Shrapit kahaniyan [part 119 ]

 मालिनी जी , करण ,गौतमी और प्रीति को लेकर, शमशान में तांत्रिक के पास जाते हैं, तांत्रिक वहां प्रेत को अपने मंत्रों  से  कैद  कर लेता है। तब गौतमी से कहा जाता है- कि वह अपने शब्दों को वापस ले ले ,और इस प्रेत को आजाद कर दे ,वह अब प्रीति से कोई बदला नहीं लेगा, किंतु गौतमी इस सबसे  इनकार कर देती है। तब मालिनी की उसे समझाती हैं -कि करण की जिंदगी में आने वाली तुम पहली महिला हो , शायद तुम्हारी जान इसीलिए बची हुई है क्योंकि तुमने इससे विवाह नहीं किया। पंडित के कथनानुसार उसके जीवन में पहले आने वाली महिला का ही अंत होना है। प्रीति तो उसके जीवन में दूसरे नंबर पर आई है। यह सुनकर, गौतमी असमंजस में पड़ जाती है। मालिनी जी के शब्दों की भूल -भुलैया में खो जाती है। उसे लगता है ,जो भी यह कह रही हैं ,सही कह रही हैं। उसे इस बात का भी दुख होता है, कि उसने व्यर्थ में ही ,अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली। जितने दिन भी वह जीती, कम से कम अपने करण के साथ तो जी सकती थी।


शायद मालिनी का मंतव्य पूर्ण हुआ , उसने अपनी बातों से गौतमी को, उसकी गलती का एहसास कराया, गौतमी को लगने लगा था। यह बात सही है ,हो सकता है मैं ही ,इसकी जिंदगी की पहली , लड़की हूं। मुझे अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए। अभी वह यह सोच ही रही थी ,तभी उसे स्मरण हुआ, यदि मैं अपनी जिद छोड़ भी देती  हूं , तब भी करण अब मेरा तो नहीं होगा , यह सोचकर ही ,उसका दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया , वह कैसे अपने करण के बिना जिएगी ?अभी तक तो उसके जीवन का उद्देश्य था, कि प्रीति से अपना बदला लेना  है  किंतु यदि वह प्रीति के लिए ,उसे छोड़ भी देती है तब वह खुद कैसे जीएगी ? यह सोचते ही, वह बिखर गई , उसके तो जैसे जीवन का उद्देश्य ही चला गया। इस वक्त उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं थी, तब उसने उस प्रेत को आदेश दिया, तुम इसे छोड़ दो ! मैं तुम्हें अपने वचनों से मुक्त करती हूं। 

नहीं ,इस तरह तुम्हारे वचनों से मुक्ति नहीं होगी, तुम्हारे वचनों में मेरे लिए नरबलि थी, यानी मैं इस स्त्री का भोग करता, अब मैं अपना भोग लिए बगैर नहीं जाऊंगा। 

गौतमी, उसकी बातों से,परेशान हो उठी और बोली -जाकर अपने तांत्रिक से बात करो ! और इसे छोड़ दो ! आगे जो होगा, देखा जाएगा। मालिनी , तांत्रिक और करण सभी अपने उद्देश्य में, अपने को सफल समझ रहे थे इसीलिए मन ही मन खुश भी हो रहे थे। 

नहीं ,मैं इस तरह नहीं जा सकता मैं एक नरबलि के लिए भेजा गया हूं ,मुझे उसका भोग करना है ,प्रीति के बदले में ,मुझे किसी अन्य स्त्री का भोग चाहिए।

तांत्रिक बोला -तुम्हें भोग मिलेगा, यह कहकर उसने एक शराब की बोतल, अपनी थैली में से बाहर निकाल ली और बोला- एक बकरे का अभी हम इंतजाम करवाते हैं। 

नहीं, मुझे नरबलि ही चाहिए , मुझे किसी इंसान के रक्त की प्यास है ,मैं उसी के रक्त से अपनी प्यास बुझाऊंगा। 

अब मैं यहां कहां से, इंसानी रक्त लेकर आऊं , गौतमी बोली -प्रीति के साथ तो उसका परिवार है, उसका पति है, उसकी सास है और इसकी हितेेषी भी यहीं हैं ,मालिनी की तरफ इशारा करते हुए बोली ,किंतु मेरा  अपना कौन है ? मुझे कोई पसंद नहीं करता ,ना ही मैं किसी की पसंद हूं।  इस वक्त वह बुरी तरह अवसाद में घिरी  हुई थी। उसे यह दुनिया ही व्यर्थ नजर आ रही थी।  तभी उसे लगा ,कि इस प्रेत को अपना भोग चाहिए और बोली -यह सब मेरी गलती से हुआ है , मेरे कारण ही तुम्हें जागृत किया गया था ,अब तुम मेरे ही रक्त का भोग ले सकते हो। उसे यह नहीं पता था, कि अवसाद में उसके यह कहे गए शब्द ,उसके लिए कितने खतरनाक हो सकते थे ? उसके इतना कहते ही , वह प्रेत उसके करीब गया और उसका खून पीने लगा। जब तक कोई कुछ सोचता, या  समझ पाता , उस प्रेत ने अपना कार्य कर दिया। गौतमी, चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी , उसे छोड़कर ,फिर वह शराब की बोतल पीने लगा। इससे पहले की तांत्रिक कुछ कर पाता ,वह वहां से गायब हो गया। गौतमी की हालत खराब हो गई, उसमें एकाएक खून की बहुत कमी हो गई।

