Zindgi likh rahi hun !

शब्दों में खोई- खोई सी हकीकत लिख रही हूं। 

इन शब्दों की इबारत में, जिंदगी लिख रही हूं। 

कुछ ख्वाब हैं टूटे से ,कुछ अरमान है बिखरे से,

उन ख्वाबों ,अरमानों की तकदीर लिख रही हूँ। 

मैं अपनी ''जिंदगी ''की किताब लिख रही हूँ। 



जिसकी जिंदगी, जैसी बीतती है वही जानता है। 

बीते हुए लम्हों पर ,अपना मज़मून लिख रही हूं। 

खोई सी, बिखरी सी जिंदगी , न जाने कहां गयी ?

हकीकत से परे जिंदगी की मासूमियत लिख रही हूं।

 कुछ तस्वीरें हैं, मुस्कुराती सी, जो खो गई हैं , कहीं ,

उन पलों , लम्हों को समेट ताज़ा गज़ल लिख रही हूं। 

न जाने....  जिंदगी में कितने चेहरे आते हैं ?धुंधले से ,

उन भूली बिसरी तस्वीरों की, एक नज़्म लिख रही हूं।

जिंदगी ने क्या दिया ?क्या लिया कुछ समझ नहीं आया। 

मैं फिर भी इस जिंदगी के पहलू में, जिंदगी लिख रही हूं। 

कितना रुलाती है? जिंदगी , दिल टुक टुक करती है जिंदगी !

इन पन्नों में, मैं अपनी जिंदगी का हिसाब किताब लिख रही हूं।

खोई हूं ,इस जिंदगी में , मैं' जिंदगी' की किताब लिख रही हूं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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