॉकी और लाठी थी। उन्हें देखकर चतुर मन ही मन घबरा गया। गली के एक तरफ लड़के खड़े थे ,दूसरी तरफ ,यदि वह भागता भी है ,तो गली से बाहर निकलने में उसे ,दस मिनट लग जायेंगे। चतुर के हाथ में ,एक थैला था ,जिसमें दुकान में ले जाने के लिए सामान था। चतुर ,बिना कुछ प्रतिक्रिया करते हुए ,वापस जाने लगा ,जैसे उसने उन्हें देखा ही नहीं ,किन्तु अंदर ही अंदर डरा हुआ था। 

अबे !वापस कहाँ जा रहा है ?रास्ता तो इधर से है  किन्तु चतुर चलता रहा ,वो सोच रहा था -गली में ,ऐसे में शायद कोई राहगीर आ जाये और चतुर उसके संग निकल जाये। 

ओय अशोक !तू जा और इस साले को इधर लेकर आ ,तभी उसे अपने पीछे किसी के दौड़ने की आवाज आई ,चतुर भागना चाहकर भी भाग नहीं सका ,तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा ,चतुर की साँस अटक गयी उसे लगा ,अब वह इन लोगों से बच नहीं पायेगा , आज तो उसकी हड्डी -पसली एक होकर रहेंगीं। तभी मन में विचार आया ,इस तरह डरने से काम नहीं चलेगा ,आखिर ये लोग हैं ,कौन ?और मुझसे क्या चाहते हैं ?यह तो पूछना ही होगा। 

क्या चतुर किसी चलचित्र के नायक की भाँति , उन लड़कों से, झगड़ा करेगा या वहां से भाग जाएगा। आखिर में लड़के कौन हैं ?जो उसका पीछा कर रहे हैं और वे उससे क्या चाहते हैं ? क्या यह बात खुल जाएगी कि कस्तूरी और चतुर एक दूसरे से मिलते हैं , जानने के लिए पढ़ते रहिए -रसिया

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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