रात्रि का गहन अंधकार , सभी परिवार ,अपने घरों में दुबके पड़े थे ,कोई सो रहा था ,कोई सोने की तैयारी में था। ऐसे में प्रीति का परिवार जाग रहा था , उसके घर में रोेशनी हो रही थी। करण और उसकी मम्मी कुछ परेशान से घूम रहे थे। करण की बुआ , गौतमी को लेकर आ गई थी। इस समय सभी के चेहरों पर परेशानी थी , पता नहीं, बुआ क्या कह कर उसे यहाँ लाई थी ? उससे क्या झूठ बोला था ? अभी कुछ भी जानने की किसी को भी फुर्सत नहीं थी। क्या सोचकर, गौतमी इस घर में पुनः आई है ,कोई नहीं जानता। करण बेचैनी से घड़ी में समय देख रहा है। शमशान ज्यादा दूर नहीं है , 11:00 बजे तक उन्हें, उस स्थान पर पहुंच जाना है। जिस वक़्त पर उस तांत्रिक ने उन्हें बुलाया है। प्रीति कहीं नहीं दिख रही , किंतु इस बात से गौतमी मन ही मन खुश है।
कुछ देर बाद दरवाजे को ,कोई खटखटाता है , उत्सुकता से ,करण दरवाजे तक पहुंचता है , अपने सामने मालिनी जी को खड़े देखकर, वह एक गहरी सांस लेता है , उसकी घबराहट थोड़ी कम होती है, उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि वह आएंगी , उन्होंने तो प्रीति से स्पष्ट शब्दों में आने से इंकार कर दिया था। करण के मन के भावों को समझते हुए, वह बोली - मैंने सोचा- जब यह कार्य मैंने अपने हाथों में लिया है, तब मैं इसे, इस तरह से मध्य में नहीं छोड़ सकती।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपके न आने के कारण , वह बहुत परेशान थी, उसने जानबूझकर प्रीति का नाम नहीं लिया, इशारों- इशारों में मालिनी जी को समझा दिया, और बताया-गौतमी आ गई है।
अब देर किस बात की है ? मुझे अब अंदर नहीं आना है ,चलिए !सब मिलकर चलते हैं।
शमशान में जाने के लिए गौतमी, करण और मालिनी की तैयार थे। करण की मम्मी ने भी जाने के लिए कहा-मैं भी आप लोगों के साथ चलती हूं, मैं अकेली ही, यहां रहकर क्या करूंगी ? अकेले मुझे इस तरह नींद भी नहीं आएगी और मेरे मन में रहेगा कि वहां पर क्या हो रहा है ?
नहीं मम्मी !आप यहीं पर रहिये ! अंधेरा बहुत है, अमावस्या की रात्रि है , घर भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, वह ऐसा स्थान है , कुछ कह नहीं सकते,कब क्या हो जाए ? बुआ जी, के साथ भी तो यहां कोई रहना चाहिए क्या आप बुआ जी को भूल गईं ?करण ने समझाया- दोनों को एक दूसरे का सहारा रहेगा।
गौतमी ने प्रीति के विषय में ,किसी से कुछ पूछा ही नहीं, मध्य रात्रि में तीन लोग, घर से बाहर निकलते हैं ,तीन साये एक साथ हैं , कुछ समय पश्चात, एक साया और दिखलाई पड़ता है ,जो उनसे कुछ दूरी बनाकर चल रहा है। गालियां और सड़क सुनसान पड़ी हैं , कोई इक्का-दुक्का कुत्ता भोंकने लगता है। यह तीनों साये अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं। जैसे-जैसे वह शमशान के करीब पहुंच जाते हैं , दिल को कंपा देने वाला भय लगता है। ऐसा लग रहा था ,अनजानी आत्माएं उनके इर्द-गिर्द घूम रही हैं। चिताएं जलकर शांत हो चुकी हैं , किंतु अग्नि की गर्माहट अभी भी है ,दूर कहीं अग्नि जल रही है , जिनके करीब एक व्यक्ति बैठा है। उन तीनों ने अंदाजा लगाया , यही तांत्रिक बाबा होंगे। सभी के मन में थोड़ी-थोड़ी डर की हिलोर उठ रही है , किंतु ऊपर से सभी शांत नजर आ रहे हैं। चलते हुए ,धीरे -धीरे उस रौशनी वाली जगह की तरफ बढ़ते हैं।
उन्हें अपनी ओर आता देखकर ,तांत्रिक बोला -बहुत समय लगा दिया।
बाबा ! हम तो समय पर ही चले हैं ,बाबा के एक तरफ मालिनी करण और गौतमी बैठ गयी।
तांत्रिक ने ,गौतमी को देखकर ,उससे पूछा -तुम ही गौतमी हो !
जी ,
बिना किसी लाग -लपेट के वो बोले -तुम अपने गुरु से कहकर ,उस प्रेत को वापस बुला लो !
उनकी बात सुनकर गौतमी बुरी तरह से झेंप गई, इस समय करण और मालिनी जी के सामने उसे लगा जैसे उसे किसी ने चोरी करते पकड़ लिया हो, यह आप क्या कह रहे हैं? कौन सा और कैसा प्रेत ? अनजान बनते हुए गौतमी बोली।
वही, जो तुमने उनकी [ करण की तरफ इशारा करते हुए]पत्नी को मारने के लिए भेजा था। गरजते हुए बोले -झूठ मत बोलो !
