Haunted [part 39]

हॉन्टेड विद्यालय में खेल प्रतियोगिता चल रही है ,दो रात्रि बीत चुकी हैं। विद्यालय का वार्षिकोत्सव अपनी चरम सीमा पर था। सबको बहुत ही मजा आ रहा था। कमाल तो तब हुआ ,जब नए आए बच्चों ने, उस प्रतियोगिता को जीत लिया।  जिस प्रतियोगिता को आज तक कोई भी ना जीत सका ,वह प्रतियोगिता भी इस वर्ष पूर्ण हुई।  अब न जाने, इसके आगे कौन अपना नाम करेगा ? पिछली दो  प्रतियोगिताएं बहुत ही रोमांचक रहीं। इस खेल के पश्चात, टॉम अपने दोस्तों से बिछड़  गया था , वह विद्यालय भी ,हवा में गायब हो चुका था। जब वह हैरान परेशान आसमान में घूम रहा था, अचानक ही , उसे किसी ने पीछे से खींच लिया। उसने देखा, कोई पेड़ पर है और अभी वह इससे पहले की कुछ ज्यादा समझ पाता ,वह पेड़ के अंदर समा गया। पेड़ के अंदर जाकर उसने देखा-उसकी तरह ही एक आत्मा उसमें रहती है। उसे देखकर टॉम ने आश्चर्य से पूछा -क्या आप इस पेड़ के अंदर रहते हैं। 

वह मुस्कराया और बोला -अंदर बाहर मैं कहीं भी रह सकता हूं।किन्तु  मुझे लगता है, तुम अपने दोस्तों से और अपने विद्यालय से बिछुड़  गए हो। 



जी, मैं  एक लड़के शान से ,बातें  कर रहा था , तभी सब हवा में गायब हो गए और मैं अकेला ही रह गया। 

क्या आप यहां अकेले रहते हैं ?टॉम ने प्रश्न किया। 

नहीं, मेरा पूरा परिवार यहीं  पर रहता है , मैं भी विश्राम करने जा रहा था ,तब मैंने तुम्हें आकाश में भटकते हुए, देख लिया , मैं समझ गया था कि तुम अपने साथियों से बिछुड़ चुके हो, इसीलिए तुम्हें यहां खींच लाया। क्या तुम इसी वर्ष इस विद्यालय में आए हो ? कहते हुए ,उसे पेड़ की गहराई में ले गया। वहां पर अच्छा विश्राम कक्ष बना हुआ था और एक बिस्तर पर उसकी पत्नी दूसरे पर उसकी बेटी सो रहे थे। इतना बढ़िया विश्राम कक्ष देखते ही, टॉम को जम्हाई आने लगी और बोला -क्या मैं भी यही सो जाऊं ?

हां हां क्यों नहीं? इसलिए तो तुम्हें लाया गया है , कुछ खाओगे ,भूख लगी है। 

नहीं, मैंने  विद्यालय के कार्यक्रम के समय ही, खाना खा लिया था। 

टॉम ने देखा, दूसरे बिस्तर पर एक लड़की लेटी  थी ,वो उसे बुरी तरह घूर रही थी, उसे देखकर टॉम को डर लग रहा था। टॉम ने उसे देखकर ,अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया। 

टॉम  ने पूछा -क्या यह आपकी बेटी है ?

हां, मेरी बेटी ही समझो ! उसने जवाब दिया। 

समझो मतलब ! मैं कुछ समझा नहीं। 

यह भी मुझे तुम्हारी तरह ही मिली, यह भी अपने रास्ते पर भटक गई थी किंतु जब से मिली है तब से ही ''एंग्री लेडी ''बनकर घूम रही है ,कह कर वह हंस दिया। 

उनकी बात सुनकर टॉम को भी हंसी आ गई और बोला -ऐसा क्यों ?  

हम जब इंसानी रूप में '''भूलोक '' पर थे , तब हम एक दूसरे को जानते भी नहीं थे ,किंतु हमारे साथ परिस्थितियाँ  एक जैसी घटी हैं । इसीलिए हम सब यहां आकर मिल गए और हमारा एक छोटा सा परिवार बन गया। 

कैसी परिस्थितियाँ ? मैं कुछ समझा  नहीं। 

इसमें ना समझने वाली बात ही नहीं है, जब तुम यहां पर आए क्या तुम्हारे मम्मी -पापा भी तुम्हारे साथ थे ?

नहीं, मेरे दोस्त ही मेरे साथ थे ,हम पिकनिक मनाने के लिए गए थे और वहीं  हमारी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। तब से मैं अपने दोस्तों के साथ ही रह रहा हूं।

बस , ऐसे ही हम लोग भी मिल गए, क्योंकि हम लोगों के साथ छल हुआ था , और इसी छलके कारण, हम ''छलावा भूत ''हो गए। 

''छलावा भूत'' यह क्या होता है ? क्या सभी भूत एक जैसे नहीं होते ?

