Shrapit kahaniyan [part 121]

नर्स के चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे थे। वो करण की तरफ सशंकित नजरों से देख रही थी। जहाँ तक वो , समझ रही थी ,इस व्यक्ति को शायद बहुत कुछ पता है ,इस लड़की के अचानक मरने का कोई  राज तो अवश्य है। यही इस लड़की को, इस हालत में लेकर आया था। वो गौतमी की मम्मी से, करण के विषय में ,कुछ कहना चाहती थी किन्तु  उनके दुःख के कारण ,अभी उसे मौका नहीं मिला था। अस्पताल की कुछ औपचारिकताएं पूर्ण करने के लिए करण, काउंटर पर जाता है। डॉक्टर गौतमी को घर ले जाने की अनुमति दे देते हैं। तब गौतमी के पिता, करण से गाड़ी मंगवाते हैं। करण गाड़ी ले आता है , इस बीच नर्स को मौका मिल जाता है और वह बताती है -यह व्यक्ति अवश्य ही कुछ छुपा रहा है , आपकी बेटी के विषय में ,यह बहुत कुछ जानता है। मैंने उसके कमरे में किसी डरावनी परछाई को देखा था किंतु डॉक्टर इन बातों में विश्वास नहीं करते इसीलिए मैं, कुछ नहीं कह सकी। मुझे तो लगता है ,'तंत्र-मंत्र 'या 'भूत- पिशाच 'का चक्कर है वरना इतनी शीघ् आदमी कैसे कमजोर पड़ सकता है ,उसका रक्त कैसे सूख सकता है ?


इस बात का गौतमी की मम्मी ने भी समर्थन किया , मुझे भी यही लगता है, दो  दिन पहले तो मेरी बच्ची बिल्कुल स्वस्थ थी, अवश्य ही किसी कार्य से यहां आई होगी। यह जब से मेरे गांव में आया था , तब से मेरी बेटी के पीछे पड़ा है। अब उन्हें करण में ,बुराईयां  ही बुराइयां नजर आ रही थीं।  इसके कारण ,मेरी बेटी ने विवाह भी नहीं किया। न जाने, इन दो दिनों में, उसने क्या झेला होगा ? मेरी बेटी को खा  गया , अपने आप तो घर बसा लिया ,किंतु मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ा और ना ही उसका घर बसने दिया। करण जब गाड़ी लेकर आया तो गौतमी की मम्मी ,उसे खा  जाने वाली नजरों से घूर रही थीं। उनका बस चलता तो वह करण को जेल में भिजवा देतीं  किंतु उसके विरुद्ध उनके पास कोई सबूत भी तो नहीं है। तब भी क्रोधित नजरों से उन्होंने पूछा -मेरी गौतमी को ऐसा क्या हुआ था जो दो  दिन में ,उसकी इतनी हालत खराब हो गई कि उसको  मृत्यु को गले लगाना पड़ा। 

मां जी !यह समय यह बातें करने का नहीं है , पहले गौतमी को लेकर चलते हैं। कहकर करण गाड़ी में बैठ गया और उसके माता-पिता भी। 

तब गौतमी के पिता ने करण से पूछा -तुम हमारे साथ कहां जा रहे हो ? अब तुम अपने घर वापस जाओ !

जी नहीं , अंकल अब आप लोग मेरे साथ चल रहे हैं। 

यह तुम क्या कह रहे हो ? क्या कोई मजाक लगा रखा है, हम भला तुम्हारे घर क्यों जाएंगे ?गौतमी की मम्मी ने पूछा और बोलीं  - हम अपनी गौतमी को लेकर अपने साथ , अपने गांव जा रहे हैं। 

गाड़ी चलती रही और करण भी चुप हो गया , इस समय वह उनसे कुछ भी, बहस नहीं करना चाहता था। कुछ देर के पश्चात ,गाड़ी करण के घर के बाहर रुकी। वहां पहले से ही ,शवयात्रा की सम्पूर्ण  तैयारियां हो चुकी थीं।

