Bina shadi ke

ये शब्दों का ही हेर -फेर है ,यदि कोई बिना शादी के रह रहा है ,इसका अर्थ है ,वह कुंवारा या कुंवारी है। अब इसका दूसरा अर्थ हम यह भी निकाल सकते हैं ,एक लड़का और लड़की को ' बिना शादी के साथ रहना ' ये सब हमारी सभ्यता ,संस्कृति में नहीं है।वैसे देखा जाये तो ,आज के समय की ,ये कोई नई रीत नहीं है। बिना शादी के, लड़का -लड़की का एक साथ रहना ! यानी कि आज के शब्दों में कहा जाये तो ''लिव इन ''में रहना '' यह पुरानी रीत है।

 उस समय भी इसको सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। आज के लोगों ने इसे आधुनिक जामा पहनाया है, और शब्दों का थोड़ा हेर -फेर किया है , और इसको ''लिव इन ''कहने लगे। अस्सी या नब्बे के दशक में या उससे पहले उस समय लड़के -लड़कियों के उचित समय पर विवाह कर दिए जाते थे। ऐसी बातें सोचने का और करने का उन्हें समय ही नहीं मिलता था। प्रेम तो हो जाता था, किंतु आगे की जिंदगी जो भी बितानी होती थी। वह माता-पिता की इच्छा से ही बीतती थी। 


आजकल बड़ी उम्र तक लड़के और लड़की परिवार से दूर रह रहे हैं। मानसिक और शारीरिक थकावट भी रहती है। ऐसे समय में, किसी का भी दो पल के ही लिए ही क्यों न हो ?सहारा मिल जाए, अपनापन मिल जाए ,आदमी का उस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है। किंतु सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो यह रिश्ता सही नहीं है। इन रिश्तों में, प्यार नहीं रहता, क्षणिक आकर्षण रहता है। अब यह वे  रिश्ते नहीं रहे -

                            ''सजी नहीं बारात तो क्या ?पहने नहीं कंगन तो क्या? बिन फेरे हम तेरे ''

उस समय ,उस प्यार में त्याग और सादगी थी ,वासना नहीं। तमाम उम्र,उसकी यादों में या उसके परिवार की देखभाल करने में व्यतीत कर देते थे। समाज की खातिर उस रिश्ते को एक नाम तब भी देना ही पड़ता था। तब न जाने किन परिस्थितियों में वह रिश्ता एक पवित्र रिश्ते में बंध जाता था। उस समय प्यार के साथ-साथ परिवार को भी महत्व दिया जाता था। 

किंतु आज का समय उसके बिल्कुल विपरीत है, आज परिवार कोई नहीं चाहता। समाज और रीति -रिवाज को, मानने के लिए बाध्य कोई नहीं होना चाहता। इन सबसे अलग, जो रिश्ता बनता है ,उसे रिश्ते में प्यार नहीं, सिर्फ जरूरत होती है। जो अपने तक ही सीमित रहती है। जरूर समाप्त हुई, प्यार भी बगलें झाँकता  नजर आता है । 

ऐसे रिश्ते पहले भी थे, किंतु उन रिश्तों  को कोई सम्मान नहीं दिया जाता था,उनका कोई मान नहीं था। उस समय ऐसे रिश्तों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था किंतु आजकल के पढ़े-लिखे लोग, कुछ ज्यादा ही पढ गए हैं। इसीलिए उन्होंने ऐसे घ्रणित रिश्ते को,'' लिव इन '' का नाम दे दिया है । 

उस जमाने में जो चौधरी ,राजा -महाराजा हुआ करते थे, उनकी रानियां होती थीं , जो रीति -रिवाज और पूरे सम्मान के साथ उन्हें ब्याह कर लाया जाता था किंतु उसे समय में'' रखैल ''भी होती थीं। जिन्हें वह लोग, अपनी मौज मस्ती के लिए , अपने रुतबे को दिखाने के लिए, पैसे के बल पर रख लिया करते थे। वह भी एक रिश्ते के साथ रहती थीं किंतु उनसे कभी विवाह नहीं करते थे। समाज में वही रीति -रिवाज ,वही संस्कार वही बातें, लौट -लौटकर आती हैं किंतु अपना कुछ नया ढंग ले आती हैं। कुछ आधुनिक शब्दों का जामा पहन कर आती हैं। जिससे वह सुनने में गलत न लगे। लेकिन वास्तविकता अगर देखी जाए, तो गलत तो गलत ही है। यह रचनाएं और लेख हम लोग लिखते हैं। किंतु ऐसे लेख उस भावी पीढ़ी को भी पढ़ने चाहिए , जो इन सब बातों से अनभिज्ञ है। वह पाश्चात्य संस्कृति में अपने को ऐसे डुबो देना चाहती है ,जो असलियत से कोसों दूर है। संस्कारों से विहीन है, जिस रिश्ते में रहते हैं ,उसे समाज के सामने स्वीकार नहीं कर पाते हैं । छुपाना चाहते हैं, क्योंकि उस रिश्ते का उनके पास कोई नाम ही नहीं है। अपने आप को भी झुठलाना  चाहते हैं, जिस कारण, आजकल की युवा पीढ़ी अवसाद, परेशानियों से ग्रस्त रहती है। हर रिश्ता एक नाम मांगता है- फिर चाहे वह बहन -भाई का हो, पति-पत्नी का हो या स्त्री -पुरुष का हो। आजकल दोस्ती के नाम को भी बदनाम किया हुआ है ,अपने गलत इरादों को भी दोस्ती का नाम ही दे देते है। रिश्ता ,वो हो  जिसके प्रति उसके स्वयं के मन में भी सम्मान हो। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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