पूजा -करुणा, नहा -धोकर स्नानागार से बाहर आई, और आते ही ,मम्मी से बोली -मम्मी !आपने मेरे भगवान जी के लिए मिठाई निकाली या नहीं , मां जानती थी -कि करुणा, नहाकर प्रतिदिन भगवान की पूजा करती है , और उनके लिए प्रसाद भी निकालती है। भगवान जी के लिए ,उसकी तो एक ही प्रार्थना है -हे भगवान !मुझे एक छोटा सा भैया दे दो !
तब एक दिन ,उसकी दादी ने उसे समझाया था - यदि तू भैया चाहती है , तो तुझे उस भगवान से प्रार्थना करनी होगी। वही सुनेगा , दादी ने उसे बहलाने के लिए ऐसे ही कह दिया था ,किंतु करुणा को तो यह बात जंच गई, और उसने सोचा -जब भगवान सबकी सुनते हैं ,तो मेरी भी सुनेंगे। भाई से मिलने का जुनून उसे तब से हुआ ,जब ''रक्षाबंधन ''पर, पड़ोस में खेलने के लिए गई थी, तब उसने वहां देखा ,सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर, राखी बांध रही है और भाई उन्हें पैसा दे रहा है , वे लोग मिलकर मिठाई खा रहे हैं। तब उसने घर आकर पूछा था , मम्मी ! मेरा भाई कहां है ? मेरा भाई अभी तक क्यों नहीं आया ? मुझे भी उसे राखी बांधनी है।उस दिन कल्पना सारा दिन रोई थी और रोते -रोते सो गयी थी।
तब उसकी मां ने उसे समझाया था, भाई आएगा ,लेकिन उसे अभी आने में समय लगेगा, जब भगवान चाहेंगे ,तभी आएगा। कहते हुए उन्होंने, एक तौलिया उठाया, उसको गोल लपेटा , उसको मोडकर एक गुड्डा बना दिया और बोली - यह तेरा भाई है।
पहले तो करुणा उसे खेल लिया करती थी , उसे खूब बातें करती थी , उसके साथ खेलती थी ,उसे खाना खिलाती थी , अकेले उसके साथ बोलती रहती ,खेलती रहती, उसका तो कोई जवाब ही नहीं आता। तब उससे कहती -तू भी तो कुछ कह...... मैं ही बोलती रहती हूँ। उसे इस तरह खेलते - बोलते देखकर एक महिला बोली - ये कौन है ?
यह मेरा भाई है , हमेशा मेरे साथ रहता है , न जाने उसे महिला को क्या सूझा और बोली -ऐसा भाई थोड़े ही होता है , भाई वह होता है, जो तुम्हारे साथ बातचीत करता है खेलता है ,तुम्हारे साथ खाना खाता है। यह तो एक तौलिए का गुड्डा है। तब करुणा उदास हो गई और उस महिला से बोली -मेरा भाई कब आएगा ?
वह तो तुम्हारी, मम्मी ही ला सकती है, अपनी मम्मी से ही पूछो ! वह तुम्हारा भाई कब ला रही है ?
करुणा छत पर खेल रही थी ,तभी वापस नीचे आ गई और बोली - मम्मी !मेरा भाई आपको लाना ही होगा, अब की रक्षाबंधन पर मुझे मेरा भाई ही चाहिए। यह तो तोेलिए का गुड्डा है ,भाई नहीं है। यह बात भी नहीं करता है।
उषा ,करुणा की बातें सुनकर परेशान हो गईं और करुणा से पूछा - यह सब तुमसे किसने कहा ?
वह बराबर वाली आंटी ,हमारी छत पर आई थीं , वह कह रही थीं - यह तो तोेलिया है,भाई नहीं। मुझे सच का भाई चाहिए।
तब उषा जी ने और उसकी दादी ने उसे यही बतलाया था -भाई ,तो भगवान के घर है ,वहीं से आएगा। तब से करुणा प्रतिदिन नहा -धोकर भगवान की पूजा करती है और उनसे प्रार्थना करती है कि हे भगवान !मुझे एक भाई दे दो ! और एक मिठाई का पीस उन्हें चढ़ाती है , ताकि भगवान शीघ्र खुश हो जाएं, किंतु भगवान ने भी न जाने क्या सोचा हुआ था ? उसके नाम का भाई आया भी और चला भी गया। खुशी तो आई थी लेकिन शीघ्र उसकी खुशी छीन भी ली। करुणा से सभी ने यही कहा था ,वे लोग उसके लिए डॉक्टर के यहाँ से भाई लेने जा रहे हैं। भाई के आने की ख़ुशी में ,करुणा ने कई फ्रॉक बदल-बदलकर पहने और अपनी बुआ से पूछती -बुआजी !मैं कैसी लग रही हूँ ?
