Raat ka darr

मैंने दादा जी से , रात कितनी बार कहा था ?चलो !चलकर डॉक्टर को दिखा लेते हैं ,लेकिन इन्होंने मेरा कहा नहीं माना , क्रोधित और उत्तेजित होते हुए ,जाह्नवी अपनी मम्मी से बोली - अब बड़े हैं, अपनी चलाएंगे बच्चों का तो कहना मानना ही नहीं है , चिंतित और परेशान होते हुए टहलने लगी।

 मां ने बेटी को ,इस तरह परेशान होते हुए देखकर बोली -अब जो होना होगा, वह तो किस्मत के हाथ है ,अब इसमें हम कुछ नहीं कर सकते , हमारे वश में जो होता है, हम वही तो कर सकते हैं ,अब तुम्हारे इस तरह परेशान होने से दादा जी ठीक तो नहीं हो जाएंगे , थोड़ा धैर्य बना कर रखो !


किस तरह धैर्य, बनाकर रखूँ , शाम को ही मुझे लगा था, इनके चेहरे से ही , पता चल गया था, कुछ गड़बड़ जरूर है।  मैंने कहा था-दादाजी कुछ परेशानी है, तो डॉक्टर को दिखा लाते हैं। किंतु बोले -'नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,अभी टहल कर आया हूं थोड़ी थकान है।' और अब देखो ! क्या हालत हो गई है ? वह तो अच्छा हुआ ,मैं दादी के कहने पर यहां उनके लिए दूध रखने चली आई, देखा तो..........  यह तो बिस्तर में पड़े काँप रहे थे। मैंने पूछा भी , दादाजी ! आप ठीक तो है ना......  तो कहने लगे -हां ,ठीक हूं लेकिन थोड़ी सी ठंड लग रही है। तब भी मैंने इनसे कहा था अभी समय है चलिये ! डॉक्टर को दिखा लाते हैं।

 तब भी बोले -नहीं नहीं ,तू मुझे कंबल उढ़ा  दे। सुबह तक ठीक हो जाऊंगा। मैंने एक गोली ले ली है और अब आप ही देख लीजिए ,क्या हालत है ? 104 बुखार है , और अब रात्रि  का 1:00 बज रहा है। इस समय कोई डॉक्टर भी नहीं मिलेगा ,मेडिकल स्टोर से एक गोली लाई थी ,वह भी दे दी ,कोई फर्क नहीं लगा। अब रात्रि का समय है। 

दादी भी परेशान होते हुए बोली -बस किसी तरह से यह रात्रि कट जाए , दवाई तो उन्हें दी है , और उससे उन्हें नींद भी आ गई है। यह बीमारियां भी ना रात्रि में ज्यादा आती हैं , जबकि जब पता होता है कि रात्रि के समय में, सब नींद में होते हैं ,डॉक्टर भी नहीं मिलेंगे। तब यह ज्यादा प्रभावशाली हो जाती हैं। 

रात्रि ना हुई ,कोई चुड़ैल या आत्मा हो गई, रात्रि ईश्वर ने बनाई किस लिए है ? कि इंसान दिन भर कार्य करके , रात्रि  को चैन से सो सके, आराम कर सके किंतु ऐसे समय में यह रात्रि कितना डरा देती है ? अपने दादाजी के माथे पर गिले पानी की पट्टी लगाते हुए, जाह्नवी बोली। तब उसने घड़ी में समय देखा ,अब रात्रि के 2:00 बज रहे थे उसने फिर से दादा जी  का तापमान जांच किया ? और खुश होते हुए बोली- अब तो 101 टेंपरेचर रह गया है।

 तेज ज्वर में दादा जी की आंखें नहीं खुल रही थीं  किंतु जब उनका ज्वार थोड़ा कम हो गया है ,तब उन्होंने आंखें खोल कर देखा, उनका पूरा परिवार उनके पास ,उनकी चिंता में खड़ा था। उनका बेटा ,उनकी बहू ,उनकी पत्नी ,उनकी पोती तो उनकी सेवा ही कर रही थी , उन सबको अपने सामने इस तरह देखकर, वह प्रसन्न होकर मुस्कुरा दिए और बोले -अब मैं ठीक हूं। 

कैसे ठीक है ?अभी भी पूरी तरह से ,आपका बुखार नहीं उतरा है , मैंने आपसे कल ही कहा था- कि डॉक्टर के जाना है किंतु आपने इनकार कर दिया , आपको पता है, सारी रात हमने कैसे डर-डर कर गुजारी है ? कहीं आपको कुछ हो जाता तो......  दादाजी को डांटते  हुए , जाह्नवी  रोने लगी। दादाजी समझ रहे थे, यह मुझसे  बहुत अधिक प्यार करती है , इसे मेरी फिक्र हो रही होगी और इसी डर के कारण ,अब मुझे यह डांट रही है। 

उसकी प्यार भरी डांट को सुनकर, दादाजी मुस्कुरा दिए और बोले -अब मुझे भूख लगी है ,चाय के साथ कुछ बिस्किट खाऊंगा। कहकर उन्होंने उठने का प्रयास किया ,जाह्नवी  ने उन्हें सहारा देकर बैठाया तब तक उसकी मम्मी चाय और बिस्किट ले आई थी। घड़ी में समय देखा तो , सुबह के 5:00 बज रहे थे , अब तो खुश होकर बोली -कुछ  देर पश्चात डॉक्टर का क्लीनिक भी खुल जाएगा। 

अब कोई चिंता की बात नहीं , दादी जाह्नवी से बोली। यह तो'' रात का ही डर'' था, क्योंकि उस समय ना ही कोई वाहन मिलता है और ना ही डॉक्टर मिलते हैं। वह ड़र अब निकल गया , तब दादी जानवी से बोली -जा बेटा ! तू सारी रात जगी है , अब तुम जाकर सो जाओ ! अब तेरे दादाजी को ,मैं संभाल लूंगी। 

जाह्नवी  हंस कर बोली -आप कैसे संभालेंगी , आप भी तो, रात भर की जगी हुई हो। 

मैं कैसे सोती ? रात को इन्हें इतना तेज ज्वर था, न जाने कैसे -कैसे रात्रि बीती है ? पूरा परिवार जगा  था थोड़ा तुम सब भी आराम कर लो ,तब डॉक्टर के चलेंगे।

 दादाजी ने सबको आश्वस्त किया कि अब मैं ठीक हूं। तब सभी जाकर आराम करने लगे। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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