Bewafai

  न......  न.... उसे मैं ,

'' बेवफा'' भी नहीं कह सकता,

 उससे प्यार जो किया है। 

कुछ कमी तो रह गई होगी ,

 मेरे ही प्यार में..... 

उसे विश्वास दिला भी नहीं सकता। 


 या मैं, इस लायक भी नहीं ,

 जो उसके प्यार को संभाल सके। 

 उसे  अपना सब कुछ माना। 

''बेवफा'' कह उसे,

अपने प्यार की तोेहीन नहीं करा सकता। 

बेवफाई ,उसकी फितरत रही होगी। 

जिसमें वह खुश रहे ,उसकी बेवफाई भी सह लेंगे। 

''कुबूल ''उसके दिए हर गम, अधर अपने सी लेंगे।

हैरान हूँ मैं ,उस बेवफ़ा को बेवफ़ा कह नहीं सकता।  


रिश्तों की डोर -

रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक,

तनिक ढील दो ,उलझ जाती है। 

तनिक सख्ताई से ही टूट जाती है। 

इसे निभाते ,सुलझाते जिंदगी चली जाती है।



रिश्तों की डोर संभाले रखो !सहेजकर रखो !

जरूरत के वक्त ,न जाने ,कहां खो जाती है ?


रिश्तो की डोर ,बनती नहीं ,बनानी पड़ती है। 

निबाही नहीं जाती , निबाहनी पड़ती है। 

जो निबाहते नहीं ,वह बुरे, 

जो निबाहते हैं, वह पछताते हैं।

 

रिश्तों की डोर ,कमजोर थी मेरी ,

गांठे लगाते -लगाते न जाने,

 कब डोर छोटी हो गयी ?

जीवन में ,नए एहसास दिला गयी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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