उनकी आवाज से गौतमी सहम गई , वह सोचने लगी ,मुझे यहां पर, यह लोग किस लिए , लेकर आए हैं। तुम आकर सामने बैठो ! दूसरी तरफ देखते हुए ,उन्होंने कहा , तभी वह साया जो उनसे कुछ दूरी बना कर पीछे-पीछे चल रहा था ,वह जाकर उस'' हवन कुंड'' के सामने आकर बैठ जाता है। उस'' हवन की रोेशनी में '' जब गौतमी उस साये का चेहरा देखती है , तो चीख पड़ती है , और उठकर वहां से भागने का प्रयत्न करती है, कहती है -भूत ,भूत ! शायद , इसीलिए करण साथ में आया था , इससे पहले कि वह भागती , करण ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला - कहां जा रही हो ?
घबराकर गौतमी बोली -वह देखो ,सामने कौन बैठा है ?
कौन बैठा है ? हमें तो कोई नजर नहीं आ रहा।
वह अवश्य ही ,तुम्हारी पत्नी प्रीति ही होगी , उसका भूत मुझे दिख रहा है। बाबा !आपने मुझे यहां किस लिए बुलाया है ?वो तांत्रिक की तरफ मुख़ातिब होते हुए बोली।
तुम्हें उस प्रेत को वापस बुलाना होगा।
नहीं ,मैंने किसी प्रेत को नहीं भेजा। वह अभी भी ,करण के हाथ से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी। जब उसका कार्य पूर्ण हो जाएगा ,वह तो अपने आप वापस चला जाएगा। वह सोचने लगी ,बुआ जी ने तो मुझसे कहा था-''प्रीति अब नहीं रही '' यदि प्रीति नहीं रही तो इसका अर्थ है ?प्रेत का कार्य पूर्ण हो गया। उसे तो स्वतः ही वापस चले जाना चाहिए था। अब उसे संदेह हुआ ,तब उसने करण से फिर से पूछा -क्या तुम्हारे सामने कोई नहीं बैठा है ?
तांत्रिक ने मंत्र उच्चारण आरंभ कर दिए , अपने हवन के पास रखी उस खोपड़ी पर, पहले शराब चढ़ाई और उसके पश्चात उसे बलि दी, बोला -यह भोग ग्रहण कर,अब तू मेरे सामने आजा ! तब वह प्रेत प्रकट हुआ , तांत्रिक बोला- तू वापस चला जा , यहां फिर कभी मत आना।
मैं मंत्रों से बंधा हुआ हूं , जब तक मेरा कार्य पूर्ण नहीं हो जाता ,तब तक मैं कहीं नहीं जा सकता वरना वह मुझे मार डालेगा यदि उसका कार्य पूर्ण नहीं कर पाया।
तुझे किसने भेजा है ? किस कार्य के लिए भेजा है ,
उसके मंत्रों से वश में हुआ, प्रेत कहता है - मुझे इस घर की बहू को मारना है।
उससे तेरी क्या दुश्मनी है ? उसने तेरा क्या बिगाड़ा है ?तांत्रिक चीखते हुए बोला।
मेरी उससे कोई दुश्मनी नहीं है , न हीं किसी ने मेरा कुछ गलत किया है किंतु मुझको भी मजबूर किया गया है , उसको मारना है और उसका लहु पीना है , उसने प्रीति की तरफ इशारा किया।
यह सुनकर, गौतमी जोर-जोर से चीखने लगी -उस एकांत शमशान में रात्रि के समय उसकी चीखें , बहुत ही भयावह लग रही थी , वह चीख -चीखकर कह रही थी -इसका मतलब तुम लोगों ने मुझे धोखा दिया मुझसे झूठ बोला , मुझसे झूठ बोलकर ,मुझे यहां बुलाया गया , बुआ जी ने तो मुझे बताया था , कि प्रीति अब नहीं रही , उसकी आत्मा की शांति के लिए कुछ पूजा करनी है , जबकि वह तो जिंदा है और मेरे सामने बैठी है और तुम सब लोग मिले हुए हो ,मुझसे झूठ बोल रहे हो, कहते हुए उसने, करण से झटके से अपना हाथ छुड़ाया और पास में से ही कोई पत्थर उठाकर, प्रीति की तरफ फेंक कर मारा , ताकि उसे विश्वास हो जाए कि वो भूत नहीं, वरन जिंदा है। पत्थर प्रीति के माथे पर लगा , छोटा अवश्य था किंतु तेज लगा , जिसके कारण प्रीति के माथे से खून बहने लगा। तब प्रेत की तरफ देखकर गौतमी बोली - मेरा कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हुआ , देख क्या रहे हो ?अपना कार्य पूर्ण करो ! मार दो ! इस औरत को , यह मेरी दुश्मन है। मैं इसे, एक पल भी सहन नहीं कर सकती।
मैं तुम्हारा ग़ुलाम नहीं, उस तांत्रिक का गुलाम हूं , तुम उनकी शिष्या हो ,इस नाते तुम्हारे कहेनुसार मैं कार्य कर सकता हूँ। कहते हुए ,वो प्रीति की तरफ बढ़ा , उससे पहले ही तांत्रिक ने, मंत्र पढ़कर सरसों के दाने उसके ऊपर फेंक दिए , जिससे उसे बहुत जलन होने लगी। उधर मालिनी भी मन ही मन कुछ बुदबुदा रही थीं , उन्होंने प्रीति के चारों तरफ एक सुरक्षित कवच बना दिया था।

