Bhul -bhulaiya

असली -नकली की पहचान हो, कैसे ?

 सब असली ही दिखता, नजर आता हैं।    

समय और मौके पर, अपना रंग दिखलाता है। 

नकली भी ,अपने को असली कहता नजर आता है।



 भीड़ भरी ,इस दुनिया में ,कुछ लोग लड़ रहे थे। 

 एक -दूजे को खड़े, नकली -नकली कह रहे थे।

 इस नक्कालों की दुनिया में, 

''नक्कालों  से कैसे रहें  ,सावधान ?समझा रे थे ?

जो कभी, नकली नजर आता था ,

संयोग से वो, हर सम्भव साथ निभाता था। 

असली के धोखे में ,असली ही,मौक़े से भाग जाता था।

असली - नकली की भूल -भुलैया में खो गए ,हम।

अब बचना कठिन नजर आता है। 

 इंसान ,असली बन ही रहता  है।

'आइना'' कब झूठ बोलता  है ?

आओ !''आइना'' दिखा दें , हम ,

असली की ,असली से पहचान कर दें ,हम।  

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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