लापरवाह है , हुस्न !
बेपरवाह है, इश्क !
हकीकत इश्क की ,
इन्हें कौन समझाए?
इश्क का चढ़ा बुखार ,
वो ,उतरता भी है।
इश्क, मोहब्बत का ,
नाम ही रह गया है।
शिद्दत किसे कहते हैं ?
किसी ने न जाना ,
नहीं जानते इश्क !
''इबादत ''भी है।
जो इश्क से बेपरवाह!
ख्याली पुलाव पकाते हैं।
हकीकत से रूबरू,
हुए नहीं, भाग जाते हैं।
तू नहीं तो और सही ,
और नहीं तो और सही,
यही गाना गुनगुनाते हैं।
