Kanch ka rishta [part 5]

प्रातः काल उठते ही ,निधि घर के महत्वपूर्ण कार्यों में लग गई ,बच्चे अभी तक सो रहे हैं क्योंकि देर रात तक 'जागरण ' जो किया था। हलवाइयों से नाश्ता और दोपहर का खाना बनाने के लिए कह दिया गया था। बाकी की सभी रस्में होटल में जाकर ही होगीं। वहां भी सामान ले जाना है। अभी मंडप की सजावट हो रही है। शाम का समय था और धीरे-धीरे सभी मेहमान आने आरंभ हो गए थे। अंदर कुछ रस्में चल रहीं थीं अभी बरात आने में,तीन घंटे बाकी थे किंतु निधि को तो किसी और की ही प्रतीक्षा थी और जिसकी प्रतीक्षा थी ,वह अभी तक नहीं आया था। उसकी निगाहें ,टकटकी लगाएं थीं , वह प्रवेश द्वार तक जाती है और निराशा से वापस लौट आतीं  है। कभी-कभी उसे गुस्सा भी आता, किंतु लगता ,कोई लाभ नहीं है। उसने फोन भी किया किंतु किसी ने फोन ही नहीं उठाया फिर सोचा -आ रहे होंगे , किंतु है,कहां ? समय निकलता जा रहा है। अब तो बेटी भी तैयार  होने के लिए ,''ब्यूटी पार्लर ''  चली गई है ,सभी रिश्तेदार भी तैयार हो रहे हैं। कुछ तैयार होकर आये बैठे हैं। निधि तो बहुत देर पहले से ही तैयार हो चुकी थी। बस उसे प्रतीक्षा थी तो पुनीत के आने की निधि का इकलौता भाई है, पुनीत ! वही तो आएगा और मंडप पर, बेटी के ऊपर छिल्लर का पानी भी डालेगा और भात भी भरेगा। 


कितनी लापरवाही है ? अभी तक नहीं आया ,कोई फोन भी नहीं उठा रहा। तभी नाराज होते हुए यवन जी आए, और बोले -तुम किसकी प्रतीक्षा में हो ? मुझे लगता है ,वह नहीं आएगा। तुम्हें जो भी बाकी की रस्में  करनी हैं , वह कर लो ! तुम्हारे चाचा -ताऊ  परिवार सहित आ गए और एक वो तुम्हारा नालायक़ भाई...... 

वह जानती है ,कि वे भी उसी की प्रतीक्षा में है ,यह उनकी नाराजगी बोल रही है किंतु वह कैसे अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ सकता है ? बारात के आने का समय 8:00 बजे था और अब सात बज चुके हैं। निधि को घबराहट होने लगी। उसका दिल कर रहा था -कि जोर-जोर से रोए ,घबराहट थोड़ी बढ़ गयी। सभी रिश्तेदार पूछेंगे -'भात 'क्यों नहीं लिया ?या भाई क्यों नहीं आया ? क्या कहेगी ? भाई -बहनों में ऐसी नाराजगी तो चलती रहती है ,लड़ाई -झगड़े  भी चलते रहते हैं किंतु इसका अर्थ यह तो नहीं, कि ऐसे मौके पर ही, वह दगा दे जाए। आया ही नहीं, चेचरे - ममेरे भाई -बहन भी आ गए किंतु जो सगा भाई है ,वही नहीं आया। मन ही मन नाराज हो रही थी -इसने कहीं भी किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। जब से, भाभी आई है ,उसके पल्लू से बँधा  घूम रहा है ,जैसा वह कहती है ,वैसा ही करता है। अपने मान-सम्मान की नहीं है ,तो कम से कम हमारे मान -सम्मान का तो मान रखा होता। मैं प्रिया [भाभी ]की बहन नहीं, किंतु उसकी बहन तो हूं, अपनी बहन के लिए ही आ जाता। 

उसके क्रोध की अधिकता इतनी बढ़ी ,उसकी गर्माहट से,आंसुओं में ढलकर, वह भार गालों तक आ गया। माता-पिता भी उसके पीछे, धृतराष्ट्र बने बैठे हैं। जैसा वह पढ़ा देता है ,पढ़ लेते हैं। कहीं कोई देख न ले ,इसलिए मुंह धोने के बहाने चली जाती है। आईने में अपना चेहरा देखती है, क्रीम ,बिंदी ,लिपस्टिक मेकअप से पटा ये  चेहरा ! बाहरी दिखावा है ,इक झूठ का ,इस वक्त, न जाने उसके हृदय में कितना भूचाल चल रहा है ? कुछ देर पश्चात, उसके चाचा उसके पास आए और बोले -क्या पुनीत नहीं आया ? 

