Kanch ka rishta [part 6]

निधि और करुणा दोनों ही ,अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गई थीं , धूम -धड़ाके से बारात आ रही थी। दूर से ही ,ढ़ोल और बाजे के धुन सुनाई पड़  रही थी। ढ़ोल की आवाज़ तो ऐसी ,जिसे नाचना भी न आये ,वह भी थिरकने पर मजबूर हो जाये।लड़के -लड़कियों का हो -हल्ला ,उनकी मस्ती उन दोनो के चेहरों  पर भी प्रसन्नता ले आया। कुछ देर के लिए ,वे सब कुछ भूल चुकी थीं । खूब जोरों से, नाच -गाना चल  रहा था। दामाद के स्वागत  के लिए ,निधि ही थाली लेकर आगे बढ़ी। वहां भी ,खूब लड़की वालों  की तरफ से और लड़के वालों की तरफ से ,चुहलबाजी हुई। निधि नजरभरकर अपने दामाद को देख रही थी। जो दूल्हे के वस्त्रों में खूब जंच रहा था। तब निधि ने स्वयं ही ,उसकी नजर उतारी ,कहीं मेरी ही ,नजर न लग जाये। टिके पर जो भी पैसे मिले ,निधि ने वहाँ खड़ी सभी लड़कियों में बाँट दिए। 


तब प्रसन्न होते हुए निधि ने थाली रजनीगंधा के हाथों में थमा दी और करुणा से बोली -दीदी ! एक बार चलकर मनु को देख लेते हैं। उसे किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं, वैसे तो उसकी सहेलियां उसके पास बैठी हैं। मैं मनु के पास जाती हूं, आपको भूख लगी है तो, आप नाश्ता कर लीजिए ! निधि ,करुणा को अकेला छोड़ देना चाहती थी। ताकि उसे किसी प्रकार का दबाव महसूस न होऔर अपने बच्चों और अपने पति से भी मिल ले। करुणा समझ गयी थी ,भाभी उसे जानबूझकर अकेला छोड़कर गयी हैं। करुणा अपने बच्चों को देखते ही ,प्रसन्न हो गई और उन्हें खाने के लिए कह दिया , थोड़ा जल्दी आ जाते शिकायत भरे लहज़े में करुणा बोली। 

मम्मी हम तो पहले से ही खा रहे हैं , आपने खा लिया-उसके बेटे ने जवाब दिया। 

उसकी बात का कोई जबाब न देकर उसने फिर से प्रश्न किया -तुम्हारे पापा कहां हैं ? वे कहीं नहीं दिख रहे ?

अभी तो यही थे, इधर-उधर ही हो गए होंगे। 

अच्छा एक बात बताओ ! तुमने अपने मामा को देखा, क्या वह भी आया है ?

अभी तो नहीं देखा,

मिले तो ...... अच्छे से नमस्ते करना, प्यार से मिलना। 

नहीं ,मम्मी !मैं यह सब औपचारिकता नहीं करूंगा ? सुमित बोला -वह सीधे मुंह बात तो करते नहीं है। 

ऐसा नहीं कहते, तुझसे बड़े हैं, रिश्ते में तेरे मामा हैं ,करुणा उसे डांटते हुए बोली  -सुमित ,थोड़ा अनमना सा हो गया। 

अच्छा ,अच्छा अब अपना मूड खराब मत कर और नाश्ता कर ले जिस किसी चीज की इच्छा हो , तो स्वयं ही ले लेना ! मैं भाभी की मदद करने जा रही हूं, शायद उन्हें किसी चीज की आवश्यकता पड़ जाए। रुचि अपने भाई का ख्याल रखना कहकर करुणा वहां से चली गई। तभी गाना बज उठा -

                                            ''बहारों फूल बरसाओ ,मेरा महबूब आया है।'' 

उस गाने को सुनकर,करुणा पहले तो मुस्कुरा उठी ,और सोचने लगी -ये गाना मेरे समय से ही ,बजता आ रहा है ,इसका अर्थ है -दुल्हन मंच की तरफ जा रही है और वह भी ,मंच की ओर बढ़ चली। 

मानव अपनी पत्नी , दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ ,इस विवाह में शामिल होने के लिए आया है , तृप्ति बनारसी साड़ी में बहुत ही अच्छी लग रही थी। अपने पल्लू को संभालते हुए ,वह आगे बढ़ रही थी। तब मानव एक सही सी जगह देखकर तृप्ति से बोला -तुम ही बच्चों के साथ यहीं बैठो ! मैं खाने के लिए कुछ लेकर आता हूं। 

ठीक है ,यह कहकर, तृप्ति एक गोलमेज के पास अपने बच्चों को लेकर बैठ गई और विवाह का आनंद लेने लगी। 

करुणा , निधि के पास पहुंची और बोली -भाभी ! किसी कार्य की आवश्यकता तो नहीं है।

 तब निधि बोली -नहीं दीदी !अब कोई कार्य नहीं है ,अब तो 'जयमाला 'का समय है ,यहाँ क्या काम हो सकता है ?आपने और बच्चों ने खाना खा लिया। 

हाँ ,भाभी !आप भी जाकर नाश्ता कर लीजिए! कहीं आपकी तबियत न बिगड़ जाये। मनु को भी इसकी सहेलियों ने नाश्ता करवा दिया है। 

अरे नहीं ,अब मैं क्या खाऊँगी ?मेरा तो उपवास है ,एक माता -पिता के लिए उसकी बेटी का 'कन्यादान 'ठीक से हो जाये ,और क्या चाहिए ? निधि उदास स्वर में ,मुस्कुराकर बोली। 

मैं ही आपके लिए हल्का -फुल्का कुछ लेकर आती हूँ। वह अपनी जगह से उठने को हुई ,तब तक मनु मंच तक पहुंच चुकी थी। कैमरे वाले बड़ी ही तल्लीनता से उसकी तस्वीरें खींच रहे थे। तब लड़के से मनु का हाथ पकड़कर मंच पर लाने के लिए कहते हैं। ज्यादा शोर -शराबे के स्वर सुनाई देने लगे। करुणा कुछ देर के लिए ये सब देखने के लिए फिर से बैठ गयी। खूब हंसी -मज़ाक के पश्चात आखिर 'जयमाला ''की रस्म हुई। दूल्हा -दुल्हन दोनों ही अपनी -अपनी कुर्सी पर बैठ गए। करुणा बोली -भाभी ,अब आपको खाने के लिए कुछ ले आती हूँ। 

ठीक है ,शीघ्र ही आइये !और साथ में बच्चों और भाईसाहब को भी ले आइये ! दूल्हा -दुल्हन के साथ आपके परिवार की फोटो हो जाएगी।

ठीक है ,भाभी ! मैं अभी आती हूँ अपने पल्लू को संभालते हुए आगे बढ़ गयी। अब उसके पतिदेव और बच्चे उससे दूर थे ,सोचा -उन्हें भी ले आऊँगी किन्तु जब वो खाने के स्थान पर पहुंची तो उसके कदम जस के तस वहीं थम गए। और वो दो कदम पीछे हट गयी। वहाँ  ऐसा क्या हुआ था ?जो करुणा के चेहरे का रंग ही बदल गया। आगे जानने के लिए पढ़ते रहिये -'काँच का रिश्ता ''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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