धीरे-धीरे संपूर्ण गांव में यह खबर फैल गई कि श्रीधर जी का बेटा, चतुर वापस आ गया है। लोग उसे देखने और मिलने आने लगे , जैसे वह कोई भूली -बिसरी या ऐतिहासिक इमारत हो। सभी यह जानना चाहते थे कि अब तक वह कहां था?और क्या कर रहा था ? किंतु वह किसी से कुछ भी नहीं बता पाया क्योंकि यह पिता के सम्मान की बात हो जाती, कि वह ऐसे समय में एक चाय की दुकान पर नौकर का कार्य कर रहा था।
तभी एक व्यक्ति ने उससे झिड़कते हुए पूछा, अरे लाला ! बताता क्यों नहीं ? अब तक कहां था और क्या कर रहा था ? किसी तरह से तो पेट भरा होगा।
ताऊ जी ! मैं पास के शहर में ही था , एक-दो दिन तो मुझे रहने का ठिकाना ही नहीं मिला। यूं ही ,दुकानों के सामने सो जाता था। पास में ,पैसा भी नहीं था ,जेब टटोली ,तब दस रूपये मिले ,एक समय खाया और दूसरे समय पानी पीकर बिताया। यही सब तो वह लोग जानना चाहते थे , अब उन्हें उसकी बातों में दिलचस्पी होने लगी। एक दिन मुझे एक व्यक्ति मिला, और पूछने लगा -बेटा !क्या कर रहे हो ? यहां कैसे सोते हो ?क्या तुम्हारा कोई घर नहीं ?
तब मैंने उनसे कहा -'हम तो रमता जोगी हैं , हमारे पास कोई ठिकाना नहीं , जो खाने को दे जाता है ,खा लेते हैं , हमने सब मोह माया त्याग दी है।'' और उसे मैंने कुछ अपनी किताब के संस्कृत के श्लोक सुनाएं , वह बड़ा ही प्रभावित हुआ तब कहने लगा, इस उम्र में इतना ज्ञान ! प्रभु आप मेरे घर आईये , मेरी कुटिया को, पवित्र कीजिए।
तब क्या हुआ ? इकट्ठा भीड़ में से एक ने पूछा।
होना क्या था? हमने कहा -'हम तो रमता जोगी हैं, हम किसी के घर नहीं जाते, किंतु यदि तुम हमें अपने घर ले जाना ही चाहते हो, हम बैठकर खाने वाले व्यक्ति नहीं है, हम कर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं। हम बिना कार्य के आपका मुफ्त में कुछ नहीं लेंगे।''
तब वह कहता है -'कि प्रभु मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हो गया।' जब चतुर ने देखा कि उसकी बातों का प्रभाव गांव वालों पर पड़ रहा है। तब वह अकड़कर खड़ा हो गया और अपने हाथों को ,अपने सीने से बांधकर बोला -तब मैंने, उनके घर में प्रवेश किया , और देखा, वहां तो पहले से ही, दो-तीन बच्चे थे , यह कहते हुए ,उसे कस्तूरी और उसके भाई का स्मरण हो आया। तब मैंने उन जजमान से कहा -आज से इन बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी मेरी , जब तक मैं यहां रहूंगा तब तक ,आपके बच्चों को उचित शिक्षा देता रहूँ गा। तब से मैं वहीं पर रहकर, उनके बच्चों को पढ़ा रहा था।
किंतु मुझे तो तुम दुबले लग रहे हो ! मुझे तो नहीं लगता ऐसे ही ,कोई किसी गांव के बच्चे पर यकीन कर लेगा।
वह अपना घर थोड़े ही था , अपने माता-पिता की भी तो मुझे याद आ रही थी , उनके कारण, मुझसे ठीक से खाया भी नहीं जाता था। जब भी खाने बैठता, उनका स्मरण हो जाता। वह सब यह गप्पे छोड़ ही रहा था।
किंतु श्रीधर जी की आंखों में आंसू आ गए और मन ही मन सोच रहे थे - ऐसा 'होनहार बच्चा 'किसी नसीब वाले को ही मिलता है ? प्रत्यक्ष बोले -अब सभी को अपने सवालों का जवाब मिल गया होगा , मेरा बेटा बहुत दिन में घर वापस आया है , हमने तो जैसे उसके वापस आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी , जैसे भी रहा हो जहां भी रहा हो ,बस हमें तो इसी बात की खुशी है कि वह अपने घर वापस तो आ गया। अब कुछ दिन हमारे पास रहेगा ,हमारे दिल को तसल्ली रहेगी, इसके बगैर,इसकी मां की हालत तो बहुत ही खराब हो चुकी थी। अब सब अपने-अपने घर जाओ ! बाकी की बातें बाद में कर लेना।
चतुर के दोस्तों को ,उसकी बातों पर यकीन नहीं हो रहा था। यार !मयंक मुझे लग रहा है ,यह लपेट रहा है ,
पक्का -पक्का लपेट रहा है , किंतु यह नहीं जानता कि हम भी इसके यार हैं।
अरे यार सुन...... क्या शहर में इसे कोई लड़की नहीं मिली होगी ?
