घर में चारों तरफ ,चहल-पहल हो रही है ,कुछ मेहमान आ चुके हैं और कुछ आ रहे हैं ,तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। निधि को एक पल का भी होश नहीं ,कभी इधर जाती है ,कभी उधर और इस बीच कभी-कभी पति की नाराजगी भी झेलनी पड़ जाती है। पहले से ही ,सब सामान तय करके रखा हुआ था। किस वक्त किस चीज की आवश्यकता हो सकती है ,पहले ही सोच लिया था किंतु एन मौके पर न जाने किस चीज की आवश्यकता आन पड़ती है ?कोई नहीं जानता। पंडित जी ने सामान तो लिखवाया था ,किंतु उसमें भी, कई कमियां निकल आईं ,निधि ने अपने बेटे हर्ष को दौड़कर जाने के लिए कहा। इस विषय में तो पंडित जी से बहस भी हो गई। आपने यह सब सामान पहले क्यों नहीं लिखवाया ?
मैंने तो लिखवाया था किंतु आपने ही ध्यान नहीं दिया , या लिखना भूल गयी होंगी , अब किसी को क्या कहें ? मौका ही ऐसा है ,इतना समय भी नहीं है। हर्ष को सामान लाने के लिए भेजा। वह दौड़ कर गया, इससे पहले, अन्य कार्य करने आरंभ कर दिए। बेटी का विवाह है, पहले बच्चे का विवाह है ,कुछ आता -जाता भी नहीं है, पहले घरों में बड़ी -बुढ़ी होती थीं , वह बताती रहती थीं ,किंतु यहां लगभग सभी एक जैसी ही हैं। बाण ,मंढा और भी न जाने क्या -क्या रस्में हैं ? कुछ रस्में भाई निभाता है। कल बारात आ जाएगी अभी तो बेटी को मेहँदी लगाने वाली भी नहीं आई ,उसको फोन करके पूछा ,उसने शाम छह बजे का समय दिया है।
वैसे तो, होटल में सभी प्रबंध किया गया है किन्तु आज घर में भी कुछ रस्में करनी है। मोहल्ले की महिलाएं भी आई हुई हैं। किसी को देहाती गीत ,या यूँ कहें ''लाड़ो ''नहीं आती ,बहुत सी को तो ढोलक भी बजानी नहीं आती। इस समस्या को देखते हुए निधि ने पहले ही ,एक ऐसी महिला को बुक कर लिया था किन्तु वो भी,अभी तक तो नहीं आई। निधि अपनी पड़ोसन से बोली -दीदी !कुछ तो गा -बजा लीजिये !
बहुत दिन हो गए ,कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी ,जो आता था ,वही भूल गए कहते हुए ,दूसरी महिला की तरफ देख हंस दी क्योंकि उसने भी इसी बात का समर्थन किया।
निधि सोच रही थी ,शहर में आकर हम शहरी हो गए किन्तु आज भी विवाह में ,कुछ रस्में निभाई जाती हैं ।कुछ रीति -रिवाज़ हैं जो करने पड़ते हैं। कितने भी शहरी हो जायें ?किन्तु समय पर ही हर चीज अच्छी लगती है। तब निधि मनु से बोली -बेटा !कोई अच्छा सा गाना लगा दे ,ताकि तेरी सहेलियां ही नाच -गाकर धमाल करें ताकि घर में कुछ रौनक सी हो जाये।
अभी निधि से वे ,ये सब कह ही रही थी ,तभी उन्हें अंदर आते हुए , अपनी ननद की एक झलक दिखलाई दी ,इतने चेहरों में ,उसे अपना एक रिश्ता नजर आया ,ह्रदय गदगद हो उठा। चेहरे पर प्रसन्नता छा गयी। शिकायत भरे लहज़े में बोली -आ गईं !अब फुरसत मिली है। यह नहीं कि भतीजी के विवाह में दो दिन पहले आ जातीं।
इस अपनेपन की झिड़की से करुणा बोली -भाभी ! आजकल सब अलग -अलग रहते हैं ,अकेले ही सभी काम करने होते हैं। घर में सभी कार्य पूर्ण करके ,पड़ोसियों से कहकर ,बच्चों को समझाकर ,तब निकलना हुआ है।
क्या ???साथ में बच्चे और भाईसाहब !नहीं आये निधि निराशा भरे स्वर में बोली।
नहीं ,आज तो नहीं आये किन्तु कल सारा परिवार आ जायेगा। तब प्रसन्न होते हुए ,वहां आई ,महिलाओं से अपनी ननद का परिचय कराते हुए ,गर्व से बोली -लो !अब हमारी दीदी आ गयी हैं ,अब देखिये !क्या धूम -धड़ाका होता है ? कहते हुए ,रसोईघर में गयी और सभी के लिए नाश्ते और खाने का प्रबंध करने के लिए कहने गयी।
बाहर आकर देखती है ,ननद ने ,आते ही ढोलक संभाली और बड़े ही जोश में गाना गा रहीं थीं -
'' लाड़ो !मेरी छैल -छबीली ,जनक वर कैसे मिलेंगे ?
