शाम के समय मेंहदी वाली आ गयी ,उसके आने पर पहले ही ,महिलाओं को निमंत्रण दे दिया गया था। सभी नियत समय पर पहुंच गयीं। कुछ तो मेहँदी लगवाने के उद्देश्य से पहले ही ,आ गयीं थीं। मेंहंदीवाली ,अपनी सहायक के तौर पर एक अन्य लड़की को लेकर आई थी। उसने रिश्तेदार और अन्य लड़कियों को संभाला था और मनु के हाथों में दुल्हन की मेहँदी वह स्वयं लगाने बैठी। शाम तक मनु के चचेरे भाई -बहन भी आ गए थे। आते ही ,उन्होंने तेज स्वर में गाने बजाने आरम्भ किये। उसकी मौसी का एक लड़का ,संजय वो तो ऐसे मौको की तलाश में ही रहता है ,पूरी मस्ती करता है । जो लड़कियां अलसा रही थीं ,सोना चाहती थीं ,उन्हें भी जबरदस्ती उठा दिया और बोला -न ही सोऊंगा ,और न ही सोने दूंगा ,चुपचाप उठकर सभी बड़े कमरे में ,आ जाओ ! वहीँ मस्ती करेंगे !आज की रात्रि ''रतजगा ''होगा।
संजय की मस्ती और उल्लास देखकर ,निधि ने एक बड़े कमरे में ही ,सभी के लिए लेटने -बैठने का इंतजाम करवा दिया है। वैसे तो इतने शोर -शराबे में किसे नींद आने वाली है ?किंतु कोई चाहे तो लेट सकता है। जो कोई आना नहीं चाहता था ,संजय उसे उठाकर खेंचकर ले आता है । मेहँदी के गाने चला दिए -
'' मेंहदी है ,रचनेवाली ,हाथों में गहरी लाली ,कहें सखियाँ !
अब कलियाँ ,हाथों में खिलने वाली हैं। ओ हरियाली बन्नो !''
मौसम न ही, ज्यादा ठंडा था और न ही ज्यादा गर्मी थी ,तब भी भीड़ के कारण गर्मी का एहसास होने लगा। नाचती -गातीं ,गाने की ताल पर थिरकती ,खिलखिलातीं ,ये बेटियाँ !किसी ने सच ही कहा है -घर की रौनक होती हैं ,ये बेटियां !
करुणा की तरफ देखते हुए निधि बोली - जब तक दीदी आप नहीं आई थीं ,घर बेरौनक लग रहा था। अब देखो !आपके आते ही कैसी चहल -पहल हो गयी ? अपनी बेटी के जाने का सोचकर फिर से भावुक हो उठी और बोली -बेटियाँ !तो पराया धन ही होती हैं।उन्हें तो समय आने पर भेजना ही पड़ता है ,कहते हुए अपनी आँखों के अश्रु पोंछते हुए बोली -अब ये भी चली जाएगी ,घर कितना सूना हो जायेगा ?
ये बात तो है ,भाभी !किन्तु ये भी जब आएं ,तभी खुश होकर स्वागत करना चाहिए। कहते हुए ,करुणा का गला भी भर आया ,एक हल्का सा दर्द जैसे उसके हलक में अटककर रह गया।
निधि समझ गयी, कि दीदी को अपनी कौन सी स्मृति स्मरण हो आई ?और बोली -कोई बात नहीं दीदी !दुःख -सुख तो जीवन में लगे ही रहते हैं।
क्या आपने उसे भी मनु के विवाह में बुलाया है ?करुणा ने पूछा।
क्या बात करती हैं ?दीदी ! भला उन्हें कैसे नहीं बुलाते ?आपके भइया को बुरा लगता ,फिर मैं कौन होती हूँ ? उन्हें बुलाने वाली ,आपके भइया !का ही निर्णय है ,अपनी बेटी के विवाह में किसको बुलाना है ,किसको नहीं ?
हाँ ,ये भी है ,तभी रजनीगंधा !जो पड़ोस में रहती थी ,वो भी करुणा को बुआ ही बोलती थी ,आकर बोली -बुआजी !आप भी आइये !हम लोग थक गए ,बहुत दिन हो गए ,आपका डांस भी नहीं देखा। आइये !आप भी डांस कीजिये।
तुम जवान बच्चे हो ,तुम अभी से थक गए ,तुम्हारी उम्र में ,मैं अकेली ही आठ -दस गानों पर नाच लिया करती थी। और वो भी ,तुम्हारा ये डीजे -विजे नहीं ,ढोलक की थाप पर पांव थिरकते थे। भला अब मेरी उम्र डांस करने की कहाँ रही ?
क्यों ?आपको क्या हुआ ?आपकी उम्र को ,आप तो अभी भी ,खूब जवान लगती हो ,चलिए !कोई बहाना नहीं चलेगा।
निधि समझ रही थी ,''जब रिश्ते दर्द देने लगते हैं ,तब सोच-समझकर कदम आगे बढ़ाने पड़ते हैं। इनके अंदर भी एक दर्द पल रहा है ,फिर भी बोलीं -दीदी ! ऐसे में बेटी को तो ले आतीं ,कम से कम इन बच्चों के साथ हिलमिल जाती ,ऐसे समय में भी बच्चे कुछ न कुछ सीखते हैं। रिश्तों को पहचानते हैं ,आपस में व्यवहार करना सीखते हैं।
कह तो तुम सही रही हो ,किन्तु कहते हुए उनके शब्द कड़वाहट से भर गए और रजनीगंधा के साथ उठकर चलीं गयीं। निधि उन्हें तो समझा रही थी ,किन्तु अपने आप को कैसे समझाये ?उसके मन में अंदर ही अंदर घबराहट थी जिसे वो बहुत दिनों से अनदेखा कर रही थी। अब तो समय ही बतायेगा !आगे क्या होगा ?
भाभी क्या सोच रही हो? करुणा हंसते हुए आती है और निधि का सहारा लेकर बैठने का प्रयास करती है।
निधि अपने विचारों से बाहर आती है और मुस्कुराते हुए कहती है -दीदी थक गईं , संजय जरा जाकर दीदी के लिए पानी लेकर तो आना ! तब करुणा से कहती है -आप भी न, कहां इन बच्चों की बातों में आ गई ? थोड़ा सा ,ऐसे ही मटक लेतीं , आपने भी पूरा गाना किया।
अपने पसीने पौंछते हुए करुणा बोली -घर गृहस्थी में ऐसे रम जाते हैं अपना और अपने मन का करने का समय ही नहीं मिलता। वह लड़की सच ही तो कह रही थी, अभी मेरी उम्र ही कितनी हुई है ? सिर्फ 45 की तो हुई हूं , किंतु हमने भी न......... जबरदस्ती बुढ़ापा ओढ़ लिया है।
निधि देख रही थी ,करुणा थक तो गई है किंतु इस सब में उसे आनंद आया ,उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी।