''मोहब्बत ''ही तो की है ,
बदले में ,मोहब्बत की चाहत थी।
' मोहब्बत 'में रोने वालों,
जब दिल टूटता है ,
तड़प उठता है।
चटकता है ,कुछ !
दिल ,रो उठता है।
जब वो ! !!!!!
गैर की बाहों में,
गुजर जाए,नजरों से ,
अश्रु नहीं, लहू बहता है।
जिसने जख़्म न खाया ,
मोहब्बत में........
मोहब्बत की बात करता है।
मैंने भी तो ,मोहब्बत की,
उसका साथ ही तो ,चाहा था।
उससे आसमाँ तो नहीं मांगा था।
उसने दौलत के लिए ठुकराया था।
रगों में ,आज भी लहू बहता है।
मेरा दिल रो -रो के कहता है -
उसके पैरों में अब मोहब्बत, नहीं,
दौलत बरसाऊंगा।
उसने ठुकराया ........
अब इंतक़ाम ए मोहब्बत दिखलाऊंगा।
बतलाएँ क्या ?
'जज़्बा ए मोहब्बत 'उनको समझाएं क्या ?
बहता है दरिया ,यहां तो मोहब्बत ए नूर का,
उनका दस्तूर दिल तोड़ना, दिल लगायें क्या ?
उनकी बेवफाई...... अब उन्हें समझाएं क्या ?
बेफिजूल है,इंतक़ाम ए मोहब्बत, उन्हें बतलाएं क्या ?