प्रीति के अंदर के प्रेत ने, करण के जीवन का एक रहस्य और खोलकर रख दिया , वह भी प्रभा और मालिनी जी के सामने ..... वह नहीं चाहता था, कि और कोई बात उनके सामने खुले , इसीलिए तांत्रिक से यह सब करने को मना कर दिया , किंतु जब तक प्रेत का कार्य पूर्ण नहीं हो जाता है ,तब तक वह इस घर से वापस नहीं जाएगा। उस समय तो वह प्रीति के शरीर से निकल जाता है किंतु उसने पुनः इस घर में प्रवेश करने के लिए कह कर गया। अघोरी बाबा भी, उसका कुछ नहीं कर सकते थे , क्योंकि उसे भेजा गया है, उसका इसमें कोई दोष नहीं है। हां ,यह अवश्य है , यदि अघोरी बाबा उसे बंदी भी बना लेते हैं , तब भी प्रीति के ऊपर से खतरा नहीं टलता है। इसका सीधा सा समाधान है, जो समस्या है ,पहले उसको ही समाप्त करना है। प्रेत तो स्वतः ही चला जाएगा। तब भी अगर यह नहीं जाता है , तब उसको दंड मिलना आवश्यक है।
अब मालिनी जी और प्रभा के मन में यह प्रश्न था। उस दिन क्या हुआ था ? उस दिन की बात , उसने क्यों कहीं ? इन प्रश्नों के जवाब तो सिर्फ करण के पास ही होंगे। किंतु करण उनसे पहले ही नजरें चुरा रहा था और अंदर चला गया था। अब ऐसा तो नहीं हो सकता था कि उसको बाहर बुलाया जाए और उससे पूछताछ की जाए। सबके अपने-अपने जीवन के कुछ न कुछ रहस्य होते हैं ,कुछ ना कुछ ऐसी बातें होती हैं जो वह समाज से, दुनिया से और कभी-कभी अपने आप से भी छुपाना चाहता है।
मालिनी जी ने करण की मम्मी से बात करनी चाही , आप अपने बेटे के जीवन के विषय में कितना जानती हैं ?उन्होंने प्रश्न किया।
उतना जानती हूं, जितना वह अपने आप को भी नहीं जानता।
यानी कि आप उसके विषय में सब कुछ जानती हैं।
मुझे तो यही लगता है, उससे अलग उसने मुझे कुछ छुपाया हो, तो वह मैं नहीं जानती।
ठीक है आप जितना भी जानती हैं उतना ही बता दीजिए, कुछ बातें तो हमें प्रीति के मुंह से ही सुनने को मिल गईं , उनका इशारा उसे प्रेत की तरफ था। क्या मालूम, आपके घर की परेशानी का हल ही मिल जाए। प्रीति को इस विषय में कुछ भी नहीं मालूम था। जो कुछ स्वयं उसने अपने मुंह से बतलाया। वह उसे खुद ही नहीं मालूम ,उसने क्या कहा ?क्या नहीं क्योंकि वह स्वयं में नहीं थी ,उसके अंदर का प्रेत बोल रहा था। इस विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी प्रीति के लिए अथवा उसकी गृहस्थी के लिए हानिकारक हो सकती थी। यही सोच कर मालिनी जी ने उसे एक मंत्र बतलाकर उसे घर के एक कोने में बैठा दिया और कहा -इस मंत्र की 101 माला का जाप करना है , इससे घर में सुख और शांति आएगी। प्रीति मालिनी जी का अनुसरण कर रही थी।
करण अपने कमरे में बैठा , दुख की गहराइयों में खोया हुआ था , वह नहीं समझ पा रहा था वह कहां तक सही था और कहां पर वह गलत हो गया ?
