Kanch ka rishta [part 1]

   आज मैं आपको एक नई कहानी से परिचित करा रही हूँ। इंसान जब जन्म लेता है, कई रिश्तों से जुड़ जाता है। रिश्तों  के जाल में फंसता चला जाता है। कहने को तो ये प्रेम से, और रक्त से जुड़े रिश्ते होते हैं किंतु कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं ,जो बहुत गहरे तो होते हैं , किंतु उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। कुछ मोेकों पर ही वह रिश्ते नजर आते हैं या महसूस होते हैं। वे '' रिश्ते कांच ''की तरह नाजुक होते हैं। ''कांच का रिश्ता '' 


प्यार ! कितना गहरा ,कितना भावपूर्ण शब्द है ? लोग प्यार का अर्थ -सिर्फ पति -पत्नी ,प्रेमी -प्रेमिका ,कृष्णा और राधा ,माता -पिता जैसे प्रेम की कल्पना करने लगते हैं किन्तु इन सबसे अलग और न्यारा ,एक रिश्ता और भी है। वो है ,भाई -बहन के प्रेम का, जो इन सब प्रेम से अलग अद्भुत और न्यारा है। जो ''कांच की तरह पारदर्शी और चमकीला होता है किन्तु उतना ही नाजुक और प्यारा भी होता है।'' जी हां ,यह कहानी में भाई -बहन के रिश्तों को लेकर, प्रस्तुत हुई हूं। वैसे तो मेरी इस कहानी के पात्र काल्पनिक ही हैं किंतु यदि इस कहानी से, किसी की कोई घटना, या कोई भाव जुड़ जाते हैं तो इसका मुझे हर्ष होगा कि मैं आज की स्थितियों को देखते हुए ,किसी के  अंतर्मन को छू सकी। वह बेटी जो अपने पापा के कांधे पर घूमने जाती है। अपने भाई का हाथ पकड़कर, दुनिया देखने का प्रयास करती है। कहने को तो यह रिश्ता ''कच्चे धागों'' से जुड़ा है, यह रिश्ता ,'भाई के माथे के टीके का रिश्ता है। ''

बचपन की यादों का ,रक्त के रिश्तों  से जुड़ा ,यह रिश्ता कितना मोहक है ? बड़े होने पर ,न जाने इन रिश्तों में कहां से इतना अहंकार आ जाता है ? और वह इतना बड़ा हो जाता है ,भाई ,बहन को बुलाना या उससे मिलना पसंद नहीं करते हैं।  

एक बेटी ,जब मायके से जुडी होती है ,न जाने किन परिस्थितियों में ,कब बेटी से बेटा बन जाती है और उन रिश्तों को निभाते ,एक उम्र का पड़ाव भी पार कर जाती है। कैसी भी स्थिति में घर -परिवार के साथ खड़ी होती है ? विवाह के पश्चात भी ,उन रिश्तों को निभाती है। तब उसी बहन का वह घर कब पराया हो जाता है ? या फिर उस घर की मेहमान बन जाती है ? कई बार ,अधिकार के लिए लड़ती है ,उसे लड़ना पड़ता है, लड़ने के लिए मजबूर हो जाती है। उस बेटी के दो घर हैं- एक ससुराल और एक मायका !! किंतु इन दोनों घरों के मध्य में बंटकर रह जाती है। इन दोनों ही घरों में अपना अस्तित्व खोजती है , ढूंढती हैं ,अपने मायके में अपना वह बचपन! अपने रिश्ते ! न जाने, कब समय की आंधी ने , उन्हें उड़ा दिया या धुंधला कर दिया। 

भाई -बहन के रिश्ते पर, कहानियां भी कम ही बनती हैं ,किंतु कोई यह नहीं सोचता, एक बेटी जब विवाह करके दूसरे घर चली जाती है , उसके पीछे उसका बहुत कुछ छूट जाता है। उसके रिश्ते ! इसकी सहेलियां! उसका बचपन ! क्योंकि यह तो दुनिया की रीत  है, एक न एक दिन तो बेटी को दूसरे घर जाना ही पड़ता है उस घर को संभालना ही पड़ता है। किंतु ऐसी स्थिति में यदि, बेटी के ससुराल वाले उसे सहारा न दें उसका मान न रखें और मायके वाले भी अपना पल्ला झाड़ लें , तब वह कहां जाएगी ? किससे कहेगी? किससे  सहारे की उम्मीद लगाएगी ? क्यों यह रिश्ते धीरे-धीरे पराए होने लगते हैं, उस घर पर,उसका अधिकार क्यों नहीं रह जाता है ? क्यों उसे घर के लोग उससे मेहमानों जैसा व्यवहार करते हैं ? यह नाजुक सा रिश्ता ! जो कहने को तो, दोनों घरों की इज्जत है , किंतु उसका स्वयं का मान -सम्मान और वह स्वयं कहां है ?

क्या सभी बहन और भाई एक जैसे होते हैं ? यह प्रश्न मेरे जेहन में बार-बार उठता है, क्योंकि यह रिश्ता खून से जुड़ा है। क्या माता-पिता के रहने तक ही उसका मायका, रहता है ? उस पर अधिकार भाई का हो जाता है। तब क्या वह उसका मायका नहीं रह जाता ? क्यों बदल जाते हैं ?यह रिश्ते !क्यों एक -दूसरे को झुठला देते हैं। इन प्रश्नों की ओर इंगित करते हुए ही, सोचने पर मजबूर करती है ,यह कहानी ! वक़्त की आंधियों से धूमिल हुई, बरसों से चली आ रही भाई -बहन की यह कहानी, क्यों ?आज यह रिश्ते दम तोड़ते नजर आ  रहे हैं ?

 एक समय था ,जब 'कर्मवती 'ने 'हुमायूं 'को राखी भेजी थी और उस राखी की लाज, निभाने के लिए हुमायूं ने, एक मुगल होते हुए भी, अपनी बहन की रक्षा के लिए, सेना भेज दी थी। इसका अर्थ है ,उसके मन- मस्तिष्क में, इन पारिवारिक रिश्तों का ,रीति-रिवाज का महत्व था। उनकी कद्र करना जानता था। आज की आधुनिक पीढ़ी, क्यों इन रिश्तों को झुठलाना चाहती है , उनसे बचकर निकल जाना चाहती है ? हमारे कुछ रीति -रिवाज और संस्कार हैं , किंतु आज की कुछ पीढ़ी, साल में एक त्यौहार आता है, रक्षाबंधन और  भाई दूज ! उस पर ही उस बहन को याद करता है या बहन जबरदस्ती याद दिलाती है और उसमें भी, लेन-देन का हिसाब करता है। कुछ तो इन रिश्तों को झुटला ही देना चाहते हैं। 

आईये ! मेरे साथ इस कहानी, को आगे बढ़ाते हैं, अपनी समीक्षाओं द्वारा मेरा उत्साह वर्धन कीजिए, प्रोत्साहन दीजिए ताकि मैं इस दिशा में अपने कदम अनवरत आगे बढ़ाती रहूं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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