Shrapit kahaniyan [part 117]

तुम्हारी कहानी, अब कैसी चल रही है ?आज प्रभा ने सुबोध से पूछा।

 मेरी कहानी की नायिका, अपने दुश्मनों से बदला लेती है ,जिसने उन्हें मारा है , सरेआम बेइज्जत किया है , उनसे बदला ले रही है। मैंने तो कहानी लिखना ही छोड़ दिया था किंतु जब तुमने, उस कहानी को आगे बढ़ाने के लिए कहा , तब मैंने फिर से , लिखना आरंभ किया।

कैसे न कहती ? तुम्हारी कहानी की नायिका जिंदा है और अपने दुश्मनों से बदला लेती है किंतु असल में जिसकी यह कहानी चल रही थी वह कात्यायनी मर चुकी थी। तुम्हारी कहानी के कारण , उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिली यानी वह मरने के पश्चात भी , अपना बदला लेने के लिए तत्पर थी। जैसे कि तुमने मुझे बताया था। मैं अस्पताल में ,उस लड़की को देखने गई थी , वह  सशरीर गायब थी। उसके शरीर का किसी ने अंतिम संस्कार ही नहीं किया था। अपना बदला लेने के लिए ,उसे शरीर की आवश्यकता थी इसीलिए वह वहां से गायब हो गई, मैं समझ गई थी ,उसे  मुक्ति नहीं मिलेगी ,जब तक कि वह अपना बदला नहीं ले लेती। 


इसमें हम बदला लेने की भावना न रखकर , क्षमा की भावना भी तो रख सकते थे। मृत्योपरांत उसके परिवार को उसका शरीर मिला और उन्होंने उसका'' दाह संस्कार'' कर दिया, और उस आत्मा ने अपने दुश्मनों को क्षमा कर दिया।  इस कहानी को हम इस तरह भी तो लिख सकते थे , किंतु तुम्हारे कहने पर मैंने, यह'' बदले की भावना ''से ओत -प्रोत  कहानी बनाई है। ऐसा क्यों ? सुबोध ने प्रभा से प्रश्न किया। 

वह इसीलिए , उसके शरीर के गायब होने से पहले ,एक बार मैं ,तुमसे बिना बताये , पहले भी उसे देखने गई थी। उसका तन जगह-जगह से जख्मी था। अब आप ही सोचिए, एक लड़की सुनसान सड़क पर ,रात्रि में अकेली जा रही है। एक तो रात्रि ,ऊपर से उस सड़क का सूनापन ,वह तो पहले से ही डरी हुई होगी , न जाने किन परिस्थितियों में, किस मजबूरी  से वह नौकरी के लिए बाहर निकली होगी। ऐसे में उसे छह -सात  लोग मिल जाते हैं या तीन -चार लोग मिल जाते हैं। उनसे सहयोग की उम्मीद तो, वह कर नहीं सकती , बदले में उसे भागकर, दौड़कर ,छुपते -छुपाते अपना बचाव करना पड़ जाता है। ऊपर से बारिश भी हो रही है, उसे घर जाने की भी जल्दी है। उन लोगों से बचने के लिए न जाने कैसे ?उस खड्डे में गिरी होगी। रात भर उस बारिश में भीगती रही होगी, तड़पती रही होगी। क्या उन्हें तनिक भी उस पर तरस नहीं आया ? बेचारी भूखी ,प्यासी रही होगी सुबह से काम पर निकली, रात को अपने घर नहीं पहुंची ,उसके घरवालों का क्या हाल हुआ होगा ? शराब पीकर रात में लड़कियों को छेड़ना ,उन पर फ़ब्तियाँ  कसना , क्या यही एक पुरुष जाति का कार्य है। 

