Sawarg ki darshan

मिल जाती ,कोई सुंदर नार ! 

पहनाती मुझको बाँहों का हार !

कभी न करती, मुझसे तकरार !

करती हरदम ही मुझसे प्यार !


प्यारे -प्यारे होते मेरे बच्चे चार !

जो लाता ,उसी से प्रसन्न हो जाती ,

न चाहत ,न करती इच्छाएं हज़ार !

जो भी कहूँ ,मान जाती........ 

इर्द -गिर्द इठलाती , मुस्काती। 

उसकी रेशमी जुल्फ़ों के साये में ,

 प्यार से यूँ ही, गुज़रतीं मेरी रातें ! 

आँखों हीआँखों में, शाम हो जाती। 

बहुत हो चुका अब......... 

कब तक, यूँ ही ,मुस्कुराते रहोगे ?

सूरज सिर पर चढ़ आया ,

कब तक, नींद में बड़बड़ाते रहोगे ?

जरा उस स्वर्ग से बाहर आ जाओ !

कब तक ? इस नर्क में जलाते रहोगे ?

जब से विवाह हुआ ,इस आदमी ने ,

क्या थी ?मैं ! मेरा हाल क्या किया ?

मुझे तो इसने जीते जी नर्क दिखला दिया। 


स्वर्ग -नर्क सब अपने मन का........ 

सुकूँ ही स्वर्ग -




सुकून नाही ,मन माही !

हिया मोरा ,डोलता....... 

गुरु धारण किया ,

मंदिर गया , पूजन किया। 

करता ,मंत्र जाप....... 

मन स्थिर न हुआ। 

कमंडल ले, चला। 

भटकता रहा। 

मन स्थिर न हुआ। 

रहा ,भटकता चाहतों में ,

अपने को भी भूल गया। 

पर नारी की चाहत ,

नर्क का द्वार हुआ। 

लालसा को त्यागो !

चित्त स्थिर कर.... 

देखो !प्रभु की लीला !

कौन अपना ,कौन पराया ?

यहीं स्वर्ग का दर्शन पाया। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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