एक जैसे ही होते हैं, किंतु जो जिन  परिस्थितियों के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ , वह वैसा ही भूत बन जाता है। हमारी मृत्यु छल के कारण हुई, इसीलिए हम छलावा भूत हो गए। 

क्या, तुम सभी लोगों के साथ छल हुआ ? टॉम ने आश्चर्य से पूछा। 

उसने हाँ में गर्दन हिलाई। 

तभी बिस्तर से वह डरावनी लड़की उठी, उसे भूतिया भाषा में 'चुड़ैल' भी कह सकते हैं और न जाने कहां गायब हो गई। अभी टॉम उस भूत से बात ही कर रहा था। तभी अचानक एक रक्त से भरा कटोरा लेकर वह टॉम के सामने खड़ी हो गई और बोली -इसे पियो  ! 

नहीं ,मैं रक्त नहीं पीता टॉम ने उसे पीने से इनकार कर दिया। 

टॉम की बात सुनकर, वह बहुत जोर -जोर से हंसने लगी और बोली -भूत होकर भी रक्त नहीं पी रहा, तब तुम खाते क्या हो ?

हमारे विद्यालय में, शाकाहारी चीजें  भी बनती हैं, हम वही खाते हैं , माना कि हम भूत हैं किंतु यह जरूरी तो नहीं, कि हम इंसान को ही खाएं या उसका ही रक्त पिएं , यह तो हमारी इच्छा पर निर्भर करता है। 

हां हां ठीक है , इसे तुम स्वयं पी लो ! उसके पिता ने उससे कहा। 

टॉम उनसे बोला -ये  छल क्या है ?आप लोगों के साथ कैसे  छल  हुआ ?

हमारी सब की अलग-अलग कहानी है , पहले मेरी कहानी मैं तुम्हें सुनाता हूं -मैं जब इंसान था ,मेरा नाम दयाराम था।  तब खेती - किसानी करता था, ईमानदार और मेहनती था। मेहनत करके अपने परिवार को पालता ,किन्तु मैं भी चाहता था कि और लोगों की तरह उन्नति करूं मेरे बच्चे भी आगे पढ़ें और बढ़ें !



एक दिन मुझे एक व्यक्ति मिला ,मैंने उससे अपने मन की इच्छा जाहिर की , तब  उसने मुझे बैंक से ऋण लेकर अपनी खेती को आगे बढ़ाने की सलाह दी। उसकी ये बात भी, मुझे अच्छी लगी , उसका सुझाव पसंद आया। तब मैंने  बैंक से ऋण  लिया , उसके लिए मुझे बहुत से फॉर्म वगैरह भरने थे। मैं पढ़ा लिखा तो था नहीं इसीलिए यह कार्य भी मैंने उससे ही करवा लिया। उसने मुझे बताया, ''कि मुझे चार लाख रुपए का लोन मिला है '' मैं बहुत खुश था, उस पैसे से मैं नई किस्म का बीज और जिस चीज की भी खेती में आवश्यकता थी वह सभी लाया ताकि अगली बार जब अच्छी फसल होगी तब मैं ,अपना ऋण  चुका दूंगा।

 मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरी फसल अच्छी हो रही थी , किंतु जब फसल पकने का समय आया , तब उस भगवान को न जाने क्या सूझी ? उसे वर्ष , वर्षा बहुत हुई , जिसकी मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी , लगातार छह -सात  दिनों  तक बारिश होती रही। मेरे अथक प्रयासों के पश्चात भी, मैं अपनी फसल को बचा न सका, उम्मीद के विपरीत बहुत कम ही फसल हुई थी। मैं निराश हो गया ,किस तरह अपना कर्जा  चुकाऊंगा ? मैं बैंक वालों के पास गया और अपनी समस्या सुनाई , उन्होंने बहुत ही ध्यान से मेरी बातें सुनी और बोले-कोई बात नहीं, अगली फसल में चुका देना। मैं जिस तरह से निराश हुआ था, इस तरह फिर से उत्साह से भर गया। थोड़ा पैसा अभी और मेरे पास बचा था। वह फसल तो खाने लायक ही हुई थी उसका कुछ ही हिस्सा मैं बेच पाया। मुझे लग रहा था ,सब लोग कितने अच्छे हैं ? वह इंसान जिसने  मुझे आगे बढ़ाने के लिए राह सुझाई। वे लोग भी, अच्छा व्यवहार कर रहे थे जिन्होंने मुझे कर्जा दिया था ? जब हमारे साथ कुछ अच्छा हो रहा होता है, तो हम खुश होते हैं ,हम उसके पीछे छिपी  परिस्थितियों को नहीं भांप नहीं पाते , क्योंकि हमारे मन में तो ,कोई चोर होता ही नहीं। जिसके मन में पहले से ही चोर होगा या फिर धोखा खाया  हो तो, वह सतर्क रहेगा , कभी-कभी हमें लगता है, हम अच्छे हैं ,तो सभी अच्छे हैं , यही मेरे साथ भी हुआ था। 

आगे क्या हुआ ?आगे तो बताइए , टॉम ने उसकी बात को लंबी होते देखकर कहा। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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