वह उसके अंदर सुरक्षा की भावना भी, तो पैदा कर सकता था , ऐसे में उसे सहारा देकर, सुरक्षित उसके घर भी तो पहुंचा सकता था उसने ऐसा क्यों नहीं किया ? तब वही क्यों क्षमा करें ? क्यों न ,अपना बदला ले ?आप उस नजरिए से भी तो सोचिए। पुरुष हो या स्त्री, लिंग भेद तो , बाद में देखा जाता है ,सबसे पहले तो उन्हें इंसान होना चाहिए। पुरुष, स्त्री को ,इसी दृष्टिकोण  से क्यों देखता  है ? उसने एक भाई बनकर उसे सहारा क्यों नहीं दिया ,उसकी सुरक्षा क्यों नहीं की। एक पिता की तरह उसके सर पर हाथ क्यों नहीं फेरा ? उसका हाथ उसके सीने पर ही क्यों गया ? वह इसलिए कि वह उसकी अपनी बेटी नहीं थी ,अपनी बहन नहीं थी। आप उसकी तड़प को समझिए। उसने उस समय परिस्थिति को  कैसे झेला  होगा ? आप सुबह काम पर निकलते हैं ? शाम को उम्मीद होती है, मैं घर जाऊंगा, गरमा -गरम खाना खाऊंगा ,आराम करूंगा। 

एक लड़की सुबह अपनी मजबूरी में घर से काम से निकलती  , न जाने कितनों ने ,उस पर फ़ब्तियाँ कसीं ?न जाने कितने  उसे छेड़ने का बहाना खोजते  हैं ?दिनभर में ,एक बेचारी लड़की क्या -क्या नहीं झेलती ?कभी बॉस से डांट खाती हैं ,कभी अपने मान की रक्षा को बनाये रखने के लिए, न जाने कौन से यत्न करतीं हैं ?नौकरी का कार्यभार ,ऊपर से अपने मान की रक्षा ,परिवार की परेशानी ,न जाने उसे, क्या -क्या झेलना पड़ जाता है ?ऐसे में ,तब भी वो अपने घर में सुरक्षित नहीं पहुंच पाती  है। ये दंड उसने ही क्यों झेला ?वो ही ये दंड झेलने पर मजबूर क्यों हुई ?उन्हें भी तो दंड मिलना चाहिए ,जिन्होंने उसे मरने पर मजबूर कर दिया ,उसके सामने ,ऐसी परिस्थितियाँ आई ही क्यों ?उसे  समय से पहले ही ,इस जीवन से जाना पड़ा। 

तुमने तो बहुत अच्छे से समझाया ,उसके दर्द और उन परिस्थितियों को महसूस किया। मैं कात्यायनी की कहानी लिख तो रहा था किन्तु उसे इस तरह से महसूस नहीं कर पा रहा था। अब इस कहानी को मैं और अच्छे से लिख सकूंगा। वैसे ये मेरी कहानी ,अपने अंतिम पड़ाव पर ही है। मुझे उम्मीद है ,कात्यायनी को ,उसके दुश्मनों से बदला लेकर ,उसके मन को सुकून मिलेगा और उसकी आत्मा को शांति भी अवश्य ही मिल जाएगी। अब तुम क्या सोच रही हो ?प्रभा को सोचते देखकर ,सुबोध ने पूछा। 

यही ,हम लोग किसी की ज़िंदगी को कितना भी संवारने का प्रयास कर लें ?किन्तु उसके अपने कर्म भी तो ,उसके संग चलते हैं। यही सोच रही हूँ ,पता नहीं ,प्रीति के यहाँ क्या हो रहा होगा ?करण ने प्रीति के साथ जो भी किया अच्छा नहीं किया ,उस विवाह के पीछे उसका स्वार्थ छुपा हुआ था। वो तो अच्छा है ,वो लड़की स्वभाव से अच्छी है। किसी का बुरा नहीं करती, न ही सोचती है , उसके इसी व्यवहार के कारण उसकी सास और उसके पति को आत्मग्लानि  महसूस हुई , उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, यह भी अच्छा है उन्होंने अपनी गलती को स्वीकार तो किया किंतु बहुत से लोग ऐसे हैं ,गलतियां करके भी मुकर जाते हैं। 

तब क्या प्रीति ने उन लोगों को माफ कर दिया ?

