Kanch ka rishta [part 11]

 कृष्ण पाल चड्ढा ने, निधि को उसके मधुर व्यवहार उसके अपने पान को देखते हुए, उसे अपनी बहन मान लिया था। निधि भी उनका ख्याल रखती थी किन्तु रक्षाबंधन वाले दिन वह अचानक ही घर पर आकर खड़े हो गए , और बोले-मेरे हाथ पर राखी बांधना !

निधि को ऐसी उम्मीद नहीं थी, वह असमंजस में पड़ गई। उसे इस तरह शांत खड़े देखकर उन्होंने उसे फिर से पूछा -मेरे लिए रखी तो लेकर आई हो न....... 

लेकर  तो आई हूँ ,किन्तु....... 


लाई हो तो ,कहां है ?मेरी राखी ! न ही कोई थाली है ,न ही ,कोई रोली -चावल जो सजाकर लाते हैं

चड्ढा साहब !के ऐसे शब्द सुनकर निधि की आंखों में आंसू आ गए। वह भावुक हो उठी , मन ही मन सोच रही थी। भगवान ने आज के दिन के लिए, मेरे लिए एक और भाई भेज दियाहै । झट से दौड़ती हुई गई ,तब तक यवन ने उसकी थाली सजा दी थी। निधि ने राखी रखी और मिठाई लेकर आ गई। राखी बांधते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। 

चड्ढा साहब बोले -चुपचाप राखी बांध दे ,मुझे भी रुलाएगी क्या ? कहते हुए ,कुछ पैसे उसकी थाली में रखे 

निधि, रोते -रोते भी हंसने लगी।

देखा ,यवन !तुम्हारी पत्नी इसीलिए रो रही थी। पैसे देखते ही हंसने लगी। ये सोच रही होगी,ये कैसा भाई आया ?अभी तक थाली में एक भी पैसा नहीं रखा। उनकी बातें सुनकर सभी हंसने लगे। 

चढ्ढा साहब के जाने के पश्चात ,निधि ने यवन से पूछा ,तुम राखी कहाँ से ले आये ?मुझे तो उम्मीद नहीं थी ,इस तरह चढ्ढा साहब राखी बंधवाने आ जायेंगे इसीलिए मैं राखी नहीं लाई थी क्योंकि आजकल लोग राखी को भी ,भावनाओं से नहीं ,पैसों  से जोड़ने लगे हैं। 

उनके आने से ही ,मुझे अंदेशा हो गया था कि वो राखी बंधवाने ही आये हैं ,मैंने तुमसे कहा भी था। जब तुम उनसे बातें कर रहीं थीं ,तभी मैं बाहर जाकर एक राखी ले आया। 

यवन की बात सुनकर निधि को बहुत ख़ुशी हुई ,और प्रसन्नता में उससे लिपट गयी।

 इस तरह निधि को, इस शहर में एक नया भाई मिल गया था। भाई भी ऐसा वैसा नहीं ,हर सुख-दुख में हमेशा साथ खड़ा रहता। जब बच्चे भी हुए , तब वही साथ खड़ा नजर आया। एक तो उम्र का लिहाज, ऊपर से इतना प्यार और अपनापन, जो  शायद उसे ,उसके सगे भाई ने भी नहीं दिया था। उनके प्रति निधि के मन में, सम्मान बढ़ गया था।

 अक्सर चड्ढा साहब आते, और बच्चों के साथ भी खेलते। बच्चे उन्हें मामा कहकर ही बुलाते थे। उनके व्यवहार, और उनकी बातों को सुनकर कोई कह नहीं सकता था कि चड्ढा साहब ,निधि के मुंह बोले भाई हैं। दोनों ही परिवार एक दूसरे से सुख-दुख में ,अच्छे बुरे में जुड़ गए थे। शाम के समय तो चड्ढा साहब आकर बच्चों के साथ खेलते या एवं के साथ टहलने निकल जाते। 