करुणा ने आते ही, रंग जमा दिया ,सभी महिलाएं उसके जोश और ख़ुशी को देख आश्चर्यचकित हो रहीं थीं। निधि तो पहले गाने की धुन पर ही ,भावुक हो उठी ,आँखें नम हो आईं। दूसरी तरफ ,पंडित जी के मंत्रोच्चारण गूंज रहे थे। निधि के ह्रदय में अजब सी हिलोर उठ रहीं थीं। अपनी बहन की ढोलक की थाप और उसके गाने के स्वर सुनते ही ,यवन जी मुस्कुरा उठे ,वे समझ गए ,करुणा आ गयी ,मन में बेचैनी हुई ,उसको एक नजर देखने की लालसा को छुपा न सके, किसी बहाने से अंदर आये और अपनी बड़ी बहन को देख प्रसन्न हो उठे किन्तु मन में सवाल उमड़ रहे थे। जीजाजी और बच्चे नहीं दिख रहे। निधि ने उनकी तरफ देखा और उनको देख ,मुस्कुरा उठी वो समझ गयी। अपनी बहन को देखने के लिए ही आये हैं।
इसे आते ही गाने में लगा दिया ,कुछ नाश्ता ,या खाने का प्रबंध नहीं करवाया।
मैं क्या करती ?मैं चाय के लिए अंदर कहने गयी थी किन्तु इन्होने आते ही , ढोलक थाम ली। अपने पति की शिकायत का प्रतिउत्तर देते हुए सफाई में निधि बोली।
अच्छा ,अच्छे से प्रबंध करना ,जीजाजी और बच्चे कहीं नजर नहीं आ रहे।
वो तो कल आएंगे।
क्यों ?आज क्यों नहीं आये ?
अब ,मैं क्या जानूँ ?अपनी दीदी से ही पूछ लीजियेगा। तब तक नाश्ता भी आ चुका था। दीदी !अब थोड़ा आराम कीजिये ! हर्ष से बोली -कोई अच्छे से फिल्मी गाने लगा दे ! मनु की सहेलियां और बच्चे नाच -गा लेंगे। पड़ोसियों के लिए भी नाश्ता लग गया था।
करुणा ने ,ढोलक एक तरफ रखी ,और भाभी के समीप गयी ,एक तो घर का माहौल ही ऐसा था ,बेटी के विवाह का वातावरण ,निधि वैसे ही भावुक हो रही थी। ननद के करीब आते ही ,उन्हें झट से गले लगा लिया। तब निधि बोली -आइये ,चाय पी लीजिये !आपके भइया मुझ पर नाराज हो रहे थे ,कह रहे थे -आते ही ,मेरी बहन को गाने में लगा दिया।
क्या ?भाभी !हमारे घर का पहला विवाह है ,आपकी मोहल्ले -पड़ोस की कुछ नहीं जानतीं ,मुझसे ऐसे बिना लाड़ो ''बाण ''देखा नहीं गया इसीलिए सोचा ,थोड़ी चहल -पहल कर दी जाये।
थोड़ी देर पहले ,जो निधि परेशान हो रही थी अपनी ननद के आ जाने से उसे लग रहा था ,न जाने कितना बड़ा बोझ सर से उतर गया ?उनके आने से अपने को हल्का महसूस कर रही थी। तब तक यवन जी भी आ गए और अपनी बहन के साथ ही बैठ गए ,उन्हें बैठाकर निधि अपनी पड़ोसनों से मिलने चली गयीं। ऐसे में सभी का ख्याल रखना पड़ता है। एक ही चूक से ,कोई भी बुरा मान जाता है।
निधि की बेटी मनु के विवाह की तैयारियाँ चल रहीं हैं ,लगभग सभी रस्में हो चुकी हैं ,कल बारात आनी है। आजकल कोई एक या दो दिन पहले नहीं आता ,सभी उसी दिन [जिस दिन बारात आती है ]होटल में आकर अपनी ओपचारिकताएं पूर्ण कर जाते हैं। विवाह की चहल -पहल वहीँ नजर आती है। शहरों में सभी अलग-अलग रहने लगे हैं। मकान भी इतने बड़े नहीं होते, जो चार दिन पहले रिश्तेदार आकर बैठ जाएं। काम भी कौन करेगा ? पहले समय में,तो लोग सहायता के लिए, चार दिन पहले, या और कुछ ज्यादा दिन पहले,आकर मदद कर दिया करते थे। किंतु आजकल किसी के पास इतना समय ही नहीं है और कोई आता भी है, आराम या मौज मस्ती के लिए आते हैं ,सहायता के लिए नहीं। आजकल का यही चलन हो गया है। अब देखिए मनु की शादी में आगे आगे क्या होता है ? मिलते हैं अगले भाग में -''कांच का रिश्ता''