 किसी अनजानी जगह पर ,अनजाने घर में, गौतमी की मम्मी को अच्छा नहीं लगा ,वह समझ नहीं पा रही थीं , यह क्या करना चाह रहा है ? उन्होंने पहली बार करण का घर देखा था, गौतमी के शव को अंदर ले जाया गया और उसको किसी दुल्हन की तरह ,अच्छे से सजाया गया। करण ने उसकी मांग भरी ,करण उसकी मांग भरते हुए रो रहा था और बोला - काश ! तुम जिद ना करतीं , तुम कोई योजना ना बनातीं , तब भी हम दोनों साथ रहते। शायद विवाह  करके भी ,तुम जिंदा रहतीं। प्रीति भी यह सब देख रही थी उसने करण से कुछ भी नहीं कहा। प्रभा और मालिनी जी  भी आ चुके थे किंतु प्रभा नहीं समझ पा रही थी अचानक यह गौतमी को क्या हुआ ? वातावरण बहुत गमगीन था इसीलिए किसी को किसी से कुछ पूछने  और कहने का साहस नहीं हो रहा था। गौतमी की शव यात्रा में सभी शामिल हुए , और चुपचाप जाने  भी लगे। 

गौतमी के मम्मी -पापा ने भी सोचा, अब तो गौतमी  रही ही नहीं ,कुछ भी कहने सुनने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उसके माता-पिता भी ,घर से सुबह के निकले हुए थे ,खाना खाने की किसी को चाह नहीं थी किंतु थकावट अवश्य हो रही थी , वहां पर जितने भी लोग मौजूद थे सभी के लिए करण  ने चाय बनवाई। गौतमी की मम्मी की ,चाय पीने की इच्छा नहीं थी किंतु करण ने उनसे विनती की - यदि आप इसी तरह दुखी रहेंगीं  , कुछ खाएंगी -पियेंगीं  नहीं तो बीमार पड़ जाएंगीं। अभी गौतमी को गए हुए, ज्यादा समय नहीं हुआ है, यदि वह अपनी मम्मी को इस तरह परेशान देखेगी, तो उसकी आत्मा को भी दुख पहुंचेगा।

तुम्हें कब से उसकी चिंता होने लगी ? यदि तुम्हें उसकी चिंता होती तो....  जो कार्य तुमने उसके मरने के पश्चात किया ,वह जीते जी भी तो कर सकते थे। यह कार्य करके तुम, मेरी नजरों में महान नहीं बन सकते , उसकी मम्मी ने क्रोधित होते हुए ,करण को जवाब दिया। 

मैं मानता हूं ,हम लोगों से कुछ गलतियां हुई हैं और आपके मन में भी अनेकों  को प्रश्न हैं , मेरे घर आप पहली बार आई हैं ,फिर न जाने आपका कब आना हो ? इसीलिए आपके मन में , मेरे प्रति जो घृणा है , वह मैं यहीं समाप्त कर देना चाहता हूं , कहते हुए करण ने, गौतमी की मम्मी और पापा दोनों को ,एकांत में ले जाकर , अपनी और गौतमी की सम्पूर्ण  सच्चाई उन्हें बता दी , और उसकी मृत्यु का कारण भी उन्हें समझा दिया , जिसे सुनकर दोनों ही आश्चर्यचकित रह गए , इतने दिनों से हमारी बेटी, अकेले ही न जाने क्या-क्या कर रही थी और क्या-क्या झेल रही थी ? हमें कुछ भी नहीं मालूम !

करण की बातों को सुनकर, उसके पिता न बोले -यदि तुम्हारी बातों में तनिक भी सच्चाई है , तब जितनी गलती हम तुम्हारी समझ रहे थे ,उतनी ही हमारी बिटिया भी जिम्मेदार है। खैर अब वह नहीं रही उसके किए की सजा उसे मिल चुकी है , अब भगवान से यही दुआ करें, कि उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें जीते जी तो वह बहुत परेशान रही ,कम से कम मरणोपरांत तो उसे शांति मिले। तुमने उसकी आखिरी इच्छा पूर्ण करके, हम पर बहुत बड़ा एहसान किया है। तुम अपने जीवन में खुश रहो !अब हम चलते हैं , हमारे मन में जो भी गलतफहमी थी ,वह तुमने दूर कर दी, अब हमारे मन में तुम्हारे प्रति किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं है। 

प्रभा ने घर पर आकर सुबोध को गौतमी के विषय में बताया ,  उसने रास्ते में ही मालिनी जी से, उसके विषय में सब पूछ लिया था , सुनकर सुबोध को बहुत बुरा लगा , और बोला -कभी-कभी इंसानअपने कर्मों को, अपने ऊपर ही झेलता है, उसने प्रीति के लिए बुरा सोचा था और उस अग्नि में स्वयं ही जल गई। उसके लिए हमें दुःख है तो साथ ही ,प्रीति के सर से वो डरावना मौत का साया ,हट गया इस बात की ख़ुशी भी है।  

प्रीति के सर पर कोई मौत का साया नहीं था , वह तो उसके लिए गौतमी द्वारा भेजा गया था और उसी साये ने  गौतमी की जान भी ले ली। अब हम तो ईश्वर से यही प्रार्थना कर सकते हैं, कि गौतमी की ''आत्मा को शांति मिले'' और प्रीति का घर फिर से बस जाए। अब आप मुझे बताइए ,अपने शेफाली के विषय में क्या सोचा ?

सोचना क्या है? मैंने तुम्हारे कहने पर ,उस श्राप को अपनी ताकत बना लिया और शेफाली को लेकर एक कहानी लिखी, जिसमें वह दस'' प्रेमी जोड़ों ''को मिलवाती है, मेरी कहानी के मुताबिक उसका यह कार्य पूर्ण हो गया। जब उसका यह कार्य पूर्ण हो गया तो एक रात्रि, वह मुझसे मेरे स्वप्न  में मिलने आई थी। उसने मुझसे कहा -कि हमारे जीवन में जो भी घटित होता है या हो रहा है, वह पहले से ही निश्चित है , इसमें हम कुछ बदलाव नहीं कर सकते। श्राप , अभिशाप जो भी हमारे जीवन में आता है ,चाहे वह नकारात्मकता लेकर आए किंतु हम अपनी सोच अपने अच्छे व्यवहार से उसको सकारात्मक बना सकते हैं। जिस तरह तुमने इस कहानी के श्राप को , मेरे लिए ,आशीर्वाद में बदल दिया। हमारे जीवन का यही लक्ष्य होना चाहिए , हमारे जीवन में बहुत सी ऐसी नकारात्मक चीजें  आ जाती हैं ,जिससे हम घबरा जाते हैं , किंतु इस नकारात्मकता को हमें सकारात्मकता  में बदलना है , जिस तरह तुमने अपनी पत्नी के सहयोग से यह कर दिखाया और मुझे मेरे'' श्रापित जीवन'' से मुक्ति दिलाई। आगे भी इसी तरह अनेक कहानियां लिखते रहना जिनका उद्देश्य किसी का भला करना हो। 


प्रभा , आश्चर्य  से बोली -क्या वह जानती थी ? कि तुमने मेरे कहने पर यह कार्य किया , तभी इठलाते हुए बोली-यह तो जग जाहिर है ,' एक कामयाब पति के पीछे उसकी पत्नी का ही हाथ होता है।'' 

दोस्तों ! सुबोध तो अब नई-नई कहानी लिखता रहेगा , एक अच्छी सोच और नई शुरुआत के साथ किंतु मैं अपनी यह कहानी , अब यहीं पर समाप्त करती हूं , इस कहानी से,मैं  इस प्रकार जुड़ चुकी थी , कब इसके अंत का समय आ गया, मुझे आभास ही नहीं हुआ। स्वयं इस कहानी का अंतिम भाग लिखते हुए ,मुझे दुख का आभास हो रहा है क्योंकि मैं ,इस कहानी के किरदारों से काफी जुड़ चुकी थी। आप लोगों ने अपना इतना सहयोग और समय दिया, उसके लिए आप सभी लोगों का तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद ! मेरी आगे और भी कहानी होगीं उन्हें भी, इसी तरह अपना प्यार देते रहिएगा। आपका बहुत -बहुत धन्यवाद !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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