एक दिन निधि ने खाने में पकौड़े बनाये ,उसे मालूम था कि चड्ढा साहब !आये हुए हैं किन्तु जब यवन वापस आया तो वे साथ में नहीं थे। 

निधि ने यवन से पूछा -चढ्ढा साहब !कहाँ हैं ?वे साथ में नहीं आये। 

वो आ तो रहे थे किन्तु मैने उन्हें तुम्हारी व्यस्तता बतलाई और कहा ,बच्चों के इम्तिहान आ रहे हैं। उनमें व्यस्त रहती है। 

यवन की बात सुनकर निधि माथा पकड़कर बैठ गयी ,ये आपने क्या किया ?यहां बच्चों के साथ हंस बोल लेते हैं , उनका मन बहल जाता है,उन्हें भी मालूम है ,बच्चों के इम्तिहान हैं ,वे स्वयं बच्चों को ख़ाली समय में पढ़ाते हैं। 

निधि की बातें सुनकर ,यवन को लगा ,जैसे उसने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो ,बोला - मैं तो तुम्हारी वजह से ही उन्हें यहां नहीं लाया था। तुम अकेली सब कैसे संभालती ?

यह आप कैसी बात कर रहे हैं ? मैं जब तक कामों में व्यस्त रहती हूँ ,इन्हें भाई साहब !ही संभालते हैं। परसों पकौड़ो की इच्छा जाहिर कर रहे थे इसीलिए मैंने आज पकौड़े बनाये हैं और वे ही नहीं आये। निधि को लग रहे था। जैसे उसकी सम्पूर्ण मेहनत पर पानी फिर गया। तब बोली -अब आप ऐसा कीजिये ,ये पकौड़े लेकर उन्हें वहीँ दे आइये। अभी वे लोग ये बातें कर ही रहे थे ,तभी उन्हें बाहर कुछ आहट महसूस हुई। बाहर निकलकर देखा तो चड्ढा साहब ,बाहर ही खड़े थे। उन्हें देखकर यवन ने सुकून की साँस ली। अच्छा हुआ आ गए ,मैं जाने से बच गया। 

उन्हें देखकर आज निधि पहली बार बोली -भइया आ गए ,आप तो चले गए थे। 

हाँ ,चला तो गया था ,किन्तु मेरे इस शैतान ने मुझे फोन किया -मामा जी ! मम्मी ने आपके लिए पकौड़े बनाये थे ,और आप नहीं आये तो पापा से लड़ रहीं हैं। आप शीघ्र आ जाओ !और पापा को बच्चा लो !

क्या ??आपको हर्ष ने फोन किया ,और वो भी मेरे विरुद्ध !! मैं कोई दुश्मन हूँ ,पापा को बचा लो !कहते हुए निधि हर्ष को मारने के लिए दौड़ी। इन बच्चों को मैंने पैदा किया और तरफदारी अपने पिता की करते हैं।

मामा जी !बच्चा लीजिये कहते हुए हर्ष  चड्ढा साहब की गोद में चढ़ गया। 

अब तुम इसे मारना छोड़कर पकौड़े तो ले आओ !ठंडे हो गए होंगे। चड्ढा साहब ने उसे स्मरण कराया। 

लाती हूँ ,कहते हुए रसोईघर की तरफ मुद गयी और बुदबुदाने लगी -कभी -कभी मुझे लगता है ,इस घर को मैं संभाल रही हूँ ,किन्तु साथ की किसी से भी उम्मीद नहीं कर सकती। 

कैसे नहीं कर सकती ?तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है ,मजाल है ,मेरे रहते ,कोई तुम्हारा अहित भी सोचे !प्लेट में से एक पकौड़ा उठाते हुए चड्ढा साहब बोले। 

नहीं मम्मी !विश्वास मत करना मामा, हमारे साथ हैं ,अभी तो ये पकौड़ा बोल रहा है ,उसकी बातों का आशय समझकर सभी हंसने लगे।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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