Bin kahe sab kuchh

यह तो वही बात हो गई ,'' आस  कह  रही श्वास से, धीरज धरना सीख।

                                          बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख।  ''

भला ऐसा भी कहीं होता है , जिस समय इस दोहे की रचना हुई होगी, उसे समय भी धैर्य को धारण करने के लिए कहा गया है। मानव प्रकृति है, ही ऐसी , धैर्य ही नहीं होता। किंतु उस धैर्य की सीमा का भी तो पता नहीं होता , कब तक धैर्य को बनाए रखना है ? प्राचीन समय में भी, लोगों को परिश्रम करना ही पड़ता था  अपने हक के लिए  कमाना पड़ता था। जिन्हें ''बिन मांगे ही सब कुछ मिल जाता था'', उसे बहुत ही किस्मत वाला समझते थे , जो उसके कहने से पहले ही उसका कार्य पूर्ण हो जाता था। किन्तु उन्हें उसकी क़द्र  नहीं होती थी, फिर भी मानव को धैर्य रखने के लिए कहा गया है, इसमें भक्ति भाव जुड़ा है, यदि तेरी प्रभु में श्रद्धा है उसके प्रति प्रेम है, विश्वास है, तो बिन मांगे ही सब कुछ मिल जाता है वरना मांगने से तो भीख भी नहीं मिलती। उस समय व्यक्ति सीधे और सज्जन होते थे मिलजुल कर सभी कार्य निपटा लेते थे किंतु आज के समय में धैर्य के लिए भी, इंसान के पास समय नहीं है। 



आज की परिस्थितियों को देखते हुए लगता है , बिन मांगे, बिन अधिकार जताये, कुछ भी मिलने वाला नहीं क्योंकि आज के समय में मनुष्य इतना लालची और स्वार्थी हो गया है कि दूसरे का हक मारने में तनिक भी संकोच नहीं करता , इसीलिए अपने अधिकार के लिए इंसान को लड़ना पड़ता है, कहना पड़ता है ,तब जाकर भी उसका अधिकार मिले इसमें भी शक है। 

आज की व्यस्ततम जिंदगी को देखते हुए तो,  जब तक बच्चा नहीं रोता ''माँ भी उसे दूध नहीं देती '', बिन कहे कहां कोई कुछ समझ पाता है , और दूसरे के अधिकार में से भी, अपना हिस्सा पाने की लालसा रखते हैं। आज के समय में, तो ईश्वर के सामने भी रोना और गिड़गिड़ाना पड़ता है। पहले प्रभु, भक्त के भाव देखते थे। किसी भी क्षेत्र में चले जाइए बिन मांगे, बिना मेहनत के कुछ भी नहीं मिलता , आज तो हालात यह हैं  रात -दिन इंसान मेहनत कर रहा है , पल भर को भी अपने लिए समय नहीं निकाल पाता है। इतनी मेहनत के बावजूद भी , उसे अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है। 

बिन कहे जो मन को पढ़ लें  -वो  माता-पिता !

बिन कहे जो भाव को समझे -सच्चा आशिक !

बिन कहे जो इशारों को समझ ले -वह सच्चा इंसान !

कभी कुछ शब्दों के मोती बिना कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं, दिल का हाल समझा देते हैं , दिल से निकले शब्द दिल तक पहुंच जाते हैं - अच्छा साहित्य !

बिन कहे दिन भर की थकान उतर जाती है -अच्छी नींद !


उसकी आंखों ने ,न जाने ''बिन कहे क्या कह दिया ''?

क्या कहूँ ? दिल ,ज़िगर सब मैं, उसका ही होकर रह गया।

गया था ,उसकी चाहत को परखने ,

देख उसको ,मोेन होकर रह गया।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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