शाम को यवन खुश होते हुए घर पर आया, और निधि से बोला -मेरे बॉस तुम्हारी बहुत प्रशंसा कर रहे थे।
निधि इठलाते हुए बोली -प्रशंसा योग्य व्यक्ति होगा, तो प्रशंसा ही होगी।
अच्छा !यह बताना ,तुमने यह पंजाबी कब सीखी ? हमें तो कभी नहीं बताया। उसकी तरफ प्यार से देखते हुए पूछा।
मेरी एक सहेली थी ,उसे पंजाबी आती थी, कुछ शब्द उससे मैंने भी सीख लिए थे मुझे भी अच्छा लगता है पंजाबी बोलना। पहले मैं बहुत कोशिश करती थी। हाँ..... तुस्सी यह कह सकते हो , मुझे भाषा सीखने का बहुत शौक था। इसलिए मेरे शब्दों में कभी-कभी उर्दू भी आ जाती है और पंजाबी भी ,हिंदी तो मैं बोलती ही हूं वैसे देखा जाए तो हिंदी के सिवा मुझे और कोई भाषा इतने अच्छे से नहीं आती।
चलो जो भी है, तुमने मेरे बॉस का तो दिल जीत लिया।
तुम अपनी कहो !तुम्हारा भी दिल जीता है या नहीं।
अपनी बात आने पर यवन तुनकते हुए बोला - हम भी जिंदगी काट ही लेंगे।
क्या मतलब ? तुम मेरे साथ रहकर जिंदगी काट रहे हो , कहते हुए निधि ने तकिया उठाकर यवन के ऊपर फेंक कर मारा किंतु यवन भी फुर्तीला था और बचा गया।
अब तो अक्सर निधि, खाने में ,कुछ विशेष बनाती तो यवन के बॉस के लिए भी रख देती। या किसी विशेष नाश्ते पर, उन्हें घर पर ही बुलवा लेती। धीरे-धीरे उन लोगों में अपनापन बढ़ता गया। बेचारे चड्ढा जी को भी, एक परिवार ऐसा मिल गया ,जिसमें अपना थोड़ा समय व्यतीत कर सकते थे।
निधि ने ही यवन से कहा था -हम अपने-अपने परिवारों से दूर यहां, दूसरे शहर में रह रहे हैं। हम लोग ही तो एक दूसरे का सहारा है। चड्ढा जी ,अकेले हैं ,इंसानियत के नाते ,हमें उन्हें एहसास नहीं होने देना चहिये कि इस शहर में ,वो नितांत अकेले हैं।
चड्ढा जी जब भी आते, निधि उनके लिए अच्छे से चाय -नाश्ता बनाती। इस परिवार से ,उन्हें भी एक लगाव सा हो गया था। सावन चल रहा था, निधि को याद आया, भाई के लिए भी ,तो राखी भेजनी है. बाजार गई थी अपने भाई के लिए ,राखी लेने के लिए , कई बार कूरियर वाले, राखी देर से भेजते हैं ,राखी समय पर नहीं पहुंच पाती इसीलिए उसने कुछ दिन पहले ही राखी भेजने का निर्णय लिया। मां का फोन आया था। बता रही थीं -पुनीत की अभी नौकरी नहीं लगी है। तुम्हारे बाबूजी की कमाई से ही ,घर के सब कार्य चल रहे हैं।
निधि ने उन्हें ढाँढस बंधाया , कोई बात नहीं, वह मेहनत तो कर रहा है ,एक न एक दिन सफल भी होगा। यह बात निधि बाद में समझ पाई, शायद ,उन्होंने यह बात, उसे इसीलिए बताई थी ताकि वह अपने सिंधारे की ,उनसे कोई उम्मीद न रखें। सोचकर निधि का मन उदास हो गया, किंतु तुरंत ही, अपने मन को समझा लिया -''यह तो चलती -फिरती माया है। आज है कल नहीं , जब लग जाएगा , तब पूरे अधिकार से अपने इतने सालों का हिसाब उससे मांग लूंगी ''अपने आप से ही कहकर मन ही मन मुस्करा दी।
आज निधि ने खाना बनाया, भगवान जी को भोग लगाया और उन्हें राखी भी बाँधी। भाई को तो राखी पहले ही भेज दी थी। यवन की बहन की राखी भी आ गई थी ,यवन ने स्वयं ही अपने हाथों में वह राखी बांध ली। आज खाने के लिए बाहर भी नहीं जा सकते क्योंकि त्यौहार का समय है घर में ही इतना सारा खाना पहले से ही बना है। निधि को पूरी तैयारी के साथ त्योहार मनाना अच्छा लगता है ,कल से ही वह सम्पूर्ण तैयारी में जुटी हुई थी। हाथों में मेहंदी भी लगाई है, नए कपड़े भी पहने हैं। भाई दूर है, तो क्या हुआ ? त्यौहार तो त्यौहार की तरह ही मनाया जाएगा। दोनों पति-पत्नी भोजन करके अलसाये से थे। तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
अब इस समय कौन आ गया निधि ने यवन से पूछा ?
