Khoobsurat [part 4]

कॉलिज के ये दिन ,कितने सुहावने लग रहे हैं ?कॉलिज की बैंच पर बैठी शिल्पा और उसकी दोनों सहेलियां आते -जाते छात्रों रहीं थीं।  नए -नए छात्रों से मिलना ,फ़ार्म जमा करने की लाइन में खड़े होना ,हालाँकि ये सब थका देने वाला कार्य है किन्तु इस कार्य को करने का भी अपना ही अलग मज़ा है। लगता है ,अब हम बड़े हो गए हैं। अब बात -बात पर या माता -पिता का हाथ पकड़कर, आगे नहीं बढ़ना पड़ेगा, अपने लिए, अपने परिश्रम से कुछ कर दिखाना है अब तक स्कूल में घरवालों को ही साथ लाते थे ,परीक्षा परिणाम भी उनके हस्ताक्षर के बग़ैर नहीं मिलता था किन्तु अब लगता है ,घरवालों को भी हम पर विश्वास हो गया है ,हम भी अपने दम पर कुछ कर सकते हैं ,तभी तो आज पापा कह रहे थे -'शिल्पा !कॉलिज का शुल्क कितना है ?'


यही कोई आठ सौ या हज़ार रूपये होगी,जितना अंदाज़ा लगाकर बताया था ,पापा ने उससे कहीं अधिक पैसे दिए और बोले -'संभालकर ले जाना ,अभी कॉलिज में दाख़िले के लिए बहुत धक्का -मुक्की होगी, किसी से लड़ना मत और समय से जाकर पहले ही फॉर्म जमा कर देना।'

हाँ ,यार !लगता तो यही है, हम एक नई दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं और यहीं से हमारी जिंदगी में आत्मनिर्भर बनने की यात्रा आरम्भ होगी ,जो हमें समाज के लोगों से और अपने आपसे रूबरू  करवायेगी, प्रीत ने जबाब दिया -हमारी अपनी पसंद ,किसी का कोई दबाब नहीं ,हमें क्या करना है और किस मंजिल पर चढ़ना है ?ये हमारा अपना निर्णय होगा। 

अरे यार देख ! कुछ लड़कियां तो लड़कों के साथ कैसे घूम रहीं हैं ?जैसे इन्हें किसी की कोई फ़िक्र ही नहीं। 

फिक्र नहीं, ड़र कहो !रिया बोली -यदि मुझे डॉक्टरी में जाना हुआ तो तुम लोगों से दूर होना पड़ेगा ,यहाँ साइंस और आर्ट तो है। 

किन्तु मैं भी तो अपनी परीक्षा के परिणाम की प्रतीक्षा में ही हूँ ,यदि मैं पास हो गयी तो मुझे भी अलग होना पड़ेगा। तुम दोनों चली जाओगी तो मैं यहां क्या करूंगी ? मेरा मन नहीं लगेगा शिल्पा रुआंसी होकर बोली। 

तू अकेली कहाँ रह जाएगी ?इतने सारे लोग तो हैं ,जो तुझे पसंद आएंगे और जिन्हे तू पसंद आयेगी और हम तो हैं ही ,हमने अपनी परीक्षाएं दी हैं ,परिणाम के पश्चात पता चलेगा, हमें कहाँ जाना है ?तेरे पास भी आती रहा करेंगी।आज  मधुलिका नहीं आई ,आ जाती तो उससे भी मिल लेते। 

वो तो घर- गृहस्थी का कोर्स कर रही होगी ,पति जब रूठ जाये, तो कैसे मनाते हैं ?उसकी पसंद का भोजन बनाना सीख रही होगी। कहते हुए तीनों ही हंस पड़ीं, तभी रिया कुछ देर के लिए गयी और हाथों में ठंडे की तीन बोतलें लेकर आई और बोली -आज कॉलिज का पहला दिन है,चलो !'इस एहसास को महसूस करते हैं।' 

हाँ ,ये तूने अच्छा किया ,मुझे तो बहुत जोरों की प्यास लग रही थी शिल्पा बोतल हाथ में लेते हुए कहती है। 

ये वहीं की वहीं रहेगी ,इससे इसकी प्यास बुझ रही है। 

क्यों ? तुम दोनों मुझे इस तरह से क्यों देख रही हो ? क्या मैंने कुछ गलत कहा ?ठंडा इसीलिए पिया जाता है ताकि प्यास बुझे ,इससे ज्यादा कुछ नहीं ,इसमें तुम कुछ और देखने लगो तो ये मेरी गलती नहीं है ,कहते हुए उठी और बोली -मैं जरा देखकर आती हूँ ,वो क्लर्क अभी आया या नहीं। 

क्या मतलब ?तूने अभी तक फॉर्म जमा नहीं किया। 

कैसे करती ?जब फॉर्म जमा करने वाला ही वहां नहीं था। 

किन्तु मैंने तो देखा था ,एक लड़का सभी के फॉर्म इकट्ठे कर रहा था। 

हाँ ,मैंने भी देखा किन्तु मैंने सोचा -इसका क्या एहसान लेना ?मैं स्वयं ही जमा कर दूंगी। 