 उन लोगों को अपनी गलती का एहसास हो गया, और अपनी गलती के लिए क्षमा भी मांगते हैं, प्रीति ने भी उन्हें शीघ्र माफ कर दिया, अब वह उनके साथ खड़ी है। चलो !अब सो जाते हैं , रात्रि को जो भी हुआ होगा कल पता चल जाएगा कहकर प्रभा सोने चली गई। 

उधर मालिनी जी ने प्रीति को , अपने मंत्रों के कवच से सुरक्षित कर दिया था। प्रेत प्रीति पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ता है, किंतु उससे पहले ही तांत्रिक उसे पर अभिमंत्रित सरसों के दाने फेंक देता है , जिसके कारण वह चीखता  है। उस सुनसान शमशान में , उसकी चीख दूर तक जाती है। वह फिर से प्रीति को पकड़ने के लिए आगे बढ़ाने का प्रयास करता है ,फल स्वरुप उसका वही हश्र होता है।

तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा , तेरे इन छोटे-मोटे मंत्रों से मेरा कुछ नहीं होगा , जिसने भी मुझे यहां भेजा है उसकी शक्तियां तुझसे बहुत अधिक हैं। मैं भी कोई छोटा-मोटा प्रेत नहीं हूं, कह कर उसने अपना विशाल का डरावना रूप दिखाया। तांत्रिक फिर से, आंखें बंद करके मंत्र उच्चारण करने लगा। उसके मंत्रों के कारण में प्रेत आगे नहीं बढ़ पा रहा था। 

मैं तुझे यही भस्म कर दूंगा तांत्रिक क्रोधित होते हुए बोला , तू यहां से चला जा वरना मैं तुझे अपनी कैद में  कर लूंगा। 

 मैं अपना उद्देश्य पूर्ण किए बिना कैसे जा सकता हूं ? यदि मैं चला भी गया, तब वह मुझे भस्म करने का प्रयास करेगा। या फिर मुझे उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोबारा भेजेगा।

इसीलिए तो हमने उस व्यक्ति को भी बुला लिया है जिसका कार्य तुझे करना है , यदि वही तुझसे  इस कार्य को करने के लिए मना करें ,तब भी क्या तू ?वही कार्य करेगा। 



मैं जानता हूं, यह कार्य जलन की भावना से किया गया है , अभी भी उन्होंने मुझे यही आदेश दिया है कि मैं इसे मार डालूं , अभी वह इंकार करती हैं तो मैं यहां से चुपचाप चला जाऊंगा। 

अब सभी की दृष्टि गौतमी की तरफ घूम जाती है , किंतु गौतमी तो क्रोध में ,सभी को घूर रही थी , और बोली- मैं कभी भी इसे आज्ञा नहीं दूंगी, तुम सभी लोगों ने मुझे धोखा दिया है , मुझसे झूठ बोला था ,झूठ बोलकर मुझे बुलाया गया। 

तुम कौन सा दूध की धुली हो ? उस बेचारी बच्ची ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? तुम्हारा गुनहगार तो करण है ? वह लड़की तो तुम्हें जानती भी नहीं, उसका बेचारा बच्चा जिसको तुमने मार दिया उससे तुम्हारी क्या दुश्मनी थी ? क्रोधित होते हुए ,मालिनी जी ने गौतमी से प्रश्न किया।

हां, मैं मानती हूं यही मेरा गुनहगार है तभी तो मैं इससे बदला ले रही थी , इसीलिए मैंने इसके बच्चे को भी मार दिया , इसकी जिंदगी में यह आ गई है अब यह भी नहीं रहेगी। 

जैसी यह है वैसी तुम कभी भी नहीं बन सकतीं हो , इसके व्यवहार ने ही तो हमें ,हमारी गलतियों का एहसास कराया, कि हम गलत थे , तुम्हारे कारण मैं भी, गलत रहा पर चल दिया था यही तो संगत का असर होता है, तुम्हारे साथ रहकर मैं गलतियों पर गलतियां किये  जा रहा था , इसके साथ रहकर मुझे उन गलतियों का एहसास हुआ। यही तुम में और इसमें फर्क है, अबकि बार करण भी चुप नहीं रहा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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