तांत्रिक ने कहा-, मुझे लगता है ,उस प्रेत ने, हमारी थोड़ी सी लापरवाही का लाभ उठा लिया , वैसे तो उसका कार्य गौतमी की आज्ञा का पालन करना ही था इसीलिए उसने उसकी आज्ञा का पालन किया और इससे पहले कि हम उसे रोकते , उसने हमें मौका ही नहीं दिया क्योंकि वह जानता था ,यहां पर दो लोग ऐसे हैं, जो उसकी  काट कर सकते हैं इसीलिए उसने शीघ्र अति शीघ्र अपना कार्य किया और यहां से गायब हो गया। अब आप इसे शीघ्र अति शीघ्र अस्पताल ले जाइए और इनका इलाज कराइये। 

करण फुर्ती से उठा और गौतमी को गोद में उठाया और श्मशान घाट से बाहर निकलने का प्रयास किया मालिनी जी से प्रीति को साथ लाने के लिए कहकर आ गया। वहां की क्रियाविधि से हटकर , तांत्रिक भी अपना सामान संभालने लगा। उसने समय देखा, सुबह के 4:00 रहे थे। वह सभी लोग शमशान से बाहर आ गए। गौतमी इस समय बेहोशी की हालत में थी , करण ने उसे , गाड़ी में बिठाया और अस्पताल की तरफ गाड़ी दौड़ा दी। 

गाड़ी चलाते हुए उसके हाथ काँप रहे थे , मन ही मन  अपने को दोष दे रहा था, यह सब मेरे कारण ही हुआ है, उसे अब एहसास हो रहा था कि उसने कितनी बड़ी गलती की है ?  यह सब जो भी कर रही थी वह मेरे लिए ही तो कर रही थी, करण को एक-एक कर अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था। शीघ्र अति शीघ्र अस्पताल में पहुंचा और गौतमी को भर्ती कराया। डॉक्टर ने पूछा - इन्हें क्या हुआ है ?

यह आप देखिए ! यह आपका कार्य है। 

आप इनके  कौन लगते हैं ?

करण एक बार को सोच में पड़ गया, डॉक्टर से क्या कहूं ,मैं इसका क्या लगता हूं ? इसकी दृष्टि में तो मैं , इसका सब कुछ लगता हूं। 

 आप कुछ बोल नहीं रहे हैं, डॉक्टर ने प्रश्न किया। 

जी दोस्त हूं , यह तहकीकात आप बाद में कर लीजिएगा , पहले इसे देखिए !

 इनके अंदर बहुत ज्यादा ही खून की कमी आ गई है , इतना खून कम कैसे हुआ ? खून की बोतल चढ़ानी  पड़ेगी। बोतल चढ़ाते समय नर्स ने देखा -गौतमी की गर्दन में कुछ निशान नजर आ रहे थे। ये निशान कैसे हैं ? करण बाहर ही, गौतमी के होश में आने की प्रतीक्षा कर रहा था। 

नर्स बाहर आई और करण से पूछा -अचानक इतनी 'रक्त की कमी 'इन्हे कैसे हो गयी ?

अब करण नर्स से क्या कहे ?कि किसी प्रेत ने इसका लहू पीया है ,किसी से ऐसा कुछ कहें भी तो , कोई विश्वास नहीं करेगा। आप ये बताइये ,उसकी  हालत में, अभी कुछ सुधार हुआ है या नहीं।

अभी प्रतीक्षा करनी होगी ,तब तक आप इनके घरवालों को सूचना दे दीजिये। 

ये विचार ,तो करण के मन आया ही नहीं था ,तभी उसने गौतमी के घर वालों को सूचना भेजी। उन्हें फोन करके वह फिर उसके कमरे में एक बार झाँका ,तब तक शायद , गौतमी को होश आ गया था  , उसने अपनी आंखें खोलकर , करण की तरफ देखा, करण उदास चेहरा लिए ,उसके पास खड़ा था। इस बात की उसे खुशी हुई, कम से कम इस समय तो करण मेरे साथ है , बहुत ही धीमी आवाज में बोली -यदि मैं बच न सकी, तो मैं कुंवारी नहीं मरना चाहती , कम से कम तुम्हारी जन्मपत्री की सत्यता तो साबित हो जाएगी। पहली पत्नी के रूप में ही मरना चाहूंगी। 


उसकी बात सुनकर ,करण का हृदय द्रवित हो उठा और बोला- ऐसी बातें क्यों करती हो ? तुम्हें कुछ भी नहीं होगा तुम ठीक हो जाओगी और मैंने तुम्हारे घर भी फोन कर दिया है ,वे लोग भी आते ही होंगे। मुस्कुरा कर उसने, अपनी आंखें बंद कर लीं , जैसे वह सुकून की नींद सोना चाहती है। करण ने भी, उससे ज्यादा कुछ नहीं कहा और बाहर आ गया। रात भर का जगा हुआ था , प्रतीक्षा में बेंच पर बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। तभी किसी शोर से उसकी नींद खुली, उसने आसपास घूम कर देखा। नर्स गौतमी के कमरे से बाहर आ रही थी , और चिल्लाते हुए बोली-बचाओ !उसे बचाओ !

करण हड़बड़ा कर , उठ बैठा और नर्स से पूछा - क्या हुआ ?

उस कमरे में कोई है, दहशत से नर्स बोली। 

कोई तो डरावनी आकृति है , मैंने खिड़की के शीशे में देखा, जो उसका रक्त पी रहा था। यह सुनकर करण गौतमी के कमरे की तरफ दौड़ा। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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