तू इतना क्यों सज रही है ?मुस्कुराते हुए बुआ बोली -अब तू कैसी भी लगे ?अब सब तेरे भाई को ही पूछेंगे।
डॉक्टर के यहाँ से आकर करुणा को बताया -डॉक्टर के यहाँ बहुत भीड़ थी ,जिसके कारण हम भाई को भी नहीं ला पाए। तुम्हारी मम्मी की भी तबियत बिगड़ गयी इसलिए वापस आना पड़ा।
उदास स्वर में ,करुणा ने पूछा -अब भाई को लेने कब जायेंगे ?
जब तुम्हारी मम्मी ठीक हो जाएँगी ,और डॉक्टर से भी पूछना पड़ेगा कि वो नए भाई कब ला रहा है ?करुणा का इंतज़ार बढ़ गया।
जब उसकी दादी को ,यह सब पता चला था तो दादी को गुस्सा आया था और करुणा पर ही अपना क्रोध निकला बोली -कैसी किस्मत लेकर आई है ? एक बेटा हुआ था, वह भी नहीं रहा। उसके पश्चात, दो बेटियां और आ गईं करुणा भी हताश और निराश होने लगी थी। वह अभी तक नहीं समझ पाई ,कि भाई कैसा होगा क्योंकि उसके साथ खेलने के लिए तो दो बहनें आ गयीं थीं किन्तु उसे पता चला ये भी भाई नहीं हैं।
अब वह बड़ी हो गई थी, स्कूल भी जाने लगी थी। अक्सर लड़कियों से पूछती थी -तुम्हारे भाई है और जब वह अपने भाई के विषय में बात करती है तो उसे अत्यंत दुख होता। किंतु तब एक सहेली ने उसे समझाया -भाई तो कभी भी आ सकता है जब उसकी इच्छा होगी तभी आ जाएगा। करुणा को फिर से एक उम्मीद बन गई।
तब किसी ने कहा -अपनी बहनों को ही राखी बांध दिया कर किंतु इसके लिए दादी ने मना कर दिया 'अनहोनी रीत ' नहीं करनी है।
पिता का प्यार -करुणा अक्सर अपने पिता के साथ कभी घूमने जाती, कभी मेला देखने जाती। एक बार की बात है, जब करुणा पहली बार दशहरे पर मेला देखने गई थी , इतनी भीड़ के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। कभी वह भीड़ में से ,लोगों को अपने हाथों से हटाने का प्रयास करती ,आगे बढ़ने का प्रयास करती किंतु असफल हो जाती। उसका एक हाथ उसके पिता ने थामा हुआ था जब पिता ने उसकी दुविधा देखी तब उन्होंने उसे अपने कंधे पर चढ़ा लिया और कांधे पर चढ़ाकर, उसे जलता हुआ रावण दिखलाया था। मेले से उसने बहुत सारे गुब्बारे खरीदे थे और भी छोटे-छोटे खिलौने लिए थे जो भी उसे पसंद आते थे।
एक बार उसने अपने पिता से समोसा खाने की इच्छा जाहिर की थी, उस समय बारिश हो रही थी। वह तो यह बात कह कर भूल भी गई क्योंकि वह जानती थी ,बारिश हो रही है ,ऐसे मौसम में कौन बाहर जाएगा और कौन समोसे लेकर आएगा ? किंतु कुछ देर बाद उसने देखा -उसके पापा छाता लिए हुए , और एक पैकेट, में कुछ लेकर आ रहे हैं, और जब उसने देखा -समोसे हैं ,वह कितनी प्रसन्न हुई थी ? कि पापा को मेरी बात का ध्यान रहा और मैं कहकर भूल भी गई।
जब भी कोई त्यौहार आता था, करुणा मेहंदी की कीप लाकर अपने हाथों पर लगाती थी, हालांकि उसे मेहंदी लगानी नहीं आती थी, किंतु उसे शौक था। अपने हाथों, के ऊपर और हथेलियां पर, खूब कलाकारी करती थी। सावन में उसके लिए, झूला डाला जाता था और उसकी सहेलियां, सावन पर उसके यहां झूलने आती थीं , और सावन के गीत गाती थीं। अपनी दो छोटी बहनों का भी ,वह विशेष ख्याल रखती थी। भगवान ने उसकी प्रार्थना सुनी -और एक भाई ही नहीं फिर करुणा के दो भाई हो गए करुणा बेहद प्रसन्न थी। करुणा के मन में बहुत सी बचपन की यादें बसी हैं, वह तो अपने ''पापा की परी ''हुआ करती थी। जब वह अकेली थी मम्मी -पापा दोनों का ही ,उस पर ध्यान रहता था अच्छे से अच्छे कपड़े पहनना। अकेली ही थी ,किंतु मम्मी उसे तब भी बाहर नहीं जाने देती थी। सोचती थीं - न जाने कैसी सहेलियां मिलेंगी ? बेटी पर कुछ गलत असर न पड़े ,बेटी भी अपने माता-पिता के साथ ही रहकर खुश रहती थी। अब तो ,दो बहनों के साथ भाई भी है। वह अपने बहन -भाइयों में लगी रहती।