जो करण की मम्मी ने बताना आरंभ किया - शुरू में दोनों, आपस में, दोस्तों की तरह मिलते-जुलते थे किंतु धीरे-धीरे उनमें प्यार हो गया। न जाने कब एक दूसरे की पसंद बन गए और एक दूसरे को चाहने लगे , दोनों ही विवाह करना चाहते थे , एक दूसरे के साथ बिता देने के सपने देख रहे थे। हमारी तरफ से तो कोई आपत्ति नहीं थी ,लड़की वालों को जब इस विषय में पता चला क्योंकि करण की बुआ ने , उनकी बेटी गौतमी का हाथ अपने भतीजे के लिए मांगा। गौतमी के घर वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी। दोनों तरफ से इजाजत मिल गई थी। दोनों अब स्वतंत्र थे ,प्रेम की पींगें बढ़ा रहे थे। ऐसा लग रहा था ,जैसे-' एक दूसरे के बिना जी न सकेंगे।'' किंतु गौतमी की मम्मी को जन्मपत्री में विश्वास था। वह एक बार दोनों की जन्मपत्री मिलवाना चाहती थी। हमें भी कोई आपत्ति नहीं थी।
जब गौतमी की 'जन्मपत्री ' पंडित जी ने देखी और बताया तो सभी के चेहरे उदास हो गए।
ऐसा क्या था ?उस जन्मपत्री में ?मालिनी जी ,ने उत्सुकतावश पूछा।
गौतमी की जन्मपत्री में ,एक ही कमी थीं ,गौतमी की जन्मपत्री में ''मंगल दोष ''आ रहा था ,जिसके कारण ये रिश्ता ठीक नहीं माना जा रहा था।
ये ''मंगल दोष ''क्या है ?इसमें क्या होता है ?जिसमें ''मंगल दोष ''हो ,क्या उसका विवाह नहीं होता ?प्रभा ने पूछा।
जिसमें'' मंगल दोष'' होता है,उसे ''मंगली ''कहते हैं और मंगली लड़के या लड़की का विवाह'' मंगली'' से ही होता है ,वरन ' मंगल दोष 'दूसरे साथी पर भारी होता है यानि दूसरा बीमार भी हो सकता है ,या फिर अकाल मृत्यु भी हो सकती है।
हमने भी यहां ,के पंडित जी से ,करण की जन्मपत्री दिखलाई तो उसकी जन्मपत्री में ,मंगल दोष नहीं था। किंतु....... कहकर पंडित जी बात को छुपा गए , उस समय हमने भी,उनकी किन्तु.... पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
सभी गौतमी के'' मंगल दोष ''को लेकर परेशान थे। घरवालों के साथ -साथ दोनों बच्चे भी परेशान हो उठे ,वे एक -दूसरे का साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे ,न ही इन बातों पर उन्हें विश्वास था। उन्हें बहुत समझाया गया ,बहुत कहने सुनने पर ,भी एक -दूसरे का साथ नहीं छोड़ना चाहते थे। यह उन दोनों के लिए ही दुख का विषय नहीं था , बल्कि घरवालों के लिए भी दुख का विषय था। दोनों ही साथ में अच्छे लगते थे , दोनों की जोड़ी अच्छी लगती थी। दोनों के दुःख को देखकर ,पंडित जी ने कहा ,एक उपाय है ,यदि लड़की का विवाह ,लड़के से पहले ,किसी ''वट वृक्ष'' से कर दिया जाए ,तो इसके मंगल दोष की सम्पूर्ण ग्रहों का भार ,वो वृक्ष अपने ऊपर झेल लेगा।
क्या, ऐसा हो सकता है ? यदि यह संभव है, तब हम इसके लिए कल ही तैयार हैं , दोनों ही खुशी से झूम उठे। सादगी पूर्ण तरीके से विवाह की सभी रस्में निभाई जाने लगीं। दिन और समय निश्चित किया गया , उसके आधार पर विवाह की सभी तैयारियां होने लगीं। और एक दिन गौतमी को,'वट वृक्ष ''के साथ गठबंधन में बांध दिया गया।
तब तो दोनों का विवाह हो जाना चाहिए था, जो अड़चन आई थी, वह तो समाप्त कर दी गई या यूं कह सकते हैं ,उसका उपाय कर दिया गया। तब दोनों का विवाह क्यों नहीं किया गया ? प्रभा ने पूछा।
मुझे तो लगता है, इनकी किस्मत में मिलना ही नहीं लिखा था , दोनों के जीवन में फिर से खुशियां भर आई थीं अब आगे कोई आपत्ति नहीं आएगी सब यही सोचे बैठे थे।किन्तु जब पंडित जी ने ,करण की जन्मकुंडली मिलान के लिए देखी तो रुक गए।
अब क्या हुआ ?मुझे तो लगता है ,''मंगल दोष ''से ज्यादा इनकी कुंडली में ,किन्तु बैठा हुआ था ,प्रभा बोली।

