लगता है ज्यादा ,महसूस हुआ कुछ दिन ही बीते हैं।
यहां की हवा और यहां के हर लम्हे, को हम जीते हैं।
जब आंखें खुली , लोग अजनबी थे।
धीरे-धीरे जान -पहचान बढ़ने लगी।
आज अचानक न जाने क्यों ? जो अपने थे।
कुछ अजनबी से हो गये ,अपने पराए हो गए।
आज यह शहर भी ,अनजान नजर आता है।
इस घर में रहने वाला,क्यों, बेगाना नजर आता है ?
क्यों ? यह शहर ,यह लोग, अजनबी लगने लगे।
पिता का वह आंगन भी,आजअजनबी हो गया है।
मुड़कर देखती हूं, कुछ पहचाना सा,यह शहर !
कल यह मायका भी ,अनजाना हो जाएगा।
छूट जाएंगे ये रिश्ते, यह बेगाना हो जाएगा।
मंजिल मेरी कोई और है, जाना मुझे, है वहां !
जहाँ 'दिल ''और ''दिलवालों ' की बस्ती है।
जहां कल तक मैं अजनबी थी,वो अपना नजर आता है।
अजनबी लोग अजनबी शहर न जाने कब अपने हो गए ?
