करुणा अपने भतीजे और भतीजी को, गानों की धुन पर ठुमकते हुए देख रही थी। कुछ पल के लिए वह अपने मन का दर्द भूल गई थी। अपने भाई पर क्रोध तो था, किंतु अपने परिवार से मिलने का लोभ न रोक सकी। दूर ही रहना चाहती थी, किंतु बच्चों को इस तरह देखकर ,उससे रुका नहीं गया और वह मानव और तृप्ति की खाने की मेज़ के समीप ही जाकर बैठ गई। करुणा को देखकर ,दोनों पति-पत्नी ने एक दूसरे को देखा, तृप्ति ने नमस्ते तो किया किन्तु जैसे ,अपने पति के सामने औपचारिकता निभा रही हो और फिर चुप हो गई। उसने यह भी नहीं पूछा -दीदी !आप भी आई हैं ,कब आई थीं ,अब कैसी हो? बात करने का कोई न कोई बहाना इंसान ढूंढ ही लेता है जबकि वे लोग अपरिचित नहीं थे। अपना ही ,सगा रिश्ता था किंतु एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे ,जैसे कोई अजनबी उनके मध्य आकर बैठ गया हो। शायद दोनों ही ,करुणा के आने से ,उससे बचने का कोई बहाना ढूँढ रहे थे।
करुणा को अपनी माँ की बात स्मरण हो आई ,यदि वो बात नहीं कर रहे ,तो तुम बड़ी हो रिश्तों को स म्भालने का प्रयास करना सीखो !वे तो छोटे हैं ,नादानी हो जाती है। तब करुणा ही बोली - तुम लोग कब आये ?
तृप्ति ने उसकी तरफ बिना देखे ही जबाब दिया -अभी तो आये हैं। मानव ने अपनी पत्नी की तरफ देखा और बोला -मैं जाकर देखता हूं ,खाने में और क्या है ? बहाना करके उठकर चला गया, तृप्ति बच्चों में व्यस्त हो गई। उन्होंने कल्पना को ऐसे दर्शाया जैसे वह वहां है ही नहीं। कुछ देर पश्चात कल्पना ने बच्चों को अपने पास बुलाया और उनसे बातें करने का प्रयास किया। बच्चे तो अपनी ही धुन में थे, उन्हें तो वहां घूमने, भीड़-भाड़ ,सजावट ,चमक ,खाना सब अच्छा लग रहा था। तृप्ति भी उससे बचने का प्रयास कर रही थी। शायद सोच रही थी -ये यहाँ क्यों आई ?चेहरे पर न ही मुस्कान ,न ही कोई भाव.......
कल्पना को अब वहां बैठे रहना, मुश्किल लग रहा था,अब उसे एहसास हो रहा था कि उसने यहाँ आकर गलती कर दी।अपने भाई -भाभी के व्यवहार से खिसिया सी गयी थी, उसका मन किया -कि वह जोर-जोर से चिल्ला दे और पूछे - मैं कौन हूं ? क्या तुम लोग मुझे नहीं जानते हो ? किन्तु ऐसे औपचारिक रिश्तों से क्या लाभ ? जबरदस्ती अपनापन दिखाने से भी क्या होगा ? खिसियाई सी ,अपनी झेंप उतारने की नाक़ामयाब कोशिश करते हुए ,झूठी मुस्कान ले ,वह वहां से उठ गई। इस समय वह अपने को ,बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी और अपने आपको धिक्कार रही थी, वह क्यों ,जबरदस्ती उनके समीप गई ?
यह वही मानव है, जिसको बचपन में ,मैं खिलाती थी , सारा दिन गोदी में उठाकर घूमती थी। इसे देखकर खुश हुआ करती थी। इसे पढ़ाती थी, इसकी उन्नति की भगवान से दुआएं करती थी। आज मुझे अजनबियों की तरह देख रहा था , और बहाना करके मुझसे बात किये बग़ैर ,बचकर निकल गया। करुणा जिंदगी के कई वर्षों पीछे चली गई थी। भावों -विचारों का प्रचंड भार बढ़ता जा रहा था जिसके कारण उसकी आंखें भी उस दबाव को नहीं रोक पा रही थी और उसके दर्द के अतिरेक के कारण वह बांध टूट गया था। आंखों से अश्रु बहे जा रहे थे। रोकने का भरसक प्रयास कर रही थी, किंतु रोक नहीं पा रही थी।
तभी उसके पति किशोर ने उसे जाते हुए देख लिया और उसका हाथ पकड़ लिया। उसके सामने आकर बोला-कहां जा रही हो ?