जब पहली बार भाई घर आया -आज वर्षों पश्चात, भगवान ने उसकी सुन ली, और उसके घर भाई का आगमन हुआ। वह अत्यंत प्रसन्न थी, तैयार होकर पहले ही बैठ गई थी, और जब मम्मी छोटे भाई को लेकर आईं , तो उसे गोद में उठाने का प्रयास किया। हालांकि बुआ ने उसे समझाया कि यह अभी छोटा है। तुमसे ठीक से नहीं लिया जाएगा, किंतु उसे भाई के आने की इतनी प्रसन्नता थी। वह समझ नहीं पा रही थी वह क्या करें? तब वह उसी के पास वहीं लेट गई और उसे टुकुर-टुकुर देखते हुए, खुश हो रही थी। मम्मी यह मेरा भाई है , उसने अपनी मां से प्रश्न किया।
हां तुम्हारा भाई है, तुमने ही तो इसके लिए रात -दिन प्रार्थना की थी।
अब मैं इसे राखी बांधा करूंगी, इसके टीका भी लगाऊंगी, इसे मिठाई भी खिलाऊंगी।
हां यह सभी कार्य करना किंतु जब यह थोड़ा सा बड़ा हो जाए बुआ ने, करुणा को डांटते हुए कहा। भाई के आने पर सभी का ध्यान उसकी तरफ था। अब कोई भी अब करुणा पर इतना ध्यान नहीं दे रहा था। जब भाई से मिलने अंदर जाती ,तो उससे कह देते -जाओ ,बाहर खेलो ! अब करुणा को थोड़ा बुरा लगने लगा था।
तब उसकी मम्मी ने समझाया - अभी भैया छोटा है। नाजुक है, इसलिए बुआ को डर लगा रहता है, जब थोड़ा बड़ा हो जाएगा ,बैठने लगेगा तब तुम उसके साथ खेल सकती हो और तब तक बुआ भी चली जाएगीं । तब तो तुम इसकी बड़ी' दीदी 'हो जाओगी !
अपने लिए 'दीदी 'शब्द सुनकर करुणा कितनी प्रसन्न हो गई थी ? समय अपनी गति पर चलता रहा, उसका भाई एक वर्ष का हो गया था अब वह उसके साथ खेलती थी उसके लिए, दुकान पर स्वयं जाकर बड़ी-बड़ी राखियां खरीदकर लाती थी और जब वह पढ़ने लायक हो गया तो, उसे पढ़ाती भी थी, सुंदर कल्पनाओं में खो जाती थी। मेरा भाई बड़ा हो जाएगा , खूब पढेगा और बड़ी सी गाड़ी में बैठकर आया करेगा। उसके लिए सोचते -सोचते वह अपने लिए तो सोचना ,भूल ही जाती थी। भाई तो लाडला था, दीदी का ही नहीं ,घर में सभी का लाडला था ,शरारती भी बहुत था। पल में यहां और पल में वहां दौड़कर जाता। किंतु करुणा तो दीदी बन गई थी इसलिए वह हमेशा उसका ख्याल रखती थी। स्कूल से आते समय भी, अपना बस्ता करुणा के ऊपर डालकर, उससे पहले घर भाग आता था और पीछे से करुणा अपना और उसका बस्ता उठाकर, लाती थी। उसका अपने भाई के प्रति स्नेह उसे कुछ कहने ही नहीं देता था। उसे स्वयं अपने परिवार से ,अपने भाई से अत्यधिक स्नेह था, किंतु उसने यह नहीं जाना कि माता-पिता का व्यवहार कब उसके प्रति बदलने लगा ? उसे पता ही नहीं चला। घर में कितनी भी परेशानियां होतीं , बड़ी बहन होने के नाते करुणा सब कुछ संभालने का प्रयास करती। बड़ी होने के साथ-साथ, समझदार भी हो रही थी, उसे लगता था -अभी उसके भाई छोटे हैं जिम्मेदारियों को नहीं संभाल पाएगें , इसलिए वह स्वयं अपने ऊपर उत्तरदायित्व ले लेती थी। हालांकि अनुज जी [करुणा के पिता ]के यहाँ, एक नहीं दो बेटे हो गए थे। तब भी करुणा अपने पिता का सहारा बनने के लिए तैयार रहती थी।
क्या बड़े होने पर सभी रिश्ते एक जैसे ही रहते हैं ?क्या वो स्नेह बदल जाता है ?इससे आगे मेरी रचना ''कांच का रिश्ता ''में पढ़िए।