चल ,तू भी क्या बातें लेकर बैठ गया , मिली भी होगी ,तो इसे कौन घास डालेगी ? मैंने सुना है -'शहर में एक से एक सुंदर लड़कियां होती हैं। 'कुछ बात तो जरूर है जो यह हमसे छुपा रहा है, पूछना पड़ेगा। आपस में यह सब बातें करते हुए, वे लोग अपने घर चले गए।
श्रीधर जी मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। ऐसी स्थिति में भी,मेरे बेटे ने कोई गलत कार्य नहीं किया , अपने परिवार का मान -सम्मान बनाकर रखा। किंतु यह बात तो उन्हें भी हजम नहीं हो रही थी कि उसे किसी ने, तपस्वी या साधु समझा और अपने घर ले गया। अचानक ही बोल उठे , उनके घर कितने दिन रहा ?
बस अब तक ही रहा हूं, उनके घर से, अपने घर आ गया। कहकर अपने चेहरे को उसने नीचे किया और मुस्कुराने लगा। अब यह तो चतुर की पहली शुरुआत है, जो उसने डींगें हांककर, गांव के लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ने का प्रयास किया। कभी-कभी एकांत में होता तो, कस्तूरी को स्मरण कर लेता। वह सोच रहा था अभी मैं छोटा हूं, विवाह लायक तो नहीं हुआ माता-पिता से भी नहीं कह सकता कि मेरा कस्तूरी से विवाह करा दो ! तभी उसके मन में एक भय समा जाता , कहीं मेरे पीछे पूनिया ,कस्तूरी को न बहका ले, यही सोच कर उसके मन में अजीब सी बेचैनी होने लगती।
एक सप्ताह पश्चात ,परीक्षा का परिणाम भी आ गया , चतुर ने अच्छे नंबरों से , अपनी क्लास पास की। उस समय माता-पिता के लिए बच्चों का पास होना ही महत्व रखता था ,उससे ज्यादा कि उन्हें लालसा भी नहीं थी। बस बच्चा उत्तीर्ण होकर ,अगली क्लास में, आ जाए यही बहुत है। गांव भर में मिठाइयां बांटी गईं , जिन जिन के बच्चे पास हो गए थे। बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव भी नहीं था। मस्ती -मस्ती में ही पढ़ाई भी होती थी, दोस्तों से मिलना भी होता था और अगली कक्षा की तैयारी भी.......
जब बच्चे पास हो जाते हैं, खुशी के कारण उनके चेहरे पर अलग ही तेज आ जाता है। क्योंकि परिवार का माता-पिता का कोई दबाव भी नहीं रहता। श्रीधर जी ने चतुर से पूछा -अब तूने आगे पढ़ने के विषय में क्या सोचा है ?
मतलब !मैं कुछ समझ नहीं।
पढेगा या नौकरी करेगा या अपनी खेती-बाड़ी ही संभाल लेना।
मुझे अभी खेती-बाड़ी संभालने की क्या आवश्यकता है ? अभी तो आप लोग हैं,ही , मैं पढ़ने के लिए बाहर जाऊंगा।
उसके इतना कहते ही रामप्यारी, का हृदय काँप उठा और बोली -क्या तू फिर से हमसे दूर हो जाएगा ?
नहीं, आप लोगों के साथ ही रहूंगा किंतु एक अच्छी सी साइकिल दिलवा दो ! उससे चला जाया करूंगा एक घंटा आने का लगेगा एक घंटा जाने का।
यह बात भी सही है, श्रीधर जी बोले। किंतु चतुर तो मन ही मन सोच रहा था इस बहाने मेरा कस्तूरी से मिलना भी हो जाया करेगा।
क्या कस्तूरी और चतुर का रिश्ता आगे बढ़ेगा ? क्या यह प्रेम परिणय में बदलेगा ? चतुर अपनी मंजिल की सीढ़ियां किस तरीके से चढ़ता है ? और कहां तक पहुंचता है? यह जानने के लिए पढ़ते रहिए -रसिया !