मुझे क्या मालूम ? मैं क्या दरवाजे के बाहर तक झांक सकता हूं ,मैं कोई अंतर्यामी हूं।
तुमसे अंतर्यामी बनने के लिए नहीं कह रही हूं , अंदाजा लगाना चाह रही थी, कि इस समय कौन हो सकता है ?
अब जाकर देखोगी ,तभी तो पता चलेगा कि कौन आया है ?
ठीक है ,मैं ही जाती हूं , कहते हुए मैं दरवाजा खोलने जाती है। दरवाजे पर उसने देखा ,मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए' चड्ढा साहब 'खड़े थे।
निधि को देखते ही मुस्कुरा कर बोले -'' हैप्पी रक्षाबंधन ''
निधि भी मुस्कुरा दी, और बोली -आपको भी बधाई हो !
यूं ही सूखी -सूखी बधाई ! अब चड्ढा साहब ! निधि से थोड़ा खुल गए थे, उससे खुलकर बात करते थे। यवन हॉल में बैठे हैं ,आप चलिए मैं वही ,आपके के लिए मिठाई लेकर आती हूं।
क्यों ,क्या आज खाने में कुछ नहीं बनाया है ?
बनाया है ,बहुत कुछ बनाया है , तब उसे कहां ले जाओगी ? या सारा खा स्वयं ही लिया।
नहीं लाती हूं, मुस्कुरा कर निधि रसोई घर की तरफ चल दी।
चड्ढा साहब को बैठाकर, यवन भी, निधि के पीछे रसोई घर में आता है, और कहता है -मुझे लग रहा है , राखी बंधवाने के उद्देश्य से आए हैं।
अब मैं क्या करूं ?निधि ने यवन से प्रश्न पूछा।
ऐसे ही तो बिना कहे उनके सामने राखी लेकर तो नहीं जा सकती।
बात तो तुम्हारी भी ठीक है ,यवन ने उसकी बात का समर्थन किया। अच्छा पहले तुम भोजन और मिठाई लेकर पहुंचों ! तब देखते हैं ,क्या कहते हैं ?
निधि भी अपनी योजना के अनुसार ऐसा ही किया, मिठाई और भोजन लेकर पहुंची।
चड्ढा साहब !बैठे हुए देख रहे थे, जब वह सब सामान रखकर बैठ गई। तब बोले -तुम्हारे यहां भाई को राखी बांधने और, उसको टीका लगाने का प्रचलन नहीं है।
मतलब ! निधि ने पूछा।
अरे ,भई !जब भाई रक्षाबंधन पर ,घर पर आता है तब तुम क्या करती हो ?
उसे ऐसे ही खाना परोसती हूं और राखी बांधती हूं।
तब मेरी राखी कहां है ? चड्ढा साहब ने पूछा। क्या तुम मेरे लिए राखी लेकर नहीं आईं।
राखी तो लाई हूं ,क्या आप मुझसे राखी बंधवाएंगे ? निधि ने प्रश्न किया।
अब तुम्हें ही अपनी बहन माना है तो और किससे राखी बंधवाएंगे। मुझे तो यहां तुम ही दिख रही हो। न जाने, मेरी कैसी बहन है ? भाई घर पर राखी बंधवाने के लिए आया है और अभी तक ऐसे ही बैठी है। मेरे नाम की राखी लाई भी है या नहीं।
क्या निधि चढ़ा साहब को राखी बांधेगी ? उन्हें अपने भाई के रूप में अपनाएगी, उसका भाई तो नहीं आ पाया , क्या उन्हें वही मान देगी ? आइये मिलते हैं ,अगले भाग में- ''काँच का रिश्ता''