मिल जाती ,कोई सुंदर नार !
पहनाती मुझको बाँहों का हार !
कभी न करती, मुझसे तकरार !
करती हरदम ही मुझसे प्यार !
प्यारे -प्यारे होते मेरे बच्चे चार !
जो लाता ,उसी से प्रसन्न हो जाती ,
न चाहत ,न करती इच्छाएं हज़ार !
जो भी कहूँ ,मान जाती........
इर्द -गिर्द इठलाती , मुस्काती।
उसकी रेशमी जुल्फ़ों के साये में ,
प्यार से यूँ ही, गुज़रतीं मेरी रातें !
आँखों हीआँखों में, शाम हो जाती।
बहुत हो चुका अब.........
कब तक, यूँ ही ,मुस्कुराते रहोगे ?
सूरज सिर पर चढ़ आया ,
कब तक, नींद में बड़बड़ाते रहोगे ?
जरा उस स्वर्ग से बाहर आ जाओ !
कब तक ? इस नर्क में जलाते रहोगे ?
जब से विवाह हुआ ,इस आदमी ने ,
क्या थी ?मैं ! मेरा हाल क्या किया ?
मुझे तो इसने जीते जी नर्क दिखला दिया।
स्वर्ग -नर्क सब अपने मन का........
सुकूँ ही स्वर्ग -
सुकून नाही ,मन माही !
हिया मोरा ,डोलता.......
गुरु धारण किया ,
मंदिर गया , पूजन किया।
करता ,मंत्र जाप.......
मन स्थिर न हुआ।
कमंडल ले, चला।
भटकता रहा।
मन स्थिर न हुआ।
रहा ,भटकता चाहतों में ,
अपने को भी भूल गया।
पर नारी की चाहत ,
नर्क का द्वार हुआ।
लालसा को त्यागो !
चित्त स्थिर कर....
देखो !प्रभु की लीला !
कौन अपना ,कौन पराया ?
यहीं स्वर्ग का दर्शन पाया।