Rishton ka daur

वो भी क्या, रिश्तों का दौर था ?

जब सभी साथ रहते थे ,

न अपना न पराया था।  

सुख -दुःख में ,एक दूजे  के साथ ही नहीं ,

एक -दूसरे की हिम्मत और साहस भी थे।


 

गर्व था ,अपनों पर ,अपने रिश्तों पर ,

कमजोर लम्हों में भी ,साथ निभाते थे।

दूर रहने  पर भी ,करीब नजर आते थे।  

वो भी क्या ,रिश्तों का दौर  था  ?

हर रिश्ता एक -दूजे का आलंबन था।

सुख -दुःख सबके साझे थे।  

आज भी रिश्तों का दौर है। 

रिश्ते दिखलाई देते हैं , साथ खड़े नहीं ,

रिश्तों में न अब ,प्यार ,न विश्वास की डोर ,

नजर आती है ,तो क्षीण होती नजर आती है। 


नाजुक डोर रेशम की, जो बंधती ही नहीं ,

मौन रह ,बाँधी भी किसी तरह........ 

एक झटके में ही,खुल जाती है। 

कमजोर ,वित्तशाली डोर खुली नजर आती है। 

 पहले इंसान गरीब था , हर रिश्ता करीब था। 

आज इंसान वित्तशाली है ,अहं का बोझ भारी है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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