शब्दों में खोई- खोई सी हकीकत लिख रही हूं।
इन शब्दों की इबारत में, जिंदगी लिख रही हूं।
कुछ ख्वाब हैं टूटे से ,कुछ अरमान है बिखरे से,
उन ख्वाबों ,अरमानों की तकदीर लिख रही हूँ।
मैं अपनी ''जिंदगी ''की किताब लिख रही हूँ।
जिसकी जिंदगी, जैसी बीतती है वही जानता है।
बीते हुए लम्हों पर ,अपना मज़मून लिख रही हूं।
खोई सी, बिखरी सी जिंदगी , न जाने कहां गयी ?
हकीकत से परे जिंदगी की मासूमियत लिख रही हूं।
कुछ तस्वीरें हैं, मुस्कुराती सी, जो खो गई हैं , कहीं ,
उन पलों , लम्हों को समेट ताज़ा गज़ल लिख रही हूं।
न जाने.... जिंदगी में कितने चेहरे आते हैं ?धुंधले से ,
उन भूली बिसरी तस्वीरों की, एक नज़्म लिख रही हूं।
जिंदगी ने क्या दिया ?क्या लिया कुछ समझ नहीं आया।
मैं फिर भी इस जिंदगी के पहलू में, जिंदगी लिख रही हूं।
कितना रुलाती है? जिंदगी , दिल टुक टुक करती है जिंदगी !
इन पन्नों में, मैं अपनी जिंदगी का हिसाब किताब लिख रही हूं।
खोई हूं ,इस जिंदगी में , मैं' जिंदगी' की किताब लिख रही हूं।
