निधि ने मनु के विवाह में, उपवास रखा हुआ था सुबह से भूखी थी इसीलिए करुणा को उसकी फिक्र हो रही थी। इसलिए करुणा उससे पूछती है, आपको थोड़ा बहुत तो कुछ खा लेना चाहिए वरना आपकी तबीयत खराब हो जाएगी। जयमाला के पश्चात, तब करुणा निधि के लिए कुछ खाने के लिए लेने जाती है।
निधि भी उससे कहती है -अपने बच्चों और पति को साथ लेकरआना।
ठीक है ,कहते हुए करुणा आगे बढ़ गयी। करुणा जब खाना लेने के लिए पहुंची तब उसने मानव को देखा और दो कदम पीछे हट गई। वह प्लेट में, भोजन ले रहा था। उसको देखते ही, करुणा की आँखें नम हो आईं , किन्तु उसको देखकर क्रोध भी आया। अपने ही ,कैसे अजनबी से हो गए ? मुझे अपने परिवार के साथ होना चाहिए किन्तु...... उसका दिल किया कि मानव के गले मिलकर, खूब जोर-जोर से रोए किंतु अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करके वह मुंह फेर कर, दूसरी तरफ से भोजन लेने लगी। उसकी निगाहें, मानव का पीछा कर रही थी। वह अपने दोनों छोटे-छोटे भतीजे और भतीजी को देखना चाह रही थी।
मानव और कोई नहीं, करुणा का सगा भाई है। निधि और यवन, उसके चचेरे भाई -भाभी हैं ,किंतु उसे सम्मान सगी बहन से भी अधिक देते हैं। तभी करुणा ने एक बुजुर्ग को, अपनी तरफ ही आते देखा, उसने ध्यान से देखा तो उसके पापा थे, यानी कि सारा परिवार ही, इस विवाह में शामिल होने आया है। खाने की प्लेट लेकर, वह अलग एक कोने में खड़ी हो गई जिससे किसी को दिखलाई न दे। तब उसने देखा, मानव प्लेट ले जाकर, एक जगह जाकर बैठ गया। वहां पर तृप्ति और उसके दोनों बच्चे थे। अपनी सगी बेटी से इस तरह किनारा करके ,यह लोग कितने प्रसन्न हैं ? इन्हें तनिक भी एहसास नहीं है कि उनकी बेटी, क्या सोचती होगी ? नाराज है, या नहीं है , जैसे इन लोगों को तो मुझसे कोई मतलब ही नहीं रह गया है। कैसे रिश्ते हो गए हैं ? अपनों से ही ,अपने आप को छुपाना पड़ रहा है , जब यही लोग खुश हैं ,तो मैं ही क्यों ?इनके गम में घुली जा रही हूं किंतु जब रिश्तों से धोखा मिलता है ,तो दुख तो होता है। होना स्वाभाविक ही है। अपनी आंख में आए एक आंसू को अपने रुमाल में लपेटकर, अपने पर्स में रख लिया। मैं इनके लिए क्यों अपना कीमती आंसू बहाऊं ?
मन तो कर रहा था, इस मेज पर जाकर बैठूँ और इन्हें एहसास कराऊँ , मैं भी इस परिवार की ही सदस्या हूं। हम कैसे इतनी अजनबी हो गए हैं ?किन्तु तृप्ति की तरफ देखती है ,जो अपने बच्चों में व्यस्त है। इसने ही तो मेरे परिवार को मुझसे अलग कर दिया। देखने में तो कैसी सीधी और सच्ची लग रही है ?किन्तु बिल्कुल जलेबी की तरह सीधी है। बात करती नहीं दिखती किन्तु न जाने क्या मोहिनी चलाई है ?मेरा परिवार ही मेरा नहीं रहा। कभी अपने घर गयी ,न ही हंसती -बोलती ,न ही कुछ कहती किन्तु घर वालों का व्यवहार अवश्य बदलता नजर आता। सबसे ज्यादा तो ये बदला है ,मानव की तरफ क्रोध से देखते हुए ,उसे घूरने लगी।
तभी जोरों से, डीजे का पर गाना बजने लगा -''तेरे इश्क की दीवानगी सर पर चढ़कर बोले। '' उस शोर और उस गाने, में उसके विचार, न जाने कहां घुल गए ? सब कुछ अस्त -व्यस्त सा हो गया। करुणा के भतीजे -भतीजी गाने की धुन पर अपनी माँ के समीप ही खड़े ,ठुमके लगा रहे थे। दोनों पति -पत्नी अपने बच्चों को इस तरह नाचते देखकर प्रसन्न हो रहे थे। करुणा भी दूर से ही ,खड़ी मुस्कुरा रही थी। मानव ने अपने जीजा जी को देखा किंतु वे तो अपनी ही धुन में न जाने कहाँ बढ़े जा रहे थे ?हो सकता है ,अपने बच्चों को ,या फिर करुणा को ही ढूँढ रहे हों इसीलिए वे उसे नहीं देख पाए। इस बात से आश्वस्त होकर मानव अपने बच्चों में, व्यस्त हो गया।
यह देखकर करुणा को क्रोध आया ,जब इसने अपने जीजाजी को देख लिया,तब एक बार मिल तो सकता था। बड़े जीजा हैं ,''नमस्ते ''तो कर ही सकता था। यदि यह बात इन्हें बाद में पता चली कि मनु के विवाह में मानव भी आया था और जानबूझकर मिला भी नहीं कितने नाराज होंगे ?इनकी हरकतें ही ऐसी हैं ,इन्हें ये भी शर्म नहीं आती ,मुझे अपने पति के सामने ,इनके कारण ,इनकी हरकतों के कारण ,बार -बार अपमानित होना पड़ता है किन्तु इन लोगों पर तो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ता।
जो मान -सम्मान,प्यार मुझे निधि और यवन के यहां से मिलता है , वह मान सम्मान , प्यार ,अपनापन मुझे अपने परिवार से मिलना चाहिए था किंतु ऐसा लगता है ,जैसे इन लोगों ने कसम खा रखी है। बेटियों का अपमान करने की। हम आपस में ,अपरिचित से हो गए हैं। जैसे एक -दूसरे को जानते ही नहीं, कोई कह नहीं सकता कि मैं उसी घर की बेटी हूं।
निधि और करुणा, दोनों ही, अपने पारिवारिक रिश्तों में उलझी हुई है और वह ससुराल की तरफ से नहीं मायके की तरफ से है। जी मायके के लिए लड़की, अपने ससुराल वालों से भी लड़ जाती है , वही मायका आज उनके लिए क्यों अजनबी हो गया ?ऐसा क्या हुआ था ? एक परिवार के होकर भी, अजनबियों की तरह देख रहे हैं और मिलकर भी अनजान बने हुए हैं। जानने के लिए पढ़िए -''कांच का रिश्ता ''