पता नहीं , उसे आने में,क्यों देर हो गई ? अपने आप को और उन्हें झुठलाना चाहती थी। 

उसके झूठ को वह समझ गए और मुस्कुरा दिए , बोले -तू क्यों परेशान होती है ? वह नहीं आया तो तेरे और भी भाई हैं। तू इंतजाम कर....... वे भात भरेंगे।

 नहीं ,चाचा जी ! मैं आप लोगों पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालूंगी। आप लोग बेटी के विवाह में आए और उसे आशीर्वाद आए ,मेरे लिए यही बहुत है। एक बेटी का ,जो अधिकार अपने भाई पर अपने परिवार पर रहता है , वह अधिकार की भावना किसी दूसरे के साथ नहीं आ पाती है। किंतु उस अधिकार को, कुछ लोग बोझ  समझ बैठते हैं। वह नहीं चाहती थी , चाचा उसकी बेटी का भात भरें और मेरे परिवार को कहने के लिए बात हो जाए। भाई के बगैर ,कैसे मैं किसी दूसरे को पटरे  पर खड़ा करके देखूँगी  ? एक मन तो किया, कि  इन लोगों को से ही ,'भात 'भरते हुए तस्वीर लेकर उन्हें दिखलाऊंगी। किंतु इस सबसे क्या होगा ? निधि अपनी ही परेशानियों में उलझी थी तभी करुणा भी आ गई। अभी तक निधि ने उसे अपनी परेशानी का भान नहीं होने दिया था। होता भी कैसे ? वह तो मनु की साथ , उसे तैयार करवाने के लिए साज -सज्जा  की दुकान पर गई थी। 

निधि का उतरा हुआ चेहरा देखकर बोली -भाभी !क्या हुआ ? 

करूणा को देखकर उसकी रुलाई फूट गई , अपने को रोक ना सकी , इतनी देर से मन में गुब्बार लिए बैठी थी। वह बाहर आ रहा था , बोली-दीदी ! पुनीत नहीं आया। 

क्या उसे कार्ड नहीं भेजा था ? 

कार्ड भी भेजा था, और घर भी गई थी ,वहीं  हमारी थोड़ी सी झड़प हो गई थी, मुझे लगता है -उसी का मलाल  लिए बैठा होगा। 

ऐसा भी ,क्या मलाल करना ? जो सगी भांजी  के विवाह में नहीं आया। कहते हुए ,करुणा  जोर-जोर से रोने लगी, उसे अब वह अपना ही दर्द लग रहा था -रोते हुए बोली -न जाने इन घरवालों को क्या हो जाता है ? विवाह तक हम उनकी बेटियां रहते हैं ,विवाह के पश्चात 'मेहमान 'बन जाते हैं। किसी -किसी की हालत तो यही है, यह सोचते हैं -कि  बेटियां !आती ही लेने के लिए हैं। उन्हें देना होगा इसीलिए उनसे क्यों न नाता ही  तोड़ लें  ? कहते हुए करुणा जोर-जोर से रोने लगे। निधि अपना रोना भूल गई अपना दर्द भूल गई। तभी बाहर से आवाज आई - बारात !आ गई। 

शांत हो जाइए दीदी ! चलिए जो भी किस्मत में लिखा है, वह तो होकर ही रहता है ,कहते हुए दोनों एक दूसरे का सहारा बन बाहर आती हैं। 

पुनीत और निधि में ऐसा क्या हुआ था? जो अपनी सगी भाँजी का भात भरने के लिए भी, पुनीत न गया क्या वह अपनी बहन से क्रोधित था ? या कोई और ही कारण था। जानने के लिए पढ़िए -कांच का रिश्ता

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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