तू पागल है !ऐसे सीनियर लड़के सुविधा के लिए ऐसा करते हैं ताकि नए छात्रों को कोई परेशानी न हो। 

भला बिना स्वार्थ के आजकल कौन, किसी का कार्य करता है ?सबको ,कुछ न कुछ काम या पैसे चाहिए ही होते हैं ,अच्छा तुम लोग यहीं बैठो !मैं अभी आई। काऊंटर पर जाकर क्लर्क से कहा  -मुझे फॉर्म जमा करना है। 

तुम देख नहीं रही हो ,यहाँ पहले से ही कितने फॉर्म पड़े हैं ?पहले इनकी जाँच कर लूँ। 

किन्तु यहाँ सबसे पहले तो मैं आई थी ,यहाँ तो कोई और बच्चा भी नहीं ,तब इतने फॉर्म किसने जमा कर दिए ?

तुम्हें क्या मैं यहाँ सफाई देने बैठा हूँ घूरते हुए वो बोला। 

कृपया !एक बार मेरा फॉर्म देख तो लीजिये, ठीक से भरा भी है या नहीं। 

तुम ये कार्य तो अपने किसी सीनियर से भी पूछकर कर सकती थीं ,तुम छोटी बच्ची तो नहीं हो ,जो तुम्हें हाथ पकड़वाकर फॉर्म भरवाउंगा। 

फॉर्म तो मैंने अपने आप भर लिया है, बस आपको यह देखना है कि यह ठीक से भरा है या नहीं कोई कमी तो नहीं रह गई है कृपया करके एक बार देख लीजिए ताकि कोई कमी रह जाए तो मैं उसे ठीक कर सकूं। मैं यहां पर बहुत देर से आई हुई हूं , जब आप भी नहीं थे। प्लीज !प्लीज !मेरा यह फॉर्म जमा होना बहुत जरूरी है। 

सभी के फॉर्म बहुत जरूरी हैं, शिल्पा के बार-बार प्लीज कहने पर वह एक नजर उसके फार्म की तरफ देखता है, औपचारिक तौर पर नजर मारता है और कहता है -यहां पर हस्ताक्षर नहीं है , यहां पर प्रधानाचार्य की हस्ताक्षर होंगे और यहां पर, तुम्हारे कॉलेज के आर्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर के हस्ताक्षर होंगे। पहले हस्ताक्षर करवा कर लाओ ! तभी यह फॉर्म जमा होगा। 

वह कहां मिलेंगे ? उसने कॉलेज में नजर घुमा कर देखा, इतना बड़ा कॉलेज है, प्रधानाचार्य को तो ढूंढ भी सकती हूं किंतु आज डिपार्टमेंट के प्रोफेसर को कहां ढूंढूगी। तब तक उसकी दोनों सहेलियां वहां आ गई थीं  और उससे पूछा -क्या तुम्हारा फॉर्म जमा हो गया ? शिल्पा का चेहरा लटका हुआ था और बोली - नहीं हुआ। 

क्यों क्या हुआ? क्या कमी रह गई ?

कह रहे हैं ? प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर, और आर्ट के अध्यापक के हस्ताक्षर भी चाहिए। 

तुझसे, मैंने पहले ही कहा था - उस लड़के से कह देती, तो वह फॉर्म भी जमा करवा देता और हस्ताक्षर भी करवा कर लाता क्योंकि इन लोगों को, पूरी जानकारी होती है किन्तु ये तो किसी का एहसान नहीं लेंगी।  

अब गलती हो गई तो हो गई, सोचते हुए वह, आगे बढ़ती है और उसके पीछे-पीछे उसकी दोनों सहेलियां। 

रिया और प्रीत को तो यहां दाखिला लेना ही नहीं था वह तो शिल्पा का साथ निभाने के लिए कॉलेज में आ गयीं हैं और वह उसका कॉलेज भी देखना चाहती थी। हां, यह हो सकता है कि यदि उनका दाखिला, डॉक्टरी में या इंजीनियरिंग में नहीं होता है, तब उन्हें भी यहां आना पड़ सकता है। 

शिल्पा के मन में तो वैसे ही एक अनजाना सा भय समाया हुआ है , वह अकेली किससे दोस्ती करेगी और कौन उससे दोस्ती करेगा ?यही प्रश्न बार-बार उसके मन में आ रहा था। कॉलेज के प्रधानाचार्य से हस्ताक्षर करवा कर, वह सीधे ''आर्ट डिपार्टमेंट'' में जाती है, और छात्रों से पूछते हुए ''मनमोहन सर ''को ढूंढ लेती है, उसे यहां आकर पता चला कि आर्ट डिपार्टमेंट के'' प्रोफेसर मनमोहन शर्मा'' हैं , जैसे ही वह उस कमरे में पहुंचती है, उसे वहां अन्य कलाकारों के साथ ''तमन्ना'' की भी बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स दिखाई देती हैं। उसकी दोनों सहेलियां भी उसके साथ थीं उन पेंटिंग्स को देखकर, वह कहती हैं, कमाल है, ये इतनी सुंदर पेंटिंग्स किसने बनाई है ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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