रज्जो , बरखा की मां, जो अपनी बेटी के लिए के सुंदर भविष्य के सपने देख रही थी, जो मन ही मन उसको पढ़ने और आगे बढ़ते देख खुश हो रही थी। जीवन में जो उसको ना मिला, वह उसकी बेटी पाना चाहती थी। बाहरी तौर पर उसे डांटती- धमकाती भी थी, किंतु उसके साहस, उसकी जिद को देखकर, मन ही मन खुश भी होती थी क्योंकि वह जानती थी ,मेरी बेटी सही राह पर है, फिर जिंदगी में इस तरह आगे बढ़ते हुए कहां उससे चूक हो गई? कुछ समझ नहीं आया। जब धनंजय जी उसकी बेटी पर आरोप लगा कर गए। उनके शब्दों का उसने विरोध भी किया,अपना पक्ष भी रखने का प्रयास किया। मेरी बेटी को तो बंदूक चलाना आता ही नहीं ,क्यों? किसी का कियाअपराध, मेरी बेटी पर थोप रहे हैं ? क्यों वह अपने होने वाली पति पर बंदूक चलाएगी ?कुछ समझ नहीं आ रहा था। उस समय प्यारेलाल भी घर में नहीं था ,वह परेशान हो उठी। बेटी का भविष्य तो, होने वाले दामाद के साथ ही जुड़ा है ,बेटी से पहले ,उसको दामाद की चिंता सताने लगी, शायद ,उनसे मिलकर ही सच्चाई का कुछ पता चल सके। इसीलिए लोगों से पूछती - पाछ्ती अस्पताल में पहुंच गई किंतु पुलिस वालों ने उसे मिलने ही नहीं दिया। जिसकी बेटी पर, ख़ून करने का आरोप लगा हो। ऐसे समय में कोई साथ खड़ा, नजर नहीं आता। अपने मन का साहस ही तो है। जो उन परिस्थितियों से लड़ने का सहारा होता है।
बरखा को जेल में देखकर, प्यारेलाल भी हड़बड़ा गया। दिन भर रिक्शा चलाने वाला आदमी थककर सोचता है घर जाकर आराम करूंगा। अपने परिवार को चलाने के लिए उसे भी पैसे की आवश्यकता है बेटी है आगे बढ़ रही है अच्छा मन में एक संतोष सा है हालांकि डर बना रहता है कभी-कभी मन में बहुत से लालची ख्वाब भी आ जाते हैं किंतु जिंदगी में जैसा चल रहा है ऐसा तो जिंदगी चलती ही नहीं सोचा था बेटी का के हाथ पीले हो जाएंगे वह अपने घर की हो जाएगी तब बाकी के तीन बच्चों पर ध्यान दिया जाएगा और अपनी बहन को देखकर वह भी तरक्की की और अग्रसर होंगे। पसीने से लथपथ था ,अभी एक सवारी छोड़कर आया था। और सवारी की के इंतजार में चौराहे पर खड़ा था तभी पुलिस की गाड़ी को जाते देखा पुलिस का तो काम अपराधियों को पकड़ना ही है उसने कोई विशिष्ट ध्यान नहीं दिया किंतु जब जीप में पीछे बैठी अपनी बेटी को दिखा तो बौखला गया। यह बरखा पुलिस जीप में क्या कर रही है ? वह जब के पीछे हो लिया और थाने तक पहुंच गया।
वह बरखा से जानना चाहता था ,आखिर माजरा क्या है ? किंतु वह चुप रही ,इससे वह बरखा पर क्रोधित भी होता है और चिल्लाकर पूछता है, आखिर सच्चाई क्या है ?बरखा कैसे कहें ? कि कॉलेज में क्या हुआ था ? विशाल के विषय में अपनी माँ को तो उसने बता दिया था लेकिन पिता से कैसे कहे? किंतु मां ने भी अब सोच लिया था कि शायद बेटी का विशाल से कोई संबंध नहीं है , वह भी नहीं जानती थी कि अभी भी उनकी बेटी, विशाल से संबंध बनाए हुए हैं ,उससे मिलती है। यदि सामाजिक दृष्टि से देखा जाए, तो उसका यह रिश्ता शर्मनाक था , उस रिश्ते के बावजूद भी, उसने श्याम से सगाई की इसीलिए बात कुछ अधिक ही गंभीर हो जाती है उसे तो उम्मीद भी नहीं थी ,कि श्याम इस तरह अपने दोस्तों को लेकर ,उसे हॉस्टल में पहुंच जाएगा। यह प्यार अब प्यार नहीं लग रहा था, बदनामी का काला धब्बा नजर आ रहा था। सोचा क्या था ,हो क्या रहा था? पता नहीं, जिंदगी क्या चाहती है ? पिता से कैसे कहे ? विशाल से जो संबंध था वह श्याम को पता चल गया। यह सब सुनते ही, पिता की तो गर्दन झुकी जानी ही थी इसीलिए वह शांत रही।
जब बार-बार प्यारेलाल ने उससे पूछा-तेरे मुंह में क्या दही जमा है ,बताती क्यों नहीं ,कि क्या हुआ था ? अगर तुझे जेल हो गई ,तो तुझे पता है ,कितनी बदनामी झेलनी पड़ेगी ? तेरा रिश्ता भी टूट जाएगा फिर तुझसे कौन ब्याह करेगा ? इतना कहने और पूछने के बावजूद भी, बरखा के मुंह में शब्द नहीं थे। सिर्फ आंखों से उसका दर्द , पश्चाताप सब बहकर बाहर आ रहा था।
चलो उठो ! अब जाओ !यहां से बाकी काम हम कर लेंगे। निराश, हताश, थका हुआ सा प्यारेलाल थाने से बाहर आ गया। अपनी रिक्शा उठाई और घर की ओर चल दिया जब अपनी गली में घुसा तो लोग उसे इस तरीके से देख रहे थे ,जैसे कोई अजनबी आया हो ,आज उनका देखना इस तरह देखना ,उसे बहुत खल रहा था ,एक- दो ने उसे रोककर पूछा भी, प्यारेलाल क्या हुआ ?
मुझे भी नहीं पता, लेकिन मुझे यह जरूर लग रहा है कि मेरी बेटी को फंसाया जा रहा है।
घर पहुंच कर उसने, रिक्शा एक तरफ खड़ा किया और अंदर रज्जो के पास पहुंच गया। क्रोधित होते हुए बोला-क्या तू कुछ जानती है ? पूछते हुए ,उसने पुलिस वालों के द्वारा कही गई बातें ,उसे बता दीं और पूछा -तू मुझे बता ! क्या और कोई लड़का भी उसकी जिंदगी में था ?
प्यारेलाल के इतना पूछते ही , तब रज्जो को विशाल का स्मरण हो आया , इस बात को तो वह भूल ही चुकी थी। बरखा का बालकपन समझ, सोच रही थी- कि समय के साथ, सब भूल जाएगी अब तो उसका रिश्ता भी कर दिया था, तो क्या आज भी....... यही सब सोचकर उसने प्यारेलाल को बरखा के पुराने मालिक के पोते के विषय में बताया।
संपूर्ण कहानी सुनकर, प्यारेलाल ने मन ही मन सोचा-ओह ! तो इसीलिए उस दिन वह मालिक मेरे घर, मेरी बेटी के विवाह के लिए कहने आया था। क्योंकि वह अपने पोते को मेरी बेटी से बचाना चाहता था, तभी तो मैं सोचूं नौकरी छोड़ने के पश्चात भी ,इसे हमारी बेटी की विवाह की चिंता क्यों सता रही है ? तभी उसे रज्जो पर क्रोध आया और उसे डांटा -यह बात तू मुझे पहले नहीं बता सकती थी , इतनी बड़ी बात हो गई , हो सकता है ,समय रहते ही मैं ,बात को संभाल लेता।
मुझे ही कहां पता था ,उसने एक बार ही बताया था ,उसके बाद उसने कभी उसका जिक्र नहीं किया और वहां से नौकरी भी छोड़ दी थी, विवाह के लिए भी तैयार हो गई थी ,इसीलिए मैंने इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं दिया।
अब थाने जाता हूं और बरखा से ही पूछता हूं आखिर उसे कॉलेज में हुआ क्या था ? वरना एक बार जेल चली गई, पूरी जिंदगी भी यह कलंक नहीं छूटेगा।
पहले खाना तो खा लो ! तब चले जाना।
मुझे भूख नहीं है , भूख लग भी कैसे सकती है ?जब हमारे घर में ही ,इतना बड़ा कांड हो गया।
हमें भूख नहीं लगेगी किंतु हमारे जो बच्चे हैं उन्हें तो भूख लगेगी ,दाल -रोटी बनाई है , दो रोटी खा लेते शरीर में भी ताकत भी तो चाहिए ,भागा- दौड़ी करने के लिए।
नहीं, अब मैं वहां से आकर ही खाना खाऊंगा, कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
क्या मैं भी साथ में चलूं ,मेरा भी बड़ा मन कर रहा है , अपनी बच्ची को देखने का।
उसे देखकर क्या करेगी? उसने बड़ा तुम्हारा नाम रोशन कर दिया है, मोेहल्ले वाले मुझे आते समय ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजीब आदमी इस मोेहल्ले में घुस आया हो कुछ तो पीठ पीछे ताने भी सुन रहे थे किंतु मैंने ध्यान नहीं दिया।
ठीक है ,अभी हमारा समय खराब है ,थोड़ा समझदारी से काम लेना पड़ेगा।
समझदारी तो तुम जैसी औरतों के कारण, जहन्नुम में चली जाती है। लड़की क्या कांड खिला रही है? और मां ने बताया तक नहीं , इस वक्त मेरा शरीर भी काम नहीं कर रहा वरना मन में तो आ रहा है तेरे मुंह पर तो थप्पड़ जमाकर रख दूं।आज तक तेरे ऊपर हाथ नहीं उठाया क्योंकि जब कोई औरत पर हाथ उठाता है ,तो मुझे अच्छा नहीं लगता किन्तु आज तुम दोनों माँ -बेटी के कारण...... कहकर वो चुप हो गया। प्यारे लाल के इतना कहते ही ,रज्जो एकदम चुप हो गई और वह बाहर निकल गया।