करुणा ,किशोर से नजरें चुरा रही थी। वह नहीं चाहती थी कि किशोर उसकी आंखों, के वह आंसू देख ले। किंतु किशोर, उसका पति उसे बरसों से जानता था। वह जानता था, कि यह अपने परिवार से बहुत ही लगाव रखती है और जितना अधिक लगाव है उतनी ही ज्यादा, आहत भी होती है। उसके पति किशोर ने मानव -तृप्ति को अपने बच्चों के साथ पहले ही ,देख लिया था। किंतु उन्होंने ऐसा दिखलाया था जैसे उन्होंने देखा ही नहीं ,जब वह लोग ही नहीं मिलना चाहते। तब वह इस तरह जबरदस्ती के रिश्ते क्यों बनाएंगे ? किंतु यह तो उसकी बहन है, यह अवश्य ही ,उन लोगों के पास गई होगी। मैंने इसे कितनी बार मना किया है ? क्यों ,उनसे किसी भी प्रकार की उम्मीद रखती है ? और क्यों फिर अपमानित होकर आती है। उनकी सोच इतनी गलत हो चुकी है, उनके लिए रिश्तों का कोई महत्व ही नहीं है। किंतु यह है ,कि समझना ही नहीं चाहती, इन उन रिश्तों से जुड़ी रहना चाहती है।
किशोर उसे पकड़कर, अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले गए, जहां आसपास कोई नहीं बैठा था। करुणा की आंखों के आंसू देखकर, बोले -तुम मानव से मिली थी, क्या ?
करुणा ने झूठ बोलने का प्रयास किया और बोली -नहीं, तो.......
तुम मुझसे झूठ बोलने का प्रयास कर रही हो, किंतु तुम्हारा चेहरा तुम्हारा साथ नहीं दे रहा है। किशोर के इतना कहते ही ,करुणा फ़फ़क -फ़फ़क कर रो पड़ी और बोली -उसने एक बार भी नहीं पूछा -दीदी कैसी हो? जब वह अपनी पत्नी के सामने ही ,मुझसे ऐसा व्यवहार कर रहा था। तब उसकी पत्नी कहां से इज्जत देगी ? इसे इतनी भी शर्म नहीं आई , कि बड़ी बहन होकर मैं ,स्वयं उसके पास गई थी। एक बार भी नहीं पूछा -दीदी कैसी हो? क्या जीजा जी भी आए हैं ? बच्चे कैसे हैं ?
करुणा की बातों को सुनकर, किशोर परेशान हो उठा और बोला तुमसे मैंने कितनी बार कहा है तुम उनसे उम्मीद लगाती ही क्यों हो ? और फिर स्वयं परेशान होती हो। किशोर ,करुणा से बहुत प्यार करता है, वह नहीं चाहता कि वह परेशान हो। हालांकि अपने ससुराल वालों के व्यवहार के कारण, वह भी आहत हुआ है. लेकिन वह एक सामाजिक प्राणी है। समाज की ऊंच -नीच, अच्छा -बुरा सब समझता है। अपनी ससुराल वालों से तो उसका रिश्ता तभी बना है। जब करुणा से उसका विवाह हुआ। जब वह लोग करुणा से ही, सही से व्यवहार नहीं करते हैं। तो वह उनसे कोई विशेष उम्मीद भी नहीं रखता है। वह उन्हें नजरअंदाज करके निकल जाता है , अपने को उन रिश्तो में जबरदस्ती उलझाकर परेशान नहीं होना चाहता ,यही वह करुणा से कहता है ,किंतु करुणा है कि समझती ही नहीं उसे भी समझाने का बहुत प्रयास करता है।
वह करुणा की मनःस्थिति भी समझता है, करुणा ने उन लोगों के लिए क्या कुछ नहीं किया ? उनसे करुणा का रक़्त का ही सम्बन्ध नहीं, दिल से भी गहरा रिश्ता है इसीलिए यह उनके व्यवहार से बार-बार आहत होती है और रोती है। तभी अपने मम्मी -पापा को एक जगह बैठे देखकर ,उनके बच्चे सुमित और रुचि भी आ जाते हैं। अरे ! मम्मी -पापा आप यहां बैठे हैं ? हम घर कब जाएंगे ? सुमित मचलते हुए बोला।
हां ! बेटा चलते हैं।
क्या आप लोग रात में ही जाएंगे ? कल सुबह चले जाना करुणा बोली।
हम ही क्या ? तुम भी तो ,हमारे साथ चल रही हो ,किशोर ने कहा।
मैं इस तरह कैसे जा सकती हूं ? भाभी -भैया क्या सोचेंगे ? अभी लड़की विदा भी नहीं हुई, और मैं चली जाऊं।
सारी जिंदगी यही सोचती रहना, कोई क्या सोचेगा ?अरे तुम्हारी इच्छा है ,जाना है तो चलो ! हमारे साथ, और यदि नहीं जाना है, तो कल आ जाना किशोर ,करुणा के व्यवहार से झुँझलाते हुए बोला।
क्या करूंणा ? अपने बच्चों और पति के साथ जाएगी, या वहीं ठहर जाएगी। क्या मानव को अपनी गलती का एहसास होगा ? आखिर ऐसा उन लोगों के बीच हुआ क्या था? जो इस तरह से दूरियां बढ़ गई, जानने के लिए पढ़ते रहिए -''कांच का रिश्ता''