मालिनी की बातों से गौतमी को ,अपनी गलती का एहसास तो होता है, किंतु वह जीवन से निराश हो जाती है और न जाने क्या-क्या सोचने लगती है ? उसे लगता है, सब प्रीति से ही प्यार करते हैं ,मेरे साथ तो कोई भी नहीं है ,यहां तक कि करण भी मेरे साथ नहीं है। जब प्रेत 'नरबलि' मांगता है, तब वह निराशा से भरी गौतमी उससे कह देती है - कि तुम मेरा ही रक्त पी लो ! वह इतना भी नहीं समझ पाई कि उसने कितनी बड़ी मुसीबत को दावत दे दी उसके इतना कहते ही, प्रेत उससे लिपट गया और उसका रक्त पीने लगा इससे पहले कि वह तांत्रिक या मालिनी जी कुछ कर पाते वह वहां से गायब हो गया। करण ने घबराहट में, गौतमी को अस्पताल में भर्ती कराया, और उसके होश आने की प्रतीक्षा में था तभी नर्स , गौतमी के कमरे से चीखते हुए बाहर निकली और उसने करण को बताया कि उसने खिड़की के शीशे में से, किसी डरावनी परछाई को देखा है।
करण समझ गया यह और कोई नहीं ,वही प्रेत है , उससे कैसे पीछा छुड़ाना है ? यह भी तो वह नहीं जानता , तभी उसे स्मरण हुआ, प्रीति ने घर के मंदिर में से सिंदूर लाकर ,मम्मी की उस प्रेत से रक्षा की थी। उसने नर्स से उस अस्पताल के मंदिर के विषय में जानना चाहा कि मंदिर किधर है ?
नर्स को लगा यह पागल हो गया है ,उस लड़की को बचाने की बजाय ,मंदिर में जा रहा है ,उसने करण को मंदिर तो बता दिया और स्वयं डॉक्टर के पास दौड़कर गयी।
करण दौड़कर मंदिर से, सिंदूर ले आया और गौतमी के कमरे में पहुंच गया ,उसने देखा ,गौतमी निर्जीव सी पड़ी है ,गौतमी !अब तुम फ़िक्र मत करो !मैं अब तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा ,मैं अब इस प्रेत को छोडूंगा नहीं ,तब तक नर्स भी डॉक्टर को लेकर आ गयी थी।
आते ही ,डॉक्टर ने पूछा ,आप यहाँ क्या कर रहे हैं ?
जी सिस्टर ,ने ही मुझे बताया था कि कोई यहाँ पर है ,डॉक्टर ने नर्स की तरफ देखा।
उसने यह बात स्वीकार की और बोली -डॉक्टर साहब ! मैं डर गयी थी। मैंने यहाँ खिड़की पर एक भयंकर परछाई देखी थी।
ये क्या बेहूदगी है ?तुम्हें मरीज़ की देखभाल के लिए भेजा गया था ,या ये बेतुकी और बेहूदा बातें फैलाने के लिए......
तब बाहर भी ,कुछ लोगों के चलने की आहट सुनाई दी ,तब करण बोला -डॉक्टर साहब !आप गौतमी की जांच कीजिए, मुझे लगता है इसके घर वाले आ गए ,मैं जरा देख कर आता हूं कहकर वह कमरे से बाहर आ गया।
वास्तव में ही गौतमी के माता-पिता , उसकी बीमारी की खबर सुनकर आए थे आते ही , उसकी मम्मी ने करण से प्रश्न किया, कहां है ?मेरी बच्ची !
जी अंदर है डॉक्टर साहब जांच कर रहे हैं।
अभी 2 दिन पहले मैंने उसे देखा तो वह तो पूर्णतः स्वस्थ थी, अचानक उसे क्या हो गया ?
आप इतनी दूर से चलकर आई हैं ,आराम तो कीजिए ,बैठिए तो सही ! अभी डॉक्टर साहब ! देखकर बताते हैं। करण उन्हें पीने के लिए ,पानी की बोतल देता है और वे पानी पीते हैं।
कुछ देर की प्रतिक्षा के पश्चात डॉक्टर साहब भी आते हैं , सभी खड़े होकर डॉक्टर साहब , की तरफ देखते हैं किंतु डॉक्टर साहब का चेहरा देखकर, सभी को कुछ अनिष्ट की आशंका होती है। गौतमी की मम्मी से रुका नहीं गया और बोलीं डॉक्टर साहब -बताइए ना, मेरी बच्ची को क्या हुआ है ?
कुछ समझ नहीं आ रहा, अचानक से इतने खून की कमी कैसे हो गई ? अभी दो बोतल चढ़ाई थीं किंतु अब जाँच किया है तो अभी भी , उस रक्त का भी जैसे कोई लाभ नहीं हुआ। ऐसा लगता है ,जो रक्त हमने चढ़ाया है उसने भी असर नहीं दिखाया ऐसा लग रहा है ,जैसे रक्त चढ़ाया ही नहीं गया।
तभी नर्स बोली -वो ही, पी गया। तभी उसे लगता है शायद, मैंने कुछ गलत बोल दिया, तब परेशान होते हुए कहती है -पता नहीं, क्या हो रहा है ? कुछ समझ नहीं आ रहा कहते हुए चली गई।
ऐसा कैसे हो सकता है ? आप हटिये ! मैं देखने जाती हूँ , जब वह अंदर पहुंचती है तो उनकी चीख़ निकल जाती है , सभी उनके पीछे उस कमरे में अंदर आते हैं और वह अपनी बेटी की तरफ अंगुली से इशारा करती हैं। मैंने भी उधर ही देखा, यह देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गया, ऐसा लग रहा था बिस्तर पर जैसे कोई कंकाल पड़ा है , यह रात्रि वाली गौतमी नहीं थी। मैंने डॉक्टर की तरफ देखा ,डॉक्टर ने अपनी गर्दन झुका ली। उसे छूने की इच्छा भी नहीं हुई, छूते हुए भी, उसे डर लग रहा था। दूर से ही मैंने, आवाज़ लगाई -गौतमी ! गौतमी ! किंतु उसने अपनी आंखें नहीं खोलीं। तब मैंने डॉक्टर साहब को आवाज़ लगाई -डॉक्टर साहब जरा देखिए तो...... यह तो, आंखें भी नहीं खोल रही।
डॉक्टर ने गौतमी के नजदीक आकर देखा, जिसका उसे डर था ,वही हुआ , उसकी नाड़ी जांचकर बोला -सॉरी , कह कर बाहर जाने लगा। तभी गौतमी की मम्मी ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली -आप इस तरह कैसे जा सकते हैं ? आखिर मेरी बेटी को हुआ क्या था ? दो दिन पहले तो भली चंगी थी अचानक से इतनी कमजोर और बीमार कैसे हो गई ? डॉक्टर से पूछते -पूछते उन्होंने करण की तरफ भी देखा किंतु करण ने भी नज़रे